लाजवंती के पौधे की पत्तियो, बीज के फ़ायदे नुकसान

         लाजवंती का पौधा एक पौष्टिक पौधे की तरह गुणकारी है. लाजवंती का बोटैनिकल नाम नेप्तुनिया ओलेरसा और मिमोसा पुदिका है. लाजवंती शब्द को अंग्रेजी में मिमोसा पुड़ीका कहा जाता है, जिसका उद्गम लैटिन से हुआ है. इसको छुई मुई, सोने वाला पौधा, सवेंदनशील पौधा भी बोलते है यह एक ऐसा पौधा होता है, जिसको अगर कोई व्यक्ति छू दे तो यह अपने आप को सिकुड़ कर बंद कर लेता है, फिर थोड़ी देर बाद अपने आप ही खुल जाता है. इसमें लाल रंग के फुल लगते है. यह सालभर उगता है, और यह मटर के प्रजाति का फैबैसीई रूप होता है. इसका इस्तेमाल जडी बुटी के लिए किया जाता है. यह अधिकांशतः पेड़ों और झाड़ियो के नीचे खाली जगहों पर भी पाया जाता है, इसके साथ ही यह छायादार जगहों पर ज्यादा पाया जाता है. लाजवंती के जड़, पत्तों और बीज का इस्तेमाल अनेक बिमारियों से बचने के लिए किया जाता है.

लाजवंती पौधे के फ़ायदे व नुकसान (Lajwanti plant seeds benefits and side effects in hindi )

लाजवंती के पौधे की विशेषताएँ (Lajwanti plant features)

  • वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि जो इनमे सिकुड़ने के गुण है, उनको सिसिमोनास्टिक आन्दोलन कहा जाता है, ये सिकुड़ने की गुण ही इनकी रक्षा करने में सहायक होते है.
  • अगर पशुओं में तेज गति से अगर चलने की आवाज आये, तो यह सिकुड़ जाते है, जिससे की पशु इन्हें खा न सके. साथ ही अचानक से इनके सिकुड़ने की वजह से जो भी कीड़े इनके ऊपर होते है वह हट जाते है, जिसे वजह से ये अपनी इस गुण की वजह से कीड़े के नुकसान से बच जाते है.
  • आयुर्वेद में इसके पुरे पौधे का उपयोग गर्भाशय का ट्यूमर, जलोदर, संधिशोध जैसी बिमारियों के लिए किया जाता है. आयुर्वेद में इसे दर्द निवारक और एंटी डिपेंडेंट उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता है.
  • भारत में इसका उपयोग जन्म नियंत्रण के लिए किया जाता है. साथ ही चाइना और मैक्सिको में इसका उपयोग मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद की रोकथाम और निवारण के लिए किया जाता है. भारत में अगस्त से अक्टूबर तक इसके होने की सम्भावना ज्यादा रहती है.   
  • यह पौधा अपने नये रूप में खड़ा होता है, लेकिन धीरे धीरे यह झुकता जाता है. यह पतली शाखाओं वाला और घना काटेदार पौधा होता है इसकी लम्बाई 5 फीट तक हो सकती है.
  • लाजवंती बंजर भूमि में घास के रूप में पाया जाता है.       

 

 

लाजवंती का इतिहास (Lajwanti history)

 

लाजवंती को पहली बार कार्ल लिन्नायूस ने 1753 में स्पीशीज प्लान्तारुम के रूप में वर्णित किया. यह संयुक्तराष्ट्र अमेरिका में भी पाया जाता है, इसके साथ ही इसकी उपज फ्लोरिडा, हवाई, टेनेसी, वर्जिनिया, मेरीलैंड, पुएर्तो रिको, टेक्सास, अल्बामा, मिसीसिप्पी, नार्थ कैरोलिना, गोगिया, वर्जिन इस्लान्ड्स, क्यूबा और डोमिनिकन रिपब्लिक में पाई जाती है. लाजवंती के पौधो को उगने के लिए बीज का इस्तेमाल होता है, यह उष्ण समशीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में होने की वजह से ये हल्के ठन्डे तापमान को भी सहन कर सकते हैं. यह दक्षिण अमेरिका और केन्द्रीय अमेरिका में भी पाया जाता है. यह एशिया के भी देशों में पाया जाता है जिनमे शामिल है बांग्लादेश, थाईलैंड, भारत, इण्डोनेशिया, मलेशिया, फिलीपिंस और जापान में भी पाया जाता है.

