राकेट को अन्तरिक्ष में जाने के लिए किस तकनीक का प्रयोग किया जाता है?

राकेट की दुनिया में एक नजर

राकेट को आप ज़रूर देखा होगा। राकेट बहुत तेज गति से एक दिशा से दूसरी दिशा ओर चली जाती है। आपको बता दूं कि राकेट विज्ञान का एक नियम है, जिसे इंग्लैंड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन ने मालूम किया था। विज्ञान के इस नियम को 'न्यूटन का तीसरा नियम' कहा जाता है। इस नियम को आप एक उदाहरण के द्वारा अच्छी तरह से समझ सकते हैं। नीचे दिए गए उदाहरण को समझें।

एक बहुत चिकनी जगह पर एक ठेला है। ठेला और आदमी- दोनों का वजन बराबर बराबर है। यदि वह आदमी झटके के साथ उस ठेले पर से कूदे तो "जिस गति से वह जिस दिशा में कूदेगा, ठीक उसी गति से ठेला उसकी विपरीत दिशा में हरक़त करेगा"। 

यही नियम राकेट के उड़ने में भी काम करता है। राकेट के निचले भाग में बारूद लगी हुई होती है। उसके पतीले में आग लगाते ही एक गैस निकलती है, जो झटके के साथ नीचे की ओर लपकती है। जितनी तेजी से वह नीचे की ओर निकलती है उतनी ही तेजी से वह गैस राकेट को ऊपर की ओर धक्का देती है ‌ धक्का पाते ही राकेट आकाश की ओर उड़ने लगता है। यही राकेट आज कल के राकेटों का पहला रूप है। 

राकेट बहुत ही शक्तिशाली होता है। इसकी गति बहुत अधिक होती है। पलक झपकते ही ये राकेट कहां से कहां उड़ जाते हैं। शक्ति और तीव्र गति के कारण पृथ्वी की आकर्षण शक्ति उनका रास्ता रोक नहीं पाती। 

कुछ इतिहासकारों का मत है कि जिस समय मिस्त्र के लोग पिरामिड बना रहे थे उसी समय चीनियों ने राकेट को दूर फेंकने के लिए उनको तीरों के साथ बांधा था। 1232 ई॰ में जब मंगोलों ने कैफंग नगर को घेरा तब चीनियों ने अपनी रक्षा के लिए अग्नि डण्डियों का उपयोग किया था।

वैज्ञानिक विधि से राकेटों का अध्ययन सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के एक वैज्ञानिक ने किया था। उस वैज्ञानिक का नाम डॉ राबर्ट गोडार्ड था। उसने राकेटों का अध्ययन 1908 ई॰ में आरम्भ किया। 1919 ई॰ में उसने बताया कि राकेट की उड़ान के लिए हवा का होना जरूरी नहीं है। यही नहीं, उस वैज्ञानिक के अनुसार राकेट वायुमंडल के बाहर अन्तरिक्ष में भी उड़ उड़ सकता है। राबर्ट गोडार्ड ने बताया कि राकेट को चन्द्रमा तक का भी सैर कराया जा सकता है। उस समय के वैज्ञानिक यह समझते थे कि राकेट उड़ने का कारण उसका विस्फोट है, जो हवा को धक्का देता है।

1926 ई॰ में डॉ राबर्ट गोडार्ड ने अपने द्रव ईंधन वाले राकेट का परीक्षण किया। उसी राकेट ने 60 मील प्रति घंटा की रफ्तार से 184 फीट की ऊंचाई तय कर ली। 1935 ई॰ में डॉ राबर्ट गोडार्ड ने ही एक जाइरोस्कोप नियंत्रित राकेट छोड़ा। वह राकेट 700 मील प्रति घंटा की रफ्तार से 8,000 फीट की ऊंचाई तक पहुंच गया। 

राकेट तैयार करने का जब वैज्ञानिकों ने निर्णय लिया तब संसार के वैज्ञानिकों में होड़ लग गयी। प्रारम्भ में, चीन के वैज्ञानिक काफी आगे थे। इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक डॉ॰ नोगर बैंकन ने राकेट तैयार करने की योजना तैयार की, किन्तु वह अपने प्रयास में सफल नहीं हो सका ‌ उसी बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका के भौतिक शास्त्री डॉ॰ राबर्ट गोडार्ड ने राकेट तैयार कर बाजी जीत ली। 

