मानसिक रुप से स्वस्थ रहने के लिए अध्यात्म से कैसे जुडें ?

        .मानसिक अस्वस्थता का कारण.

इस भागदौड भरी जिंदगी मे मनुष्य आमतौर पर मानसिक रुप से अस्वस्थ ही रहता है. कभी तनाव मे कभी अशांति मे कभी दुख से उसका जीवन भरा रहता है. उसके पास दो मिनट का भी समय नही होता ताकि वो अपने मानसिक रोग का कारण ढूंढकर उसका निवारण कर सके.  मानसिक रुप से अस्वस्थ होने का बस इतना ही कारण है की मनुष्य जहां सुख ढूंढ रहा हैं वहां सुख नही है. इसलिए पुरा जीवन वो खोज-खोजकर हार जाता है पर उसे स्थाई शांति का अनुभव नही होता. क्योकि संसार दुख का घर है ओर दुख के घर मे शांति नही मिल सकती.  जैसे पुस्तकालय की दूकान पर मिठाई नही मिलती उसी तरह संसार को भगवान ने गीता मे दुखो का घर कहा है तो इस दुखालय संसार मे सुख नही मिल सकता. इसलिए मनुष्य बहुत प्रयास करता है सुख पाने का लेकिन दुख बढता जाता है ओर सुख कभी नही मिलता. 

  1-  संसार मे मिलने वाले अस्थायी सुख का रहस्य --- 

 जब संसार मे सुख नही है तो लोगो को सुख का अनुभव क्यो होता है??  संसार मे सुख नही है लेकिन फिर भी लोगो को सुख का अनुभव इस तरह से होता है जैसे सांप काटने पर नीम मीठा लगता है. नीम कडवा होता है लेकिन जिसको सांप काट जाए इसे नीम मीठा लगता है. उसी तरह जो संसार मे ही प्रेम किये रहते हैं उनको इस दुखद संसार मे भी सुख का अनुभव होता है जबकि संसार मे सुख कहीं हैं ही नही.  सुख केवल अध्यात्म मे है भजन मे है. रामचरितमानस की एक चौपाई है जिसमे कहा गया की    विमुख राम सुख पावे ना कोई  अर्थात्  भगवान से विमुख होकर यानि दूर होकर किसी को सुख नही मिल सकता .  हमारे ग्रंथो मे एक बात ओर बडी सुंदर लिखी मिलती है की जैसे किसी को दाद का रोग हो जाए तो उसे खारिश करते हुए बहुत सुख मिलता है लेकिन वो सुख उसके दुख को बढा रहा है. खारिश करने से जो सुख मिलता है वो दाद के रोग को ज्यादा बढाता है.  उसी तरह संसार मे मनुष्य को जो सुख लग रहा है वो दाद की खारिश से मिलने वाले सुख की तरह है. जो अंत मे महान दुखद होता है-- जो वस्तु जहां नही हैं वहां खोजना मुर्खता है. बस उसी तरह आज के समय मे मनुष्य सुख को संसार मे ढूंढ रहा है जबकि सुख संसार मे नही भजन मे है यानि प्रभु के चरणों मे है. 

2-  संसारिक सुख का परिणाम दुखद---  श्रीमद्भगवत् गीता भगवान श्री कृष्ण की वाणी हैं--   गीता के  18 वें अध्याय मे भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं की---

विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तदग्रेऽमृतोपमम्

 

परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम्। अर्थात् जो सुख शुरु मे अमृत की तरह लगे लेकिन परिणाम मे विष की तरह दुख दे वो संसार का सुख है.  मनुष्य जब भी संसार मे कोई बुरा काम करता है तो उसे पहले थोडा सुख मिलता है लेकिन उसका परिणाम बहुत दुखद होता है. परिणाम मे बहूत अशाांति का अनुुुुभव होता है. 