लाजवंती के पौधे के प्रकार (Lajwanti plant types)

लाजवंती की 4000 प्रजातियाँ पाई जाती है. पहले यह ब्राजील में पाई जाती थी, लेकिन अब यह हर शीतोष्ण जलवायु में पाई जाती है. लाजवंती को अलग अलग जगहों पर अलग अलग नामों से पुकारा जाता है, बंगाली में इसे लज्जबती कहते है, मलयालम में तिन्तार्मानी, अंग्रेजी में सेंसिटिव प्लांट, तेलगु में अत्तापत्ति और पेद्दनिद्रकन्नी, तमिल में तोत्तालादी और थोत्ताल्चुंगी और कन्नडा में लज्जा, नाचिका और मुदुगु दवारे कहा जाता है.  

लाजवंती की रासायनिक संरचना (Lajwanti chemical composition)

लाजवंती के पौधों में मिमोसिन और तुर्गोरिन पाए जाते है, इसके साथ ही इसके पत्तों में 4- ओ गल्लिक एसिड पाया जाता है. इसके जड़ में 10% तक टैनिन और 55% तक अश है इसके बीज वाले भाग में म्युसिज होता है. इसके साथ ही यह पौधा जहाँ होता है वहाँ के वातावरण में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते है जिससे यह वातावरण को शुद्ध कर देता है.                 

लाजवंती के लाभ (Lajwanti benefits)

आयुर्वेद के अनुसार लाजवंती का लाभ कई बीमारियों के इलाज में मिलता है जैसे की कुष्ठ रोग, योनी और गर्भाशय की बीमारियों को कम करने में, पेचिश, जलन, थकान, अस्थमा, ल्यूकोडर्मा, खून की बिमारियों के इलाज में इसका उपयोग होता है. इसके कुछ लाभ इस प्रकार हैं-   

लाजवंती स्वास्थ्य के लिए लाभदायक (Lajwanti plant benefits for health)

लाजवंती में बहुत सारे औषधीय गुण पाए जाते है. इसका इस्तेमाल बहुत लाभकारी होता है. इसकी वैज्ञानिक जाँच भी हो चुकी है, और उसमे भी यह सिद्ध हो चूका है. लाजवंती के लाभ का वर्णन निम्नलिखित है –

 

    • लाजवंती का इस्तेमाल घाव भरने के लिए भी किया जाता है, घाव पर लगाने के लिए इसकी पत्ती को पीस कर उसके रस को निकाल कर घाव पर इस्तेमाल किया जाता है.
    • ये अगर सांप काट ले तो उसके ऊपर लगाया जाए तो भी यह विष को मार देता है यह कोबरा जैसे विषैले सांप के जहर को भी कम कर देता है. इसके लिए लाजवंती के सूखे जड़ को पानी में खौला कर उससे धोने से कम हो सकता है.
    • लाजवंती का इस्तेमाल अगर बवासीर से पीड़ित व्यक्ति करे तो उन्हें आराम मिल सकता है यह रोगों के मारक के रूप में काम करता है. इसका इस्तेमाल भी बहुत ही आसान है इसके लिए पत्तो को अच्छे से कूट कर अगर इसके पेस्ट को पलास्टर की तरह खून या घाव वाले जगह पर लगाया जाए तो यह खून के बहाव को रोक देता है.
    • लाजवंती को अल्सर की बीमारी में भी इस्तेमाल किया जाता है यह हर्बल की तरह उपयोग किया जाता है. चूहों पर कृत्रिम रूप से अल्सर के संकेत को जाँच कर उनको एक एमजी एथेनॉल की खुराक लाजवंती के अर्क के साथ दी जाती है, जिसकी वजह से उनमे अल्सर की बीमारी पर अच्छे प्रभाव दिखाई दिए.    
    • डायरिया से ग्रस्त पीड़ित अगर इसका सेवन करते है तो यह लाभकारी सिद्ध हो सकता है. इसके लिए लाजवंती के जड़ के चूर्ण को अगर दही के साथ खाया जाए तो यह डायरिया से ग्रस्त व्यक्ति को लाभ पहुंचाता है.
    • मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को यह औषधि के रूप में दी जाती है. भारत के कई भागों में इसका इस्तेमाल औषधि के रूप में होता है. मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति इसके पत्तों के रस का सेवन करे तो उन्हें लाभ प्राप्त होगा.   
    • अगर किसी को गले में खरास हो या उन्हें खांसी हो तो लाजवंती के पत्ती को पीस कर गले पर लगाने से खरास में राहत मिलती है. इसके साथ ही इसकी जड़ को पीस कर शहद के साथ मिलाकर खाने से लाभ मिलता है. इसकी पत्तियों का काढ़ा बनाकर पीने से भी राहत मिलती है.   
    • लाजवंती का इस्तेमाल अगर पेशाब में जलन हो तो भी किया जाता है. इसके लिए इसके पत्तों को अच्छी तरह से पीस कर पेट के नीचे अर्थात पेडू पर अगर लगाया जाए, तो पेशाब में जलन की अधिकता को कम किया जा सकता है.
    • अगर किसी को अपच है तो भी इसके पत्तों का रस 30 मिली ग्राम तक रोगी को देने से यह प्राकृतिक अन्तएसिड के रूप में कार्य करता है तथा रोग को कम करने में मदद करता है.
    • अगर किसी को पथरी की बीमारी है तो लाजवंती के काढ़े को पीने से राहत मिलती है काढ़े को बनाने के लिए लाजवंती के जड़ों का इस्तेमाल किया जाता है. इस जड़ वाले काढ़े को रोगियों को दिन भर में तीन बार अगर दिया जाए तो यह शरीर में मौजूद पत्थरों को तोड़ कर मूत्र मार्ग के माध्यम से बाहर निकाल देगा. 
    • इसके सेवन से हड्डियों में मजबूती आती है. जिससे हड्डियां टूटने से बच जाती है तथा उनमे खिचाव में भी यह काम करता है.
    • लाजवंती का उपयोग ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए भी होता है इसके लिए इसके सूखे जड़ को अच्छे से पीस कर इसके पेस्ट को ब्रेस्ट पर लगाने से राहत मिलती है.
    • अगर दांत में दर्द हो तो लाजवंती के जड़ को पानी में डाल कर खौला ले और उस पानी से गर्गले करने से दांत दर्द में आराम मिलता है.   
    • पीलिया से ग्रसित रोगियों के लिए भी लाजवंती फायदेमंद है इसके लिए इसके पत्ते का जूस 20 से 40 मिली तीन सप्ताह तक प्रतेक दिन लेने से राहत मिलती है.  
    • मल्टीनेड्युलर ट्यूबकुलोसिस में ये सहायक होता है, इसके पत्तो का 40 मिली रस की मात्रा में रोज सेवन किया जाये, तो यह तपेदिक जैसे रोगों के इलाज में भी रामबाण की तरह कार्य करता है.