उसी समय जर्मनी में एक राकेट सोसायटी बनी। उस सोसायटी का एक सदस्य काउण्ट वेनहेर फान ब्राउन था उसने द्वितीय महायुद्ध में 'पिनेमुण्डे' नामक स्थान पर जर्मन रिसर्च केन्द्र में राकेट अनुसंधान का निर्देशन किया। जैसे ही युद्ध खत्म हुआ, काउण्ट वेनहेर संयुक्त राज्य अमेरिका चला गया। वहीं उसने राकेट को सुधार कर तरह तरह के रूपों में तैयार करने में अपना सहयोग दिया।

इस शताब्दी के प्रारम्भ में डॉ राबर्ट गोडार्ड ने प्रयोग करके राकेट में बहुत से सुधार किये। अब राकेट-इंजिनों की शक्ति बढ़ाकर और बहुस्टेजी प्रक्षेपास्त्रों का उपयोग करके उसकी मारक क्षमता को 5,000 मील से अधिक तक बढ़ा दिया गया है। स्टेजों में लगाये गये कई राकेटों को मिलाकर उनमें बहुस्टेजी राकेट तैयार किया जाता है। लम्बी मार करने वाले राकेट में 'सैटर्न' काफी प्रसिद्ध है।

अब आपको राकेट की आकृति के बारे में बताता हूं ध्यान से समझने की कोशिश कीजिए। 

राकेट बड़ी तेजी से हवा की सघन परतों को पार करता है। फिर ऊपर की ओर उड़ता है। हवा के घर्षण के कारण इसका ताप भी बहुत बढ़ जाता है। यही कारण है कि इसका ढांचा ऐसे पदार्थ का बनाया जाता है, जो ताप की अधिकता को आसानी से बर्दाश्त कर सके। फिर उड़ान के प्रथम भाग में इसकी रफ्तार कम रखी जाती है। वहां हवा सघन होती है। इसकी आकृति इस प्रकार रखी जाती है कि इसके प्रत्येक भाग पर हवा का दाब कम से कम पड़े।

मान लीजिए राकेट को अन्तरिक्ष में भेजना है। ऐसे में, क्या करना होता है? नीचे समझेंगे।

अगर राकेट को अन्तरिक्ष में भेजना है तो उसकी रफ़्तार इतनी अधिक होनी चाहिए कि वह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा के बाहर चला जाए। इस रफ्तार गति अथवा वेग को पलायन वेग कहते हैं।

सबसे पहले प्रथम स्टेज राकेट काम में लाया जाता है। जब इसका काम समाप्त हो जाता है तब इसे राकेट से छोड़ दिया जाता है। इसके बाद दूसरा राकेट शीघ्रता को बढ़ाता है। फिर इसे भी छोड़ दिया जाता हैं।  इस तरह से तीसरा राकेट काम करने लगता है। 

हम सभी अक्सर आसमान में राकेट को जाते हुएं जरूर देखें होंगे।  यह एक दिशा से अंतरिक्ष ओर चला जाता है। यह चांदी के फ्लैश की तरह चमकता है। यह आसमानों को चिरते हुए अंतरिक्ष में चला जाता है। इसकी पलायन वेग या इसकी गति एक सेकण्ड में 10 से 12 गति से अंतरिक्ष में चला जाता है इससे कृत्रिम उपग्रह को पृथ्वी के कक्षा में स्थापित करता है, पृथ्वी तथा अंतरिक्ष की अधिक से अधिक जानकारी एकत्र कर पृथ्वी पर भेजता है।

इन राकेटों की मदद से अंतरिक्ष में जाना संभव हो सका है। इनकी मदद से सेटेलाइट को स्थापित करने में सफलता प्राप्त हुई है, इसके द्वारा ही आज पुरी दुनियां को इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध हुआ है। इंटरनेट की उपलब्धि इस दुनियां की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इंटरनेट पुरे विश्व को एक सुत्र में बांध दिया है, और पुरे विश्व के लोग एक-दूसरे से कनेक्ट हुआ है।

राकेट का उपयोग किन किन कार्यों के लिए होता है। 

1. खोज के लिए

2. युद्ध अस्त्र के रूप में

3. अन्तरिक्ष यात्रा के लिए 

4. नये नये जानकारी के लिए।

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