महाशिवरात्रि का पर्व किस प्रकार मनाया जाता है

महाशिवरात्रि पर हम भोले शंकर जी की पूजा अर्चना कर अपने लिए शिव कल्याण की कामना करते हैं। हम चाहे तो भगवान शिव के दिव्य स्वरूप और उनके व्यवहार व्यक्तित्व को निहित गुणों को आत्मसात कर आनंदमय जीवन जी सकते हैं।

भगवान शिव की आराधना स्त्री पुरुष सभी करते हैं। उन्हें पसंद कर अपने जीवन में सुख कल्याण की कामना करते हैं। पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि को शिव पार्वती के विवाह पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए इस तीन कुंवारी युवतियां भगवान शिव की आराधना कर उनके जैसे गुणों वाले पति की कामना करती है दरअसल शिवजी के स्वरूप में अनेक ऐसी विशेषताएं हैं, जिन्हें अपनाकर जीवन को आनंदमय बनाया जा सकता है।

शिव की सादगी

शिव का भोला भाला स्वरूप आडंबर विहीन है। किसी भी दिखावे से दूर उनकी सादगी मन को मोहती है। उसके शरीर पर महंगे आभूषण नहीं हैं, वे चीते की खाल, रुद्राक्ष, सांप और भस्म धारण करते हैं‌ वे संसारिक प्रपंच से दूर रहते हुए भी सदैव पसंद दिखते हैं। उनके लिए कैलाश पर्वत और वन क्षेत्र में ही रहना भी उतना ही सूखकर है, जितना किसी के लिए महलों में निवास करना हो सकता है। वे किसी से भेदभाव नहीं करते। सभी को एक दृष्टि से यानी समभाव से देखते हैं। वे केवल जलाभिषेक और बेलपत्र अर्पित करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उनका यह स्वरूप हमें सादगी से जीवन यापन करने का संदेश देता है, क्योंकि सादगी में ही सच्चा आनंद होता है।

समझते हैं भावना की महत्ता

हर स्त्री के ह्रदय में भावनाओं का सागर लहराता है। शिव भी कोमल भावों को सहेजने वाले देव हैं। वे भावनाओं की महत्ता और उनके उपयोग को अनुचित नहीं मानते हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार एक बार जब मां काली अत्यंत क्रोध में थीं तो उनको रोकने के लिए सामूहिक रूप से देवताओं ने भगवान शिव का स्मरण किया। तब भगवान शिव ने भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उपयोग किया और उन्हें रोकने पहुंचे। वे उग्र मां काली के पथ पर लेट गए। मां काली के चरण जैसे ही शिव जी के छाती पर पड़े उनका गुस्सा शांत हो गया। इस तरह शिव यह संदेश देते है कि परिस्थितियां के अनुसार हमें अपनी बुद्धि और भावना का उपयोग करना चाहिए।

एकनिष्ठ प्रेम के प्रतीक

भगवान शिव का प्रेम केवल अपनी पत्नी पार्वती के लिए है। यह उनकी एकनिष्ठता का परिचायक है। शिव पार्वती को अपने बगल में बैठाते हैं, यानी स्त्री को पूरा सम्मान देते हैं। उनका अर्धनारीश्वर स्वरूप भी यही प्रगट करता है कि बगैर पार्वती के वे अधूरे हैं। अर्धनारीश्वर के स्वरूप में आधा हिस्सा स्त्री पार्वती और आधा हिस्सा पुरुष शिव का रहता है। शिव और पार्वती का रिश्ता बराबरी और सच्चे साझेदारी का रिश्ता है। यदि हम पारंपरिक पौराणिक कथाओं का देखे तो भगवान शिव अपनी पत्नी के साथ प्रेम और सम्मान के साथ बर्ताव करते हैं। शिव और पार्वती पति और पत्नी रिश्ता बहुत गहरा, प्रेमपूर्ण गरिमामय है। इस तरह शिव पार्वती का दांपत्य,हर दंपति को आजीवन एकनिष्ठ रहने और एक दूसरे का सदैव सम्मान करने का संदेश देता है।

