रामकृष्ण मिशन द्वारा समाज सुधार व धर्म के क्षेत्र में

रामकृष्ण मिशन द्वारा समाज सुधार व धर्म के क्षेत्र में

स्वामी विवेकानंद के गुरु राम कृष्णा परमहंस एक संत थे जिन्होंने वेदांत दर्शन रहस्यवाद था भक्ति मार्ग को बहुत लोकप्रिय बनाया स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु की शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की इस मिशन के माध्यम से उन्होंने वेदों को ही नहीं वरनृ हिंदू धर्म की सभी क्षेत्र श्रेष्ठ परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया उन्होंने कहा कि वेद केवल हिंदुओं का ही नहीं बल्कि मनुष्य मानव का धर्म है इस मिशन ने देश भर में अनेक शिक्षा संस्थाओं अस्पतालों और सेवा श्रम की स्थापना की विवेकानंद ने धर्म प्रचार तथा राष्ट्रीय जीवन के सभी पहलुओं को सुधार में गहरी रूचित ली उन्होंने राष्ट्रीय वाद को सम्मान किया और नौजवानों को अपने देश का गर्व करना सिखाया।

तरुण बंगाल आंदोलन

कोलकाता में हिंदुस्तान कॉलेज की स्थापना सेवा एक नए बौद्धिक वातावरण का निर्माण किया या कॉलेज उस समय के सबसे उग्र आंदोलन का केंद्र बन गया जिससे तरुण बंगाल आंदोलन कहा जाता है इस आंदोलन के मुख्य नेता हेनरी लुई विवियन देरोजियो नामक एक पुर्तगाली भारतीय युवक थे उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में दर्शन सत्र के अध्यापक के रूप में 1826 में हिंदुओं कॉलेज में कार्य आरंभ किया उन्होंने अपने छात्रों में स्वतंत्रता चिंता स्वाधीनता और देश के प्रति प्रेम की भावना जागृत की जिसका युवकों पर पूर्व प्रभाव पड़ा और वे युवा बुद्धि संगत और वैज्ञानिक ढंग से सोचने लगे इस आंदोलन के नाम युवकों में व्यापक प्रभाव को देखते हुए देरो जिओ को नारितकता का आरोप लगाकर कॉलेज से निकाल दिया गया और इसके बाद उनकी मृत्यु हो गई इसी के साथ तरुण बंगाल आंदोलन भी मर गया।

19वीं सदी में आरंभ होने वाले कुछ ऐसे समाचार पत्र

भारत में प्रेस का विकास 19वीं सदी के आरंभिक वर्षों में शुरू हुआ और इस जनता को जागृत करने में एक मातृभूमि का निभाई प्रेस के विकास से अनेक राष्ट्रीय नेता तथा समाज सुधारक भी जुड़े रहे भारत में सबसे पहला समाचार पत्र बंगाल गजट 1780 में प्रकाशित हुआ 19वीं सदी के उत्तरदाई में अनेक अंग्रेज दैनिक पत्रों की स्थापना हुई इनमें ऐसे अनेक सभी भी भारत के लोकप्रिय समाचार पत्र हैं 1861 मैं आरंभ किया गया दि टाइम्स ऑफ इंडिया सन 1865 कर दी पायनियर 1875 का दि स्टेट समैन आज भी भारतीय पत्रकारिता का क श्रेष्ठ उदाहरण है बंगाल में सन 1868 में स्थापित अमृत बाजार पत्रिका तथा मद्रास में सन 1878 में स्थापित हिंदू आज भी एक बड़ा संख्या में पत्रकारों की दृष्टि में प प्रतिष्ठान और भारतीय भाषाओं में भी अनेक महत्वपूर्ण समाचर पत्रों एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ जो आज भी भारतीय प्रेस का विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं।

आग्लवादी पूर्व शिक्षा प्रणाली के समर्थक

1.आग्लवादी— पाश्चात्य शिक्षा तथा संभवत को अंग्रेजी में मध्यम शेष भारत में प्रसारित करने के पक्ष धारों को आग्लवादी कहां गया है यह अंग्रेजी के माध्यम से ज्ञान विज्ञान तथा पश्चिमी ज्ञान व साहित्य की शिक्षा देने के समर्थक थे इन के मुख्य लाई मेंकाले थे शिक्षा हेतु निर्धारित समस्त धनराशि इसी प्रकार के शिक्षा पर व्यय करने का निर्धारण ब्रिटिश सरकार ने लिया था।

2. प्राच्वादी— संस्कृति रांची और अरबी की शिक्षा को प्रोत्साहित करने का समर्थन करने वाले प्रश्न वादी कहलाते इनसे कुछ लोग स्थानीय भाषाओं में आधुनिक ज्ञान देने की प्रणाली का समर्थन करते थे।

