दोस्तों देवभूमि भारत में रहने वाला ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो मर्यादा पुरुषोत्तमभगवान श्रीराम को ना जानता हो | यहां पर हमेशा से संस्कार मर्यादा और आचरण को महत्त्व दिया जाता है |हमारे यहां तो अभिवादन में भी "जय सियाराम "! जाता है |
और क्यों ना कहे रामचरित है ही इतना पावन |
आज हम आपको रामायण से जुड़े कुछ ऐसे तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में जानकार सर्वसाधारण को संशय होना सामान्य बात है|
तो आइए जानते हैं कि वह रहस्यमयी रामचरित क्या है~~~
१.क्या श्रीराम वन में मृगया खेला करते थे?
बन्धु सखा संग लेहिं बोलाई | वन मृगया नित खेलहिं जाई ||
पावन मृग मारहिं जियॅ जानी | दिन प्रति नृपहि देखावहि आनी||
* मृगया अर्थात् मृग( हिरण) का शिकार करना
बालकांड की प्रस्तुत चौपाई में तुलसीदास जी ने कहा हैकि श्री राम जीअपने भाइयों और मित्रों के साथ वन में जाकर हिरण का शिकार करते हैं |
अब यहां पर यह प्रश्न उठना सामान्य बात हैकि जब भगवान श्रीराम ने धर्म की स्थापना के लिए निराकार ब्रह्म से साकार अवतार मनुष्य देह में लिया है |तब वे स्वयं ऐसा अधर्म कार्य कैसे कर सकते हैं |
तो दोस्तों ऐसा कुछ भी नहीं है करुणा सिंधु श्री राम ने कोई भी अनुचित कार्य नहीं किया है |
उपर्युक्त चौपाई में " पावन मृग मारहि जियं जानी " पद आया है|
जिस का अर्थ है कि श्री राम ने मात्र उन्ही पावन मृगों का शिकार किया है जिनका वृतांत वे पूर्व से ही जानते थे {जिय जानी } |
प्राचीन काल में तपस्वी महात्मा अपने तप के बल पर सब कुछ करने में सक्षम हुआ करते थे| और दुष्टों को दंड देने के लिए क्रोध में श्राप भी दे देते थे |
जिन हिरणों का शिकार भगवान श्रीराम ने किया था वास्तव में वे कोई साधारण में मृग नहीं थे | बल्कि किसी तपस्वी के श्राप प्रभाव से हिरण देह को प्राप्त हुए थे |और उनकी मुक्ति का एकमात्र यही उपाय था कि वहश्री राम के हाथों मारे जाएं |
तात्पर्य यह है कि शापित मृग स्वयं ही राम अवतार की प्रतीक्षा में थे |
अतः श्री राम ने कोई क्रूर कार्य नही किया है बल्कि उन्हें श्राप से मुक्त करके बैकुंठ में स्थान दिया |
जे मृग राम वान के मारे ते तनु तजि सुरलोक सिधारे
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि सनातन संस्कृति गूढ़ और विचित्र तो हो सकती है किन्तु अनुचित कदापि नहीं |
२.क्या माता सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी?
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित मानस में माता सीता की लंका से लौटते समय अग्नि परीक्षा का वर्णन मिलता है|
तो क्या वास्तव में भगवती दुर्गा की अंश स्वरूपा माता जानकी ने
अग्नि परीक्षा दी थी |
जवाब है नहीं | रामायण के अरण्य कांड का 23वॉ दोहे में स्पष्ट लिखा है~ सीता हरण के समय........
