मनुष्य का धर्म क्या है ?

1. पूतना को देखकर भगवान ने अपनी आँखे क्यों बंद कर ली ?

क्योंकि पूतना भगवान के सामने सज कर गई जो नहीं थी, वो बन कर गई थी। कुरुपिणी थी और स्वरूपिणी बनकर गई। भगवान कहते है जिसका तन सुंदर है, मन सुंदर नहीं है। ऐसे को मैं देखना भी पसंद नहीं करता इसलिए आँखो को बंद कर लिया अथवा पूतना जहर पिलाने आई थी और जहर पीने का काम तो शिव जी का है मानो भगवान आँख बंद करके शिव का ध्यान लगा रहे थे अथवा भगवान आँख बंद करके पूतना को तारने का बहाना खोज रहे थे।

2. मनुष्य का धर्म क्या है ?

मनुष्य का धर्म, तुलसीदास जी ने कहा- पर हित सरिस धर्म नहीं भाई। पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।। मतलब यही है लोगो का हित करना ही धर्म है ।सेवा करना ही परम धर्म है। माँ बाप की सेवा करके आप श्रवण बन सकते है। माँ बाप की आज्ञा का पालन करके आप राम बन सकते है। भजन करना सेवा है। आप जहाँ हो वही रहकर उस काम को सेवा भाव समझ कर करेंगे तो वही भक्ति बन जाएगा। जैसे डॉक्टर का काम है मरीज को इलाज करना, वही उसकी भक्ति है। किसान का काम है किसानी करना, वही उसकी भक्ति है। आप जहाँ हो वही रहे पर, भाव ऐसा रखो मानो आप सेवा कर रहे है। एक मंदिर का निर्माण हो रहा था कुछ मजदूर पत्थर तोड़ रहे है। एक संत एक मजदूर से बोले भाई क्या कर रहे हो। वो बोला दिखता नहीं है, अंधे हो क्या ? पत्थर तोड़ रहा हूँ। संत दूसरे मजदूर से वही प्रश्न करते है भाई क्या कर रहे हो? वो बोला महराज बहुत गरीब हूँ परिवार का पेट भरने के लिए काम कर रहा हूँ।

संत तीसरे मजदूर से बोले भाई क्या कर रहे हो? वो बोला गुरुदेव मेरे पास पैसे तो नहीं है कि मैं बड़ा मंदिर बनवा सकू और इस मंदिर में दान भी करने लायक नहीं हूँ। तो मैंने सोचा क्यों न पत्थर तोड़कर ही भगवान की सेवा कर लू। मेरे हाथ के तोड़े पत्थर इस मंदिर में लगेंगे मेरा तो जीवन ही धन्य हो जाएगा। संत आगे बढ़ गए। अर्थ यही है एक ही काम को तीन अलग- अलग कर रहे थे, पर तीनो के विचार अलग-अलग थे। अपने कर्म को भक्ति समझ कर करोगे तो वो धर्म बन जाएगा। आप पैसे कमाने में असमर्थ हो सकते है, पर सेवा में नहीं क्योंकि सेवा आप आपने माँ बाप की बिना पैसों में कर सकते हो। पड़ोसी के दुःख दर्द में आप उसकी तन से मदद कर सकते हैं। गौ सेवा, समाज सेवा, संत सेवा आदि सेवा का हर कार्य धर्म है और वही भक्ति है। भाव यही है। सत्य से बड़ा धर्म नहीं है। राजा हरिशचंद्र को सत्य के कारण जानती है। लोग कहते है महराज जी आज झूठ नहीं बोलेंगे तो काम नहीं होगा, दूकान नहीं चलेगी। मैं कहा करता हूँ इन लोगों से कि झूठ बोलने से दुकान इतनी चलती है तो विचार करो सत्य बोलेंगे तो काम नहीं होंगे।दूकान नहीं चलेगी, ये धारणा गलत है। आप सत्य को अपनाइये फिर देखिये आपका मन कितना शांत हो जाएगा। जिस सुख को पाने के लिए पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी वो सुख का अनुभव आप को सत्य करायेगा। बड़ी ताकत है सत्य में सत्य के साथ भगवान है सत्य का मार्ग ही ईश्वर तक जाता है आप सत्य को अपनाइये।

3. गणेश जी तो शिव पुत्र है, फिर शिव विवाह में किस गणेश की पूजा हुई ?

भगवान शिव जी के विवाह में स्वयं शंकर जी ने गणेश पूजन किया था। वो आदि गणेश थे, गणेश किसी काम का नाम नहीं है यह तो पद है जैसे राष्ट्रपति किसी काम का नहीं है, जो उस गद्दी पर बैठता है वो राष्ट्रपति कहलाता है। वैसे ही, शिव विवाह में पूजे गए गणेश को उनका नाम था करवीरकश और आज तो गणेश है। जिनकी पूजा आप और हम करते है। विनायक ही गणेश है।

4. रविवार को पीपल की पूजा क्यों नहीं की जाती है ?