3. सती— तत्कालीन हिंदू समाज में प्रचलित सती प्रथा के अनुसार पति की मृत्यु होने जाने पर पत्नी को पति की जला वी वी चिता में जीवित छोड़ दिया जाता था इस प्रथा के अनुसार पत्नी का जीवन पति के साथ ही समाप्त माना जाता था यह एक अमानवीय प्रथा थी इस कुप्रथा को बंद करने में राजा राममोहन राय ने अथक प्रयास किए जीने के सफल स्वरूप अंग्रेज सरकार ने सन 1819 में इस कानून पर बंद करवा दिया।

4. इस्तमरारी बंदोबस्त— भूमि का लगान वसूल करने हेतु लारड कारनवालिस द्वारा इस प्रथा को बंगाल बिहार और उड़ीसा में लागू किया गया था इस प्रथा में लग्न की राशि निश्चित कर दी गई थी और जमींदारों को भूमि स्वामित्व प्रदान कर दिया गया था इस प्रथा से सरकार की आमदनी तो निश्चित हो गई किंतु किसानों तथा खेती और मजदूरों की दशा अत्यधिक दयनीय हो गई।

5. रैयतवारी प्रथा— इस प्रथा के अंतर्गत जमींदारों के स्थान पर अंग्रेज सरकार ने सीधे रैयत यह किसानों से भू राजस्व संबंधी समझौता किया इस व्यवस्था के अंतर्गत किसानों को स्वामित्व प्रदान किया गया यह एक अस्थाई अवस्था और इसके अनुसार समय-समय पर भू राजस्व बड़ा या गया था।

उन सामाजिक कुरीतियों का वर्णन जिसके खिलाफ सुधार आंदोलन चलाया गया था

आठवीं सदी भारत अनेक कुरीतियों से ग्रसित जाति भेद के कारण एकता का सर्वथा अभाव था वे सामाजिक कुरीतियों जिनके विरूद्ध सुधार आंदोलन चलाए गए सभी जातियों वर्गों एवं धर्म लंबियो मैं व्याप्त थी अंधविश्वास हठधर्मिता बाल विवाह का बोल बाला सती प्रथा महिलाओं पर अमानवीय अत्याचार का पति की मृत्यु पर पत्नी को भी पति की चिता में जीवित जला दिया जाता था स्त्री शिक्षा का सर्वथा अभाव था समाज में स्त्रियों की अत्यधिक दुर्दशा थी यहां तक कि कन्या शिशु का वध तक कर दिया जाता था छोटे-छोटे नासमझ बच्चों का विवाह कर दिया जाता था दुर्भाग्य यदि बाल्यकाल मैं लड़के की मृत्यु हो जाती तो बालिका को जीवन भर वैद्यव्य दुख उठाना पढ़ता था पुरुष अपनी इच्छा अनुसार 1 से अधिक विवाह करने के लिए स्वतंत्र थे सर्वत्र आधुनिक शिक्षा का विरोध किया था पर्दा प्रथा के कारण जहां एक और महिलाओं के स्वास्थ्य पर कुठाराघात होता था वहीं दूसरी और अनेक व्यक्त का विकास अवरुद्ध हो जाता था वही स्थिति मुस्लिम समाज में भी थी कट्टर भारतीय समाज में अंधविश्वासों के फल स्वरूप कब से लोग बिना इलाज के मर जाते थे क्योंकि झाल फूंक द्वारा उनका इलाज किया जाता था इसी प्रकार विदेश यात्रा को आप और पाप पूर्ण माना जाता था आधुनिक शिक्षा को एक कलंक मानकर सर्वत्र उसका घोर विरोध किया जाता था। 19वीं सदी में धर्म और सामाजिक सुधार आंदोलन का एक सिलसिला आरंभ हुआ धर्म के क्षेत्र में इस आंदोलन ने कटक अंधविश्वासों तथा पुरोहितों के दब दबे पर आक्रमण क्या सामाजिक जीवन में इन्होंने जाति प्रथा बाल विवाह सती प्रथा निरक्षरता तथा अन्य समाजिक असमानता को दूर करने की भरसक कोशिश की।

भारत में राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारण

ब्रिटिश अधिपत्य भारतीय समाज का दूर गमी प्रभाव पड़ता था इस प्रभाव के परिणाम स्वरूप और इसकी परिस्थिति में भारत जनता ने अपने समाज की दुर्बल ताओ की छानबीन करना आरंभ किया था ताकि उसमें सुधार की जा सके और उसके आधुनिक करण की बुनियाद रखी जा सके इस प्रकार भारत में राष्ट्रवाद के उदय का कार्य आरंभ हुआ जिसके आगृ लिखित करण थे।

