भारत के ६ महत्वपूर्ण त्यौहार जो पूरी दुनियां में प्रसिद्द है|

) मकर संकरांति 

यह भारत के प्रसिद्द त्योहारों में से एक है जिसे पूरा देश बड़े ही उल्लास से मनाता है| इस दिन की खास बात यह है की इस दिन सूर्य उत्तरायण में अस्त होता है| इस दिन जो मुझे पसंद है वो चीज है तिल के लड्डू को बड़े ही स्वादिस्ट होते है जिसका मैं तो साल भर इन्तजार करता हूँ| इस दिन हम पतंग उड़ाते है| यह दिन तो आसमान को पतंगों से भर देता है| इसमें हम एक प्रतियोगिता भी करते है जिसमे हम एक दुसरे की पतंगों के रस्सी को काटते है और जो भी पहले उस कटी पतंग को पा ले वह जीत जाता है| इस खेल में जिसके पास जितनी जादा पतंग होती है वह विजेता होता हैहिंदू रीति-रिवाजों में मकर संक्रांति एक बहुत ही शुभ दिन है। पूरे भारत में, लोग इस त्योहार को बहुत उत्साह और उत्साह के साथ मनाते हैं। लोग सुबह स्नान के बाद मंदिरों में जाते हैं और भगवान से पूरे परिवार के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से मकर संक्रांति त्योहार मनाया जाता है। दक्षिण भारत में, इसे लोकप्रिय रूप से 'पोंगलकहा जाता है, पंजाब और हरियाणा में इसे 'लोहड़ी' कहा जाता है, असम में इसे बिहार में 'बिहू' और 'खिचड़ी उत्सव' कहा जाता है। त्यौहार अंधेरे चरणों के अंत और सभी के जीवन में एक नए चरण की शुरुआत का एक महत्वपूर्ण अवसर है। लोगों में सार्वभौमिक भाईचारे और सद्भाव की भावना लाने के लिए लोग त्योहार मनाते हैं। त्योहार हमारे रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच कड़वाहट को भूलने का संदेश फैलाता है और खुशहाल और स्वस्थ जीवन जीने के लिए नई शुरुआत करता है। 

) बसंत पंचमी

बसंत पंचमी हिन्दुओ का प्रमुख त्यौहार है और बसंत पचमी को श्री पंचमी और ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है । यह त्यौहार माघ के महीने में शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है | पुरे वर्ष को 6 ऋतूओ में बाँटा जाता है , जिसमे वसंत ऋतू , ग्रीष्म ऋतू ,वर्षा ऋतू , शरद ऋतू , हेमंत ऋतू और शिशिर ऋतू शामिल है | इस सभी ऋतूओ में से वसंत को सभी ऋतूओ का राजा माना जाता है , इसी कारण इस दिन को बसंत पंचमी कहा जाता है तथा इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है | इस ऋतु में खेतों में फसले लहलहा उठती है और फूल खिलने लगते है एवम् हर जगह खुशहाली नजर आती है तथा धरती पर सोना उगता है अर्थात धरती पर फसल लहलहाती है । मान्यता है कि इस दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ था इसलिए बसंत पचमी के दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है । माँ सरस्वती को विद्या एवम् बुद्धि की देवी माना जाता है | बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती से विद्या, बुद्धि, कला एवं ज्ञान का वरदान मांगा जाता है । इस दिन लोगों को पीले रंग के कपडे पहन कर पीले फूलो से देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए एवम् लोग पतंग उड़ाते और खाद्य सामग्री में मीठे पीले रंग के चावाल का सेवन करते है | पीले रंग को बसंत का प्रतीक माना जाता है | बसंत पंचमी का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है | इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे एक पौराणिक कथा है | सर्वप्रथम श्री कृष्ण और ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती की पूजा की थी | देवी सरस्वती ने जब श्री कृष्ण को देखा तो वो उनके रूप को देखकर मोहित हो गयी और पति के रूप में पाने के लिए इच्छा करने लगी | इस बात का भगवान श्री कृष्ण को पता लगने पर उन्होंने देवी सरस्वती से कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित है परन्तु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण देवी सरस्वती को वरदान देते है कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाले को माघ महीने की शुल्क पंचमी को तुम्हारा पूजन करेंगे | यह वरदान देने के बाद सर्वप्रथम ही भगवान श्री कृष्ण ने देवी की पूजा की |