          मानसिक दुख(रोग)  को दूर करने के कुछ उपाय---

1-- सत्संग  करें---  मनुष्य जैसे विचारों का चिंतन करता हैं वैसा ही बन जाता है. जीवन मे संग का बहूत असर होता है. कहावत भी है की जैसा करोगे संग वैसा चढेगा रंग. मनुष्य को जीवन मे अनेको तरह के लोग मिलते हैं. जो बुरे विचारो वाले लोग हैं जब उनका संग किया जाता है तो बुरे विचार ह्रदय मे बढने लगते हैं.  इसलिए अपने मन को शांत ओर सुखी रखने के लिए पहले संग सुधार की बहुत आवश्यक्ता है.  जब हम सत्संग करते हैं या सत्संग श्रवण करते हैं तो हमारे अंदर अच्छे अच्छे विचार बढने लगते हैं, अच्छे विचारों का बल जब हमारे अंदर होता है तो मन बहुत प्रसन्न रहता है. इसलिए सत्संग जीवन मे अनिवार्य हैं. सत्संग हमे जीवन जीने की दिशा दिखाता हैं, सत्संग हमे सुधरना सीखाता है- सत्संग यानि  सत+संग= अर्थात् सत् का संग करना . सत् यानि परमात्मा , जब हम सत्संग के माध्यम से परमात्मा से जुडते हैं तो हमारे अंदर उत्साह, आनंद , शांति बढने लगती है क्योकि परमात्मा शांत स्वरुप हैं.  इसलिए परमात्मा के संग से मनुष्य का मन  भी शांत हो जाता है. 

2-- भगवान के नाम का जप करें --- रामचरितमानस मे एक चौपाई बहुत सुंदर लिखी हैं जिसमे कहा गया की

तब लगि कुशल ना जीव कबहूं,,सपनेहूं मन विश्राम-- जब लगि भजत ना राम कौ, शोकधाम तजि काम अर्थात् जब तक मनुष्य भगवान का भजन नही करेगा तब तक उसको सपने मे भी सुख शांति नही मिल सकती-- जैसे हम कडवी दवा खाते हैं तो मुख कडवा हो जाता है. उसी तरह भगवान का नाम तो आनंद का स्वरुप हैं, भगवान का नाम सुख स्वरुप हैं, जब वो नाम हमारी जीभ पर चलने लगता है तो हमारा मन भी आनंदित हो जाता है. क्योकि जीभ का संबंध सीधा मन से है. तभी कहावत भी है की जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन, जैसा पीओ पानी वैसी बने वाणी. यानि जो चीज हम जीभ पर रखते हैं उसका प्रभाव मन पर पडता है, जब भगवान का नाम जीभ पर चलने लगेगा तो मन भी आनंद मे डूब जाएगा. 

3-- तीर्थों की यात्रा करें -- मनुष्य  के मन पर वातावरण का बहुत प्रभाव पडता है, अगर मनुष्य बुरे वातावरण मे रहेगा तो उसका मन भी नकारात्मक चिंतन से भर जाएगा इसलिए वातावरण की शुद्धि भी बहुत आवश्यक हैै.  इसलिए मनुष्य को प्रसिद्ध तीर्थो की यात्रा करनी चाहिये.  जैसे वृंदावन,मथुरा,बरसाना,गोवर्धन,हरिद्वार,काशी आदि आदि-- यहां का वातावरण इतना दिव्य है की मनुष्य का मन कितना भी अशांत हो, यहां जाकर तुरंत मन शुद्ध ओर प्रसन्न हो जाता है.  इसलिए मनुष्य को तीर्थो की यात्रा अवश्य करनी चाहिये.

4- भगवान की किसी छवि का ध्यान करें-- भगवान की कोई भी छवि हो, उस छवि का अगर बीस मिनट भी ध्यान किया जाए तो मन तुरंत शांत हो जाता है. जैसे मान लीजिये आपको श्रीकृष्ण की छवि बहुत सुंदर लगती हैं, तो आप उस छवि का आंखे बंद करके ओर आंखे खोलकर ध्यान करें. भगवन श्री कृष्ण के चरणों से लेकर मुखारविन्द तक बार बार ध्यान करें.  उनकी मुसकान का बार बार चिंतन करें, उनके कपोलो का,उनके कुण्डल का, उनकी बांसुरी का,मोर मुकुट का बार बार दर्शन करें ओर ध्यान करें तो मन तुरंत शांत हो जाता है-- धन्यवाद !! 

 

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मुझे धार्मिक विषयों पर लेख लिखना बहुत ही पसंद है. अन्य विषयों पर भी लेख लिखने का सुंदर प्रयास कर लेता हूं. जय श्री राधे कृष्णा !