लछिमन गए वनहि जब लेन मूल फल कंद |
जनक सुता सन बोले बिहसि कृपा सुख वृंद ||
अर्थात जब श्री लक्ष्मण वन में फल इत्यादि लेने के लिए जाते हैं
तब कृपालु श्री राम जानकी जी से गुप्त रूप में कहते हैं कि
सुनहु प्रिया व्रत रुचिर सुशीला | मै कछु करवि ललित नरलीला || तुम्ह पावक महु करहु निवासा | जौ लगि करौं निसाचर नासा||
अर्थात राम ; श्री जानकी से बोले~ कि सुन्दर पविव्रत का पालन करने वाली सुशीले | सुनो मैं अब कुछ मनोहर लीला करने जा रहा हू | अतः जब तक मैं निसाचरो का नाश करूंगा तुम पावक (अग्नि )में निवास करो|
जबहिं राम सब कहा बखानी | प्रभु पद धरि हिय अनल समानी || निज प्रतिबिम्ब राखि तहँ सीता | तैसई शील रुप सुविनीता || अर्थात्
श्री राम जी ने ज्यो ही सब समझा कर कहा त्यों ही श्री सीता जी प्रभु के चरणों को हृदय में धरकर अग्नि में समा गयी सीता जी ने अपनी ही छाया मूर्ति वहां रख दी जो उनके जैसे ही शील स्वभाव और रूप वाली तथा वैसी ही विनम्र थी|
जब लक्ष्मण जी फल फूल इत्यादि लेकर वन से लौटे तब उन्हें पर्णकुटी में वही माया निर्मित सीता को देखा |और वास्तविक सीधा समझा |
यह लीला इतनी गुप्त थी की राघव के इस गुप्त चरित को अग्नि तथा ब्रह्मा और स्वयं श्री राम के अलावा उनके अनुज लक्ष्मण भी नहीं जान पाए|
उसी के पश्चात रावण सीता हरण के लिए राम आश्रम में आया और माया निर्मित सीता को वास्तविक सीधा समझ हरण कर लंका ले गया|
तात्पर्य है कि वास्तव में सीता हरण हुआ ही नहीं था बल्कि जिसका हरण हुआ वह मात्र एक माया निर्मित सीता प्रतिबिंब था|
जब माता सीता लंका से लौटकर वापस श्री राम के पास आयी..
तब इस लीला को गुप्त रखने के लिए(कि वह वास्तविक सीता नहीं है) उन्होंने अग्नि परीक्षा की लीला की| और जैसे ही सीता का प्रतिबिंब अग्नि में प्रवेश हुआ| वह छाया मूर्ति जानकी अदृश्य हो गई और वास्तविक सीता जो अब तक अग्नि लोक में अग्नि में निवास कर रही थी प्रकट हो गई|
और सर्वसाधारण को यह अग्नि परीक्षा प्रतीत हुई|
आज के बाद जब भी कोई रामायण पर प्रश्न चिन्ह उठाये तब आप उसे वास्तविक बात समझा सकते हैं|
३.क्या माता सीता को भगवान श्रीराम ने गर्भावस्था में बनवास दिया था?
तो इसका उत्तर देने से पहले हम आपको बता देते हैं सच्चिदानंद प्रकाश स्वरूप निर्गुण परमात्मा जिन के प्रत्येक रोमकूप में अनंत ब्रह्मांडओ के समूह व्यवस्थित है(ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहे) वही निराकारसर्वव्यापी अद्वतीय परम ब्रह्म ने स्त्री और पुरुष के रूप में 2 अवतार राम और जानकी नाम से पृथ्वी पर मनुष्य रूप में पूर्व निश्चित कार्य को संपन्न करने के लिए लिए थे |
जिन अवतारों का मुख्य उद्देश्य नाना प्रकार की लीलाएं कर मनुष्य मात्र को नीति अनीति और लोक रीति के ज्ञान के साथ-साथ एक मर्यादित आदर्श जीवन कैसे जीना चाहिए इन सब की शिक्षा मनुष्य को देना था|
वास्तविकता में अपनी बाल्यावस्था में जब माता जानकी एक बार अपनी सखियों के साथ उपवन में बिहार कर रही थी तब उन्हें एक वृक्ष पर नर और मादा तोता का जोड़ा सीता राम के अवतार के बारे में चर्चा करते हुए दिखा|
मैना तोते से बोली"कि वाल्मीकि जी अपने शिष्यों को बता रहे थे कि रामावतार अयोध्यापुरी में हो चुका हैऔर अब श्रीराम पृथ्वी पर राक्षसों का संहार करके अपने वैकुंठ लोक जाएंगे"