) राम नवमी

रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था| रामनवमी का त्यौहार विष्णु के अवतार में भगवान श्री राम जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है श्री राम जी का जन्म त्रेतायुग में हुआ था| जिसका वर्णन आज भी आदिकाव्य एवं वाल्मिकी में भी उपलब्ध है| यज्ञ सम्पति के बाद जब छह ऋतुये बीत गयी, तब बार्वह्वे मास में चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि में, पुनर्वसु नक्षत्र में एवं कर्क लग्न में, कौशल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त, सभी के प्रिय जगदीश्वर श्री राम को जन्म दिया| उस समय पांच ग्रह (सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र) अपनी उच्च स्थान में थे|

जिसने जिस रूप में जिस भाव में श्री राम का ध्यान किया उसी प्रकार पूजा स्तुति की विधि एवं परंपरा चली रही है प्राय: कुछ लोग पूजा, व्रत, हवन, दान आदि करते है और रामनवमी के दिन हिन्दू लोग श्री रामचरितमानस की कांड पढ़ते है एवं भजन कीर्तन करते है|    

 

) हरियाली तीज  

हरियाली तीज को सावन के विशेष पर्वों में से एक माना जाता है| ये दिन सुहागिन महिलाओं और कन्याओं के लिए सौभाग्य का दिन होता है| लेकिन आखिर क्यों इस दिन को महिलाओं के लिए खास माना जाता है, हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है| ये दिन महादेव और माता पार्वती को समर्पित होता है| मान्यता है कि इसी दिन महादेव ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें विवाह के लिए हां कहा था| इसलिए इस दिन को भोलेनाथ और माता पार्वती के मिलन का दिन माना जाता है और सुहागिन महिलाओं और कन्याओं के लिए काफी शुभ कहा जाता है| इस बार हरियाली तीज 11 अगस्त बुधवार के दिन मनाई जाएगी| मान्यता है कि हरियाली तीज के दिन माता पार्वती और महादेव का पूजन करने से विवाहित स्त्री का वैवाहिक जीवन सुखमय हो जाता है और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है| जानिए श्रावण मास से जुड़ी शिव पार्वती की कथा|

हरियाली तीज कथा

पौराणिक कथा के अनुसार माता सती ने हिमालयराज के घर पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया था|  तब उन्होंने शिव को पति के रूप में पाने की कामना की थीं| लेकिन तभी नारद मुनि राजा हिमालय से मिलने उनके पास गए और माता पार्वती से शादी के लिए भगवान विष्णु का नाम सुझाया| इससे हिमालयराज बहुत प्रसन्न हुए और पार्वती का विवाह विष्णु जी से कराने को तैयार हो गए| जब माता पार्वती को ये पता चला कि उनका विवाह विष्णु भगवान से तय कर दिया गया है तो वो काफी निराश हो गईं| दुख में आकर वो एकांत जंगल में चली गईं| उन्होंने वहां रेत से शिवलिंग बनाया और महादेव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए अनेक वर्षों तक कठोर तप किया था|उन्होंने तपस्या के दौरान अन्न जल त्याग दिया था| उस समय माता पार्वती सूखे पत्ते चबाकर अपना दिन व्यतीत करती थीं| उस समय माता पार्वती के सामने कई तरह की चुनौतियां आयीं, लेकिन उन्होंने किसी बात की परवाह नहीं की| जब गिरिराज को अचानक पार्वती जी के गुम होने की सूचना मिली तो उन्होंने उनकी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन वो नहीं मिलीं| उस समय माता पार्वती वन में एक गुफा के अंदर शिव की आराधना में लीन थीं| आखिरकार माता पार्वती के तप के आगे शिवजी को विवश होना पड़ा और वो  श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करते हुए इच्छा पूर्ति का वरदान दे दिया| इसके बाद उनके पिता जब उन्हें ढूंढते हुए वन में पहुंचे तो पार्वती जी ने साथ जाने से इंकार कर दिया और एक शर्त रखी कि मैं आपके साथ तभी चलूंगी जब आप मेरा विवाह महादेव के साथ करेंगे| हारकर पर्वतराज को पुत्री पार्वती हठ माननी पड़ी और वे उन्हें घर वापस ले गए| कुछ समय बाद पूरे विधि-विधान के साथ शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ| इस लिए श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महादेव और माता पार्वती के मिलन का दिन कहा जाता है| शिव जी ने इस दिन माता पार्वती के तप से प्रसन्न होकर कहा था कि इस दिन तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका| आज के बाद जो भी स्त्री इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करेगी उसे मैं मन वांछित फल दूंगा| उस स्त्री को तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा| इसलिए ये दिन सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं दोनों के लिए सौभाग्य का दिन माना जाता है|

) होली

रंगों के त्यौहारके तौर पर मशहूर होली का त्योहार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्योहार, हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है।

 

हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।

 