क्योंकि दरिद्रता लक्ष्मी जी की बहन है। एक बार दरिद्रता ने भगवान विष्णु जी से रहने की जगह मांगी। भगवान को कोई जगह नहीं दिखी तब उन्होंने कहा तुम रविवार को पीपल पर रहा करो तब से सिर्फ रविवार को पीपल पर दरिद्रता का वास होता है, पीपल को काटना हो तो रविवार को ही काटना चाहिए। बाकी दिन भगवान विष्णु जी का वास होता है इसलिए रविवार को कोई पीपल पर जल नहीं चढ़ाते पूजा नहीं करते।

5. रविवार को तुलसी क्यों नहीं तोड़ते ?

रविवार को तुलसी पर भगवान विशेष रूप से प्रवेश करते है। रविवार को भगवान तुलसी से मिलने जाते है, इसलिए रविवार को तुलसी नहीं तोड़ी जाती बाकी दिन तुलसी सालिग्राम भगवान से मिलने जाती है।

6. मंदिर में घंटी क्यों बजाई जाती है ?

भगवान गरुड़ पर सवार रहते है। उनके पंखो से साम वेद की आवाज निकलती है। वो भगवान को प्रिय होती है और घंटी पर भी गरुड़ जी होते है और वह आवाज भगवान को पसंद है इसलिए भक्त घंटी बजाकर भगवान की पूजा करते है। क्योंकि हर व्यक्ति सामवेद का पाठ तो नहीं कर सकता तो घंटी बजाने से पूर्ति हो जाती है। विज्ञान कहता है की घंटी बजाने से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है जो हमारे मन को केंद्रित करती है।

7. शंख क्यों बजाया जाता है ?

शंख विष्णु भगवान के साले है मतलब लक्ष्मी के भाई है। जब शंख बजाया जाता है तो भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न होते है। शंख, घंटा, घंटी के बजते ही देवता आ जाते है और राक्षस चले आते हैं। शंख में जल डालकर विष्णु भगवान का अभिषेक किया जाये तो भगवान जल्दी प्रसन्न होते है।

8. जगन्नाथ भगवान को भात का भोग क्यों लगता है ?

जगन्नाथपुरी में एक वृद्ध माता रहती थी। वो रोज खिचड़ी बनाकर भगवान को बुलाती थी। जगन्नाथ भगवान रोज आकर उस माँ की गोद में बैठकर प्यार से भोग लगाते थे। एक दिन भगवान भोग लगा रहे थे माँ के पास बैठकर, तब तक पुजारी जी ने मंदिर के पट खोल दिये। भगवान ने देखा आज पुजारी ने जल्दी पट खोल दिया। भगवान दौड़कर गए और स्थान पर बैठ गए। आज जल्दी-जल्दी के कारण माँ मुख पोछना भूल गई। पुजारी ने देखा, आज भगवान के मुख में चावल लगा हुआ है। पुजारी ने चावल निकालकर देखा तो वो गरम था पुजारी ने सोचा मैंने तो अभी पट खोले है। अभी तो भगवान को मैंने स्नान नहीं कराया पूजा नहीं की। तो मुख में चावल कैसे। पुजारी जी को लगा भगवान सुबह-सुबह चावल कहा से खाकर आ गए। पूरे नगर में देखा गया, तो वो माँ भगवान को खिलाकर खुद खाकर बर्तन साफ कर रही थी।

पुजारी जी ने पूछा - माँ अपने भगवान को चावल खिलाए है, वो डर गई चरण पकड़ कर बोली, महराज गलती हो गई मैं बुलाती हूँ। जगन्नाथजी को और वो रोज आकर कहते है माँ तेरे हाथ की खिचड़ी मुझे बहुत पसंद है इसलिए मैं उनके लिए रोज खिचड़ी बनाती हूँ। पुजारी जी करमा बाई के चरणों में गिर पड़े। माँ मेरे पूर्वजों ने कब से पूजा की मैं बचपन से पूजा करता आ रहा हूँ। भगवान ने मुझे दर्शन नहीं दिए, तूने कौन सा पुण्य कर लिया जो तुझे रोज दर्शन देते है। पुजारी जी ने कहा प्रभु आपको चावल पसंद है तो आज के बाद हमेशा आपको चावल का ही भोग लगेगा तब से आज भी भगवान जगनाथ को चावल का भोग लगता है।भगवान ने पुजारी जी को दर्शन देकर उन्हें कृतार्थ किया। जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ भाव के भूखे हैं भगवान।

 

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मैं नेहा पाण्डेय हूँ. मैं नई–नई आर्टिकल को Paid for articles के माध्यम से प्रसारित करने की ओर अग्रसर हूँ। इस आर्टिकल्स के माध्यम से आपको थोडा–सा भी जानकारी प्राप्त हुआ, तो उसके लिए मैं आपको धन्यवाद करता हूँ। जय हिंद , जय भारत।