ऐसा सुनकर जब मां जानकी ने उस मैना से पूछा कि यह सब तुमने कहां सुना |
उसने बताया कि हम बाल्मीकि आश्रम से आ रहे हैं वहां पर वृक्ष के ऊपर बैठे बैठे हमने वाल्मीकि जी को अपने शिष्यों को रामायण पढ़ाते हुए सुना है|
(त्रिकालदर्शी वाल्मीकि जी ने रामावतार के पहले ही रामायण की रचना कर दी थी उन्होंने भविष्य में घटित होने वाली रामलीला को अपनी ज्ञान दृष्टि से देख कर रामायण ग्रंथ की रचना पहले ही कर दी)
जब सीता जी ने यह सुना कि वह मादा तोता मेरे( जानकी )बारे में सब कुछ जानता है| तब उन्होंने उससे कहा कि तुम मेरे साथ मेरे राज महल में चलो मैं तुम्हें वहां पर हर प्रकार का भोजन पानी की व्यवस्था करूंगी और तुम वही रहना और नित्य प्रति मुझे राम कथा सुनाना |
उस मादा तोता के मना करने के बावजूद भी बालहठ बस माता सीता उसे अपने महल में लें गई |
और उसने पति वियोग में अपने प्राण त्याग दिए| उस समय वह गर्भवती थी|
Visit https://youtu.be/vLRhHJ170F0
जब नर तोते को यह यह सारी बात मालूम पड़ी तब उसने क्रोध में आकर मन ही मन सीता को श्राप दे दिया | कि जिस प्रकार तुमने गर्भावस्था में मुझसे मेरा पत्नी का वियोग कराया है| उसी प्रकार तुम्हे भी अपनी गर्भावस्था में पति का वियोग कालांतर में भोगना पड़ेगा|
और उस नर तोते ने भी अपने प्राण त्याग दिए| चूंकि उस तोते ने जानकी से द्वेष भाव की मन:स्थिति में प्राणों का त्याग किया|
इसलिए उसका अगला जन्म भी इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु हुआ|उसका जन्म अयोध्यापुरी में एक धोबी के यहां हुआ|
गीता......
(मृत्यु काल में मनुष्य की जो मन: स्थिति होती है उसका अगला जन्म भी उसी मन स्थिति के अनुसार होता है इसलिए अर्जुन तुम युद्ध करते हुए निरंतर मेरा स्मरण करो इससे यदि रण मे तुम्हारी मृत्यु भी हो जाती है तब तुम मुझे ही प्राप्त करोगे)
उसी धोबी के कहने पर श्री राम ने माता सीता को वनवास दिया |
अब यहां प्रश्न यह उठता है की क्या विश्वव्यापीनी आदिशक्ति दुर्गा को नीति का ज्ञान नहीं था जो कोतुक वश ऐसा अनुचित कार्य कर बैठी|
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है हमने आपको पहले ही बताया है कि रामावतार का मुख्य उद्देश्य हमें सीख देना था |
वास्तव में जिनके पलक झपक ने के चौथाई समय में कोटी ब्रह्मांड की रचना हो जाती है उन्ही माता जानकी के द्वारा रचा गया यह माया प्रपंच था |
स्पष्ट रूप से इसका उद्देश्य सर्वसाधारण को यह सीख देना था कि राजा हो या फकीर प्रारब्ध कर्म के उदय होने पर उसे भोगना ही पड़ता है |फिर चाहे मनुष्य देह में ईश्वर ही क्यों ना हो|
जगत की पापनाशिनी गंगा के पुत्र भीष्म पितामह ने भी अपने पूर्व जन्म में गलती से अनजाने में एक सर्प को कांटे की झाड़ी में फेंक दिया था जिसके फलस्वरूप उन्हें महाभारत युद्ध में कांटो के समान नुकीली बाणशैया पर कई महीनों तक सोना पड़ा जो बाण सैया अर्जुन द्वारा बिछाई गई थी |
तात्पर्य यह है कि गंगापुत्र भीष्म हो या जगत माता सीता मनुष्य देह में किए गए शुभ अशुभ कर्मों का भोग इसी मनुष्य देह में भोगकर जाना पड़ता है |यही प्रकृति का सिद्धांत है|
उम्मीद है आप सब को यह जानकारी पसंद आई होगी|अगर हां तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें|
Super
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