भारतीय कवियों का नेताओं के प्रति क्या विचार होता है?

1. कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर नाद क्या है? स्पष्ट करें।

देश की जनता अब यह जान चुकी है की पराधीनता के पास में रहकर हमारा विकास नहीं हो सकता। अतः पूरी एकजुटता के साथ जनता स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने के लिए आगे बढ़ रही है जिसकी पग ध्वनि चारों दिशाओं मे गुंज्यमान है। इस ध्वनि को ही समय के रथ का घर्घर नाद कहा गया है।

2. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है? 

प्रस्तुत कविता मेंं कवि नवीन भारत का शिलान्यास करता है। कविता के आरंभ में कवि आम जनता सीधी-साधी छवि का वर्णन करता है। कवि मानता है की भारत की जनता अबोध मिट्टी की प्रतिमा के समान है जो जीवन के तमाम सुख-दुःख को निर्विकार भाव से सहन करती है। 

3. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दूधमुंही बच्ची की तरह है और क्यों? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है? 

कवि के अनुसार शासक वर्ग के लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दूधमुंही बच्ची की तरह जिस प्रकार अबोध बच्ची को कल्पित खिलौने देकर बहलाया जा सकता है, उसी प्रकार देश की जनता भी सदियों से शासक वर्ग के द्वारा बहलायी जाती रही है परंतु कवि का मानना है की अब जनता जागरूक हो चूकी है तथा शासन व्यवस्था में परिवर्तन की मनसा लेकर आगे बढ़ रही है तथा अपनी संगठन शक्ति के बदौलत देश की सिंहासन पर बैठने लगी है। 

4. कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है? 

प्रस्तुत कविता में जनतंत्र के ऐतिहासिक राजनीतिक अभिप्रयो को उजागर किया गया है। देश के मजदूर किसान संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आगे बढ़ रहे हैं। यह जनता जब आंदोलन पर उतारू हो जाती है तो बड़े-बड़े राजवंश नष्ट हो जाते हैं। महले धारासाही हो जाती है तथा राजाओं का शीर्ष मुकुट हवाओ में उड़ जाती है। अतः कवि शासक वर्ग को सचेत करता है की लोकतंत्र में आम जनता की भागीदारी एवं अधिकार सुनिश्चित किया गया। 

5. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों?

 प्रेमघन ऊंच कोटि के आलोचक तथा समीक्षक थे। प्रस्तुत कविता में कवि समाज के उस वर्ग की आलोचना करता है, जो देश का प्रतिनिधितव करने वाले साथ-साथ वैसे लोग जिनके अंदर दासवृत्ति की इच्छा है तथा जो लोग व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए झूठमूठ प्रशंसा करते है कवि उनकी आलोचना करता है।

6. नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है? 

 प्रेमघन द्वारा रचित कविता में देश के शीर्षक नेताओं पर भी व्यंग्य किया गया है। कवि का मानना है की आज  देश का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथो में है, जो स्वंय अपने वस्त्र तक नहीं संभाल पाते फिर उनलोगो से देश सँभालने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। अपना भविष्य ऐसे लोगों  के हाथों में दे देना उचित नहीं है।

7. क्यों नहीं दीखते भगवान? 

  क्योंकि भगवान एहसास है। जैसे दर्द का एहसास होता है वो दिखता नहीं है, आपके पैर हाथ आदि में दर्द हो जाए, तो क्या दर्द दिखाई पड़ता है, नहीं। उसी प्रकार भक्तों को उसका अनुभव होता है, एहसास होता है।जैसे दूध मे घी होता है, लेकिन दिखता नहीं है, उसी प्रकार घट-घाट में रहता हुआ भगवान दिखाई नहीं पड़ता। ईश्वर सर्व व्यापी है, जैसे हवा सर्वव्यापी है, वो दिखती नहीं हैं, हवा का अनुभव होता है , उसी प्रकार परमात्मा का अनुभव होता है मिश्री में मिठास होती है पर दिखती नहीं है वैसे ही घट-घट में परमात्मा होता है वो दिखता नहीं है। आपके शरीर में लाखों बैक्टीरिया होते है वो हमारी आँखो से नहीं दिखते, उन्हें देखना हो तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र का सहारा लेना पड़ता है। बैक्टीरिया जैसी गंदगी को ये आँखे देख नहीं सकती तो परमात्मा जैसी पवित्रता को ये आँखे कैसे देख सकती है ? दूध के अंदर के घी को देखना ही तो उसे दही बनाना पड़ता है फिर उसका मंथन करना पड़ता है। तब कही घी प्राप्त होता है। परमात्मा रूपी घी को देखना चाहते है तो पहले भक्ति रूपी दही बनो, फिर वैराग्य की मथानी से मन और बुधि को मंथन करो तब परमात्मा रूपी घी आपके सामने प्रगट हो ।

8. कहाँ है भगवान? 

  सब जगह है भगवान, जैसे मिश्री के कण-कण में मिठास होती है। जैसे मेहंदी के कण- कण में लालिमा होती है। जैसे दूध के कण-कण में घी होता है। वैसे ही संसार के कण-कण में भगवान होते है। 

9. क्या करते है भगवन? 

सृष्टि को ब्रह्म बनकर उत्पन्न, विष्णु बनकर पालन और शिव बनकर संहार करते है भगवान। 

10. क्या पसंद है भगवान को ? 