लाजवंती त्वचा के लिए लाभदायक (Lajwanti plant benefits for skin)

त्वचा पर होने वाले कील मुंहासों से भी लाजवंती के पत्तो का इस्तेमाल करके बचा जा सकता है. त्वचा में अगर खुजली हो या सोरायसिस जैसे त्वचा सम्बन्धी रोग के लक्षण हो तो इसके पत्तो का लेप लगाने से रोग से राहत मिलती है. लाजवंती के पौधों में एंटीफंगल गुण होते है जिसकी वैज्ञानिक पुष्टि भी हो चुकी है जिस वजह से ये त्वचा की फंगल से बचाव करता है. जब त्वच पर खुजली या किसी भी तरह के त्वचा सम्बन्धी रोग हो तो इसके रस को तेल में मिला कर प्रभावित जगह पर लगाने से आराम मिलता है.

लाजवंती के बीज के लाभ (Lajwanti plant seeds benefits)

बीज को खाने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है इसके लिए लाजवंती के बीज के पाउडर को 2 ग्राम की मात्रा में एक ग्लास दूध के साथ अगर रात में सोने से पहले ले तो इससे शारीरिक दुर्बलता कम हो जाती है. इसके बीज का उपयोग औषधी के रूप में काम करता है अनेक आयुर्वेद की दवाओं को बनाने में इसका इस्तेमाल होता है. लाजवंती के बीज का उपयोग करने के लिए लाजवंती के बीज और मिश्री या चीनी को साथ में बराबर मात्रा में मिलाकर पिस ले और फिर उसे हवा बंद डब्बे में रख कर इसके मिश्रण का इस्तेमाल एक या दो बार दिन भर में कर सकते है. इसको दूध के साथ 5 ग्राम तक की मात्रा में मिला कर सेवन किया जा सकता है. ऐसा करने से शुक्राणुओं में वृद्धि होती है. लाजवंती के बीजो के सेवन से शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है इसका उपयोग पूर्ण रूप से सुरक्षित माना गया है.

लाजवंती की पत्तियां (Lajwanti leaves)

लाजवंती की पत्तियां थोड़ी लम्बी और दो भागों में बंटी होती है जिनमे छोटे छोटे पत्ते होते है यह 10 से 12 तक की संख्या में हो सकते है. इसके फूलों का रंग पीला, गुलाबी या बैगनी रंग का हो सकता है. इसका ऊपरी हिस्सा लाल और नीचे तने की तरफ़ गुलाबी होता है. फुल 1 से 5 तक की संख्या में एक पौधे में खिल सकते है. लाजवंती की पत्तियां रात में बंद हो जाती है और दिन में प्रकास पड़ते ही फिर से फ़ैल जाती है इसका अध्ययन पहली बार वैज्ञानिक जीन जैक डी ओर्तोउस डे मीरन ने किया था. आयुर्वेद में इसकी पत्तियों का इस्तेमाल खून को रोकने, ह्य्द्रोसिल की बीमारी और पाईल्स जैसी बिमारियों के इलाज के लिए किया जाता है.