1. धार्मिक और सामाजिक आंदोलन— 19वीं सदी में धर्म और सामाजिक सुधार आंदोलन का एक सिलसिला आरंभ हुआ धर्म के क्षेत्र में इन आंदोलन के कट अंधविश्वास तथा पुरोहितों के दबदबे पर हमले किए सामाजिक जीवन में इनका उद्देश्य जाति प्रथा बाल विवाह स्त्री शिक्षा संघ तथा अन्य कानूनी और सामाजिक असमानता को दूर करना तथा इससे राष्ट्रीय चेतना तथा राष्ट्रीय आंदोलन के विकास का स्तर तैयार हुआ जिनका उद्देश्य देश को स्वतंत्र करना और समाज का पुनर्निर्माण करना था।

2. आधुनिक शिक्षा का प्रभाव— अंग्रेजी शिक्षा के कारण भारतीय बुनियादी और वैज्ञानिक विचारों तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संपर्क में आए यद्यपि अंग्रेजों का उद्देश्य लोगों को छोटे प्रश्न एक सेवाओं के लिए प्रशिक्षित करना था वह भी इनके कारण ज्ञान का प्रसार हुआ और लोकतंत्र राष्ट्रवाद और बीसवीं सदी समाजवाद के विचार पहले एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन या आया की शिक्षा की सी जातियां तथा विशेष तक सीमित ना रही यह सभी के लिए उपलब्ध थी फिर भी उनकी सीमित प्रकृति के बावजूद शिक्षा ने नए विचारों के बारे में और विश्व के बारे में चेतना जगाई और भारत में पुनर्निर्माण के विचारों को सुदृढ़

किया।

3. अतीत का पुनरावेष्ण— कालांतर आधुनिक शिक्षा के कारण भारत में अतीत की सही समझ के प्रति दिलचस्पी जगी अतः उनके यूरोपीय और भारतीय विद्रानो ने भारतीय इतिहास समाज भाषा और कलाओं के क्षेत्र में नए खोज आरंभ कर दिया इससे लोगों को पता चला कि उनका अतीत यूरोप के मुकाबले कहीं ज्यादा समृद्धि से ली थी भारत के अतीत संबंधी इस नए ज्ञान के लिए अनेक भारतीय ने व्यवस्थित ढंग से भारतीय को उनका खोया वाह गर्भ और आत्मविश्वास वापस मिला और वे राष्ट्रीय स्वाधीनता तथा अनेक बाद पुनर्निर्माण कार्य के लिए तैयार हो गए।

4. 19वीं सदी में प्रेस का विकास— भारत में प्रेस का विकास 19वीं सदी में आरंभिक वर्षों में आरंभ हुआ और इनके जनता को जागृत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई राजा राममोहन राय दादाभाई नौरोजी लोकमान्य तिलक जैसे राष्ट्रीय वादी नेताओं ने भारतीय प्रेस के विकास में महत्वपूर्ण कार्य किया इस कला में उनके पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित हुए उनमें कुछ आज भी प्रकाशित हो ब्रिटेन सरकार ने समय-समय पर अनेक कानून बनाए और प्रेस की स्वतंत्रता को और भी कम कर दिया मगर दमन को बावजूद प्रेस के सुधारों की आवश्यकता के प्रति जनता को जागरुक कर बनाने में अपनी भूमिका अदा की ज्ञान के प्रयास में मदद पहुंचाई और राष्ट्रवाद के विकास का एक प्रमुख साधन बन गया था।

5. अंग्रेजों द्वारा भारतीय का अधिक शोषण— भारत में ब्रिटिश शासन का दृष्टिकोण शुद्ध रूप से व्यापारिक था उनकी उद्देश्य भारत में औद्योगिक की कच्चे माल की प्राप्ति और ब्रिटिश तैयार माल के लिए भारत में संरक्षित बाजार बना था अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अंग्रेजों ने भारतीय कृषि व्यवस्था को तहस-नहस कर डाला देश में अनाज की कमी होने लगी अकाल पड़ने लगे किसान कर्जदार हो गए और शहरों की ओर पालन करने के लिए मजबूर हो गए परंपरागत उद्योगों का नाश हो गया लाखों कारीगर और व्यापारी बेरोजगार हो गए पूर्ण आर्थिक तंत्र अंग्रेजों के अधीन हो गया था देश में इन भयंकर शोषण के कारण भारतीय बुद्धिजीवियों जागृत आई और वे राष्ट्रीय परी वृक्ष में सोचने के लिए मजबूर हो गए।

6. देश में संचार और यातायात के साधनों के विकास के कारण लोगों को परस्पर मेलजोल हुआ और एकता की भावना का भावना का उदय हुआ अब वे सामूहिक तौर से भारत में अतीत और वर्तमान के बारे में बात करने लगे जिससे राष्ट्रीय की भावना का विकास हुआ।

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