  प्रेम पसंद है भगवान को, प्रेम वश दुर्योधन के छप्पन भोग त्यागकर विदुरानी के घर छिलके खाते है। शबरी के बेर प्रेम से खाए और सुदामा के चावल। मतलब भगवान को धन वैभव सुंदरता पद प्रतिष्ठा ये सब नहीं प्रेम चाहिए। 

11. क्या खाते है भगवान? 

अभिमानियों का अभिमान खा जाते हैं भगवान।

12. क्यों लेते हैं भगवान अवतार?

 क्योंकि जब खुद के बच्चों पर कोई संकट आता है तो माँ हजारों काम छोड़कर खुद ही उसकी रक्षा के लिए दौड़ पड़ती है, ऐसे ही जब भक्तों पर संकट आता है तो भगवान खुद ही दौड़ पड़ते है। अवतार लेकर भक्तों को बचाने के लिए, धर्म की स्थापना, सत्य की रक्षा। संत, गौ और सज्जन लोगों की रक्षा के लिए लेते है अवतार भगवान । 

13. क्या कहते है भगवान? 

यही की तू 24 घंटे संसार का काम कर लेकिन १ घंटा संसार को भुला कर, मेरा स्मरण कर, मेरा नाम जप, मेरी शरण ग्रहण कर। 

14. कौन सा मार्ग ईश्वर तक जाता है? 

  सत्य का मार्ग ईश्वर तक जाता है भगवान के घर जाना हो, तो सत्य के हाइवे पर चलते चलो, सीधा उसी के घर ले जाएगा। 

15. क्या कहते हैं वेद? 

  यही कि आपने दूसरों का भला किया है, तो आपका भगवान भला करेंगे और आपने दूसरों का बुरा किया है, तो आपके अपने भी आपका का ही बुरा करेंगे । 

16. हम सब का भला करते हैं फिर भी हमारे साथ बुरा होता है क्यों? 

  अंगुलियों तो उस पर ही उठती है जिसमें काबिलियत हो, संस्कारहीन को देखता कौन है, आम के वृक्ष पर लोग पत्थर मारते है, लाठी मारते है क्योंकि वो फलदार वृक्ष है। जबकि बबूल को, कोई पत्थर क्यों मारेगा। जो फलदार है, उसी पर तो पत्थर फेंके जायेंगे, उसी की आलोचना होगी, उसी को ठोकर लगाना चाहेंगे लोग क्योंकि आप आम हो गुणवान  हो, बबूल नहीं हो। आम को लोग हर वर्ष पत्थर मारते है और भगवान आम के वृक्ष को हर वर्ष मीठे-मीठे फल से भर देता है क्योंकि आम सबको फल देता है और बबूल काटे तो उसे फिर काटे ही मिलते है। अब आपको आम बनना है या बबूल।।   

                                                         शंकर जी सब की मृत्यु टाल देते है यदि महामृत्युंजय जाप किया जाए तो, मृत्यु टालने वाले को लोगों ने जहर पीला दिया वो सबका भला करते हैं, फिर भी समाज ने उन्हें जहर दिया अमृत पीने वाले देव है और विष पीने वाला देवाधिदेव महादेव कहलाए। भला करने वाला खुश होता है (दुनिया हमारा बुरा करे कोई बात नहीं भगवान हमारा भला करेंगे वो हमारा बुरा नहीं होने देंगे)। आप सबका भला करिये आपका कोई भला करें, ऐसी उम्मीद मत करिये। आप भगवान के भरोसे रहिये। आप सबका भला करेंगे तो भगवान आप का बुरा नहीं होने देंगे। ये विश्वास भगवान पर रखिये। 

17. कैसे मिटेगी मन की चंचलता अथवा क्या करें की मन वश में हो? 

      मन को वश में करना हो तो निम्न बातों का ध्यान देना होगा - 

1. आसन पर बैठ कर, प्रभु में ध्यान केन्द्र करना । 

2. प्राणायाम करके अपनी श्वास -श्वास में राम जी को बिठाना , हर श्वास में ईश्वर का स्मरण करना। 

3. अच्छे लोगों की संगत करना का असर हमको बिगाड़ सकता है, और सुधार भी सकता है। जैसे लोहे का एक टुकडा पानी में डूब जाता है, लेकिन वही लोहा हजारों टन जहाज में लगा होता है, वो डुबाता नहीं पार लगा देता है , वैसे से कुसंग करोगे तो डूब जाओगे, आपका मन आपको डूबा देगा और यही मन सत्संग में लग जाए अच्छे लोगों में लग जाए तो, यही मन आपको, भव सागर से पार लगा देता, ये मन चाबी की तरह होता है। चाबी ताले को बंद भी करती है और खोलती भी है, आपका मन यदि संसार लग जाएगा, तो आपको बंधन होगा और भगवान में लग जाएगा। हरि स्मरण में लग जाएगा तो आपको मुक्त कर देगा।

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मैं नेहा पाण्डेय हूँ. मैं नई–नई आर्टिकल को Paid for articles के माध्यम से प्रसारित करने की ओर अग्रसर हूँ। इस आर्टिकल्स के माध्यम से आपको थोडा–सा भी जानकारी प्राप्त हुआ, तो उसके लिए मैं आपको धन्यवाद करता हूँ। जय हिंद , जय भारत।