लाजवंती के जूस और पत्तों के लाभ (Lajwanti leaves benefits)

अगर बच्चा अस्थमा से ग्रसित है तो बच्चे को 10 मिली रस का सेवन प्रतिदिन कराने से राहत मिलती है. इसके पत्ते का इस्तेमाल भी मधुमेह से ग्रसित रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है. इसके लिए उन्हें 25 से 30 मिली रोज सुबह में इसके जूस का सेवन करना होगा. इसके अलावा वो चाहे तो पत्ते के साथ ही इसके सूखे जड़ और पाउडर को भी 2 से 5 ग्राम की मात्रा में ले सकते है. अगर आपको दर्द है तो आप लाजवंती के पत्तों को पानी में उबाल कर दर्द वाले जगह पर सेकाई कर सकते है.

लाजवंती का फल (Lajwanti fruit)

लाजवंती के फल एक से दो सेंटीमीटर लम्बे होते है. यह ऊपरी भाग पर काटेदार होते है, जिसके अंदर 2.5 मिली लम्बे पीले और भूरे रंग के बीज होते है. उनके बीच में कठोर बीज कोट होते है जो की उन्हें बांधे रखते है. यह लम्बी फली के रूप में फलते है.

लाजवंती की जड़ (Lajwanti plant roots)  

इसकी जडो के ऊपर 6 से 8 परत तक कवक कोशिका की परत होती है. द्वतिक स्तर पर इसके जड़ों में परेंच्य्मा और कणिका की पतली दीवार होती है जिनमे टैनिक एसिड और कैल्सियम ऑक्सालेट क्रिस्टल्स होते है. लाजवंती की जड़ों में कार्बन डाई सल्फाइड बनता है जिस वजह से यह पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले रोगजनक कवकों को रोकती है. इसकी जड़ो में वायुमंडल में मौजूद नाईट्रोजन को ठीक करने के लिए एन्दोस्यमबायोटिक डिअजोत्रोफ्स मौजूद होते है. आयुर्वेद में इसकी जड़ों को लयूकोदेर्मा, एनजिओपैथि, मेट्रोपैथी, ब्रोकेनियल अस्थमा, छोटे पॉक्स, अल्सर, बुखार इत्यादि जैसी बिमारियों में इस्तेमाल किया जाता है.        

लाजवंती से नुकसान (Lajwanti side effects)

अगर किसी को गैस हो और वे किसी और दवाओं का उपयोग कर रहे है, तो लाजवंती आपके लिए फ़ायदेमंद होने के बदले नुकसान पंहुचा सकता है. इसका प्रभाव यह हो सकता है कि आपके द्वारा ली गई दवा ठीक से काम नहीं कर सकती है. अगर आप किसी भी अति संवेदनशील बीमारी जैसे की कैंसर जैसी कोई बीमारी की दवा खा रहे हैं, और लाजवंती का उपयोग कर रहे है तो आप डॉ. से सलाह ज़रूर ले फिर इसका सेवन करे.

लाजवंती को किस तरह से खाये (How to eat Lajwanti seeds)

लाजवंती के बीज को पीस कर ग्रहण किया जा सकता है आप चाहे तो इसे मिश्री या शहद या दूध के साथ ले सकते है. इसके पत्तो को पीस कर इसका जूस निकाल कर इसका सेवन बहुत फायदेमंद होता है. लाजवंती के जड़ों का भी इस्तेमाल उसको सुखा कर उसका पाउडर बना कर किया जा सकता है. वैसे जड़ो को सिर्फ ऐसे ही गले में माला की तरह अगर पहने तो सिर्फ इसकी छुअन ही गले की खांसी या दर्द से राहत दे देती है. इसकी जड़ का स्वाद भले ही कडवा होता है लेकिन आयुर्वेद में इसके गुणगान करते हुए कहा गया है कि ऐसा पौधा जो सिर्फ छूने से सिकुड़ता और अपने आप फैलता है तो ऐसे पौधों के फुल, फल, जड़, तना, पत्तियां सभी पांचो स्वास्थ्य के देख भाल के लिए लोक औषधि के रूप में बहुत उपयोगी है. पतंजलि के स्टोर में भी इसके कई उत्पाद जैसे की इसका जूस, पाउडर आसानी से उपलब्ध मिल जायेंगे.

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