“लेकिन रंग होली का भाग कैसे बने? यह कहानी भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के समय तक जाती है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्योहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ। वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मज़ाक भरी शैतानियां करते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती। होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को वसंत महोत्सवया काम महोत्सवभी कहते हैं। होली प्राचीन हिंदू त्यौहारों में से एक है और यह ईसा मसीह के जन्म के कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है। प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं। कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है।

 

पहले होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों की परिभाषा बदलती गई। आज के समय में लोग रंग के नाम पर कठोर रसायन का उपयोग करते हैं। इन खराब रंगों के चलते ही कई लोगों ने होली खेलना छोड़ दिया है। हमें इस पुराने त्यौहार को इसके सच्चे स्वरुप में ही मनाना चाहिए।

होली एक दिन का त्यौहार नहीं है। कई राज्यों में यह तीन दिन तक मनाया जाता है।

 

दिन 1 – पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है।

दिन 2 – इसे पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मांएं अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं।

दिन 3 – इस दिन को पर्वकहते हैं और यह होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।

 

 

) नवरात्री एवं दशहरा

नवरात्री, भारत का एक प्रमुख त्यौहार है| मुख्यतः साल में 2 बार पुरे भारत में नवरात्री का त्यौहार मनाया जाता है| लेकिन दोस्तो, इस आधुनिक समय में हम अपने रीती रिवाजों और धर्म से बहुत दूर हो गए हैं| आपके मन में भी प्रश्न होगा की, नवरात्रे (नवरात्री) क्यों मनाते हैं और इसका महत्त्व क्या है| नवरात्री एक संस्कृत शब्द है,जिसका अर्थ है नौ रातें’| इन नौ दिन माँ शक्ति दुर्गा के 9 रूपों की विधि विधान से पूजा की जाती है| भारत के अलग क्षेत्रों में नवरात्री का अपना एक अलग महत्त्व है| जहाँ पश्चिम बंगाल में देवी शक्ति को माँ दुर्गा और काली के रूप में पूजा जाता है| वाही उत्तर भारत में भगवान् श्री राम की रावण पर विजय के रूप में भी यह त्यौहार मनाया जाता है| दक्षिण भारत में नवरात्रों के प्रथम दिन गुडी पड़वा तेलगु में उगदी का त्यौहार भी मनाया जाता है| मुख्यतः हिन्दुओ में यह त्यौहार असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है| जहाँ माता शक्ति ने दुर्गा का रूप धारण कर असुरो का नाश किया और भगवान् श्री राम ने रावण का वध कर प्रजा को एक दुष्ट राजा से छुटकारा दिलाया| हिन्दू धर्म ग्रंथों शक्ता और वैष्णव पुराण के अनुसार साल में चार बार नवरात्रे आते हैं| लेकिन हिन्दू कैलेंडर के अनुसार 2 नवरात्रे ही प्रमुख हैं|

 

 पहला है

 

रावण के विरुद्ध युद्ध मे विजय प्राप्त करने के लिए श्रीराम जी ने ब्रह्माजी के सुझाव पर माँ दुर्गा (चंडी) देवी को प्रसन्न करने के लिए हवन की व्यवस्था की| इस हवन के लिए दुर्लभ एक सौ आठ (108) नीलकमल का प्रबंध किया गया. अमरता की चाह मे रावण ने भी चंडी पूजा प्रारम्भ की|

 

रावण ने अपनी शक्ति से एक नीलकमल दुर्गा (चंडी) पूजन की हवन सामग्री से गायब कर दिया| जिससे श्रीराम के संकल्प टूटने और देवी के रुष्ट होने का भय था| तब भगवान राम को स्मरण हुआ कि उन्हें लोग कमलनयन नवकंच लोचनकहते हैं, तो क्यों संकल्प पूरा करने के लिए अपना एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए| अपने बाण से अपना नेत्र निकालने ही वाले थे की देवी प्रकट हो गयी और श्रीराम से प्रसन्न हुई और उन्हे विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में हनुमान ब्राहमण का रूप धारण कर यज्ञ में शामिल हो गए| हनुमानजी का ज्ञान और सेवा भाव देखकर ब्राह्मण खूश हो गए और उनसे वरदान माँगने को कहा। इस पर हनुमानजी ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे है, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। मंत्र में जयादेवीभूर्तिहरिणी में के स्थान पर उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और करिणीका अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। श्रीराम जी के द्वारा किया गया 9 दिन का चंडी पाठ और यज्ञ आज भी नवरात्री के रूप में मनाया जाता है|

Enjoyed this article? Stay informed by joining our newsletter!

Comments

You must be logged in to post a comment.

About Author