व्रत पूजा का विधान

महाशिवपुराण में कहा गया है, शिवरात्रि के दिन व्रत करने वालों को प्रातःकाल सूर्योदय से दो घंटे पहले उठकर शौच कर्म से निवृत्त होकर गंगा आदि नदियों का स्मरण करते हुए स्नान करना चाहिए।मस्तक पर त्रिपुंड, चन्दन अथवा भस्म धारण करना चाहिए। यदि उपलब्ध हों तो रुद्राक्ष की माला धारण करनी चाहिए। घर के मंदिर में यदि नर्मदेश्वर शिवलिंग हों तो उस पर अन्यथा स्वच्छ मिट्टी या चावल के आटे से एक थाली में ग्यारह शिवलिंग स्थापित कर, उनका जलाभिषेक कर चंदन, भस्म, चावल, तिल, बेलपत्र, भाग और धतूरे के पत्तों को चढ़ा कर भगवान शिव को दूध चढ़ाना चाहें तो उसे तांबे अथवा पीतल के लोटे से नहीं चढ़ाएं, क्योंकि इससे वह विष तुल्य माना गया है। इनके अतिरिक्त किसी भी अन्य धातु या मिट्टी के पात्र से दूध अर्पित कर सकते हैं। जो भक्त साधक शिवरात्रि के चारों पहरों में इस प्रकार पूजा अर्चना करते हैैं तो और भी आनंददायक होगा अन्यथा शिवालयों में विद्वान ब्राह्मण आचार्यजनों द्वारा की जा रही चारों पहर के पूजन में सम्मिलित होकर पुण्य फल प्राप्त कर सकते हैं। शिवरात्रि को जागरण का विशेष महत्व है। अतः अपने घर के पूजा स्थान में, शिवालयों के प्रांगण में, तीर्थ स्थलों में विल्व वृक्ष के पास किया जाने वाला जप एवं शिव भजन प्राणियों को अनंत पुण्य और आनंद देता है।

ऐसे करें देवी पार्वती की पूजा

जो महिलाएं महाशिवारत्रि का व्रत करती हैं, वे निराहार रहती हैं। कुछ महिलाएं ये व्रत निर्जल रहकर करती हैं। व्रत के दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद पूजा की जाती है। पूजन के बाद ही महिलाएं अन्न और जल ग्रहण करती हैं। इस व्रत में महिलाएं किसी शिव मंदिर में शिवलिंग के सामने बैठकर गणेशजी, शिवजी और माता पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा में देवी मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।

मंत्र- गौरी मे प्रीयतां नित्यं अघनाशाय मंगला। सौभाग्यायास्तु ललिता भवानी सर्वसिद्धये।।

अर्थ - गौरी नित्य मुझ पर प्रसन्न रहें, मंगला मेरे पापों का नाश करें। ललिता मुझे सौभाग्य प्रदान करें और भवानी मुझे सब सिद्धियां प्रदान करें।

देवी पार्वती को चढ़ानी चाहिए ये चीजें

* माता पार्वती के लिए सुहाग का सामान जैसे लाल चूड़ियां, लाल चुनरी, कुमकुम आदि चीजें मंदिर में अर्पित करनी चाहिए। बाद में किसी जरूरतमंद सुहागिन को ये चीजें दान भी करनी चाहिए। 

* इस दिन घर में भी भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय स्वामी और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। घर के मंदिर को फूलों से सजाएं। 

* एक चौकी पर केले के पत्ते रखकर शिवजी, पार्वती और गणेशजी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें। देवी-देवताओं का आह्वान करें। विधिवत पूजन करें। सुहाग का सामान देवी मां को चढ़ाएं।

कल्याणकारी है शिव का जाप

शिवरात्रि को महामृत्युंजय मंत्र का जाप, नमः शिवाय और शिवाय नमः का जाप मनुष्य के कल्याण का कारण बनता है। शिवरात्रि जागरण के बाद प्रातःकाल भगवान की स्तुति प्रार्थना और प्रदक्षणा कर अपने घर लौटना चाहिए। हर हर महादेव का उदघोष मनुष्य के सभी कष्टो को दूर करता है, इस प्रकार जाप करें-

काल हर, कंटक हर, दारिद्र हर,

रोग हर, शोक हर, हर-हर-हर महादेव ||

सभी प्राणियों पर करते कृपा

शिव भक्ति वर्ग, जाति, लिंग और जड़ चेतन के भेद से परे है। उनकी भक्ति आराधना में इन भेदों का कोई महत्व नहीं रहता है। जो सबके हैं, वहीं शिव हैं। जो सबमें हैं, वहीं शिव हैं। शिव ही कल्याण, सुख है, संपत्ति हैं। आनंद से परे परमानंद हैं। शिव आराधना की भाव प्रधानता के कारण भारतीय संस्कृति में विश्व बंधुत्व है। महाशिवरात्रि के अवसर पर शास्त्रीय विधि से वेद मंत्रों के द्वारा रात्रि के चारों पहरों की विधिपूर्वक की जाने वाली पूजा का फल उसी प्रकार प्राणिमात्र को मिलता है, जिस प्रकार सूर्यनारायण के उदय होते ही समस्त जगत को प्रकाश मिलता है।

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