भू-जैव रासानिक चक्रण (Geobiochemical Cycle ) क्या है ?

भू-जैव रासानिक चक्रण (Geobiochemical Cycle) :-

जीवमंडल के जैविक और अजैविक घटकों के बीच का सामंजस्य जीवमंडल को गतिशील और स्थिर बनाता है। इस सामंजस्य के द्वारा जीवमंडल के विभिन्न घटकों के बीच पदार्थ और ऊर्जा का स्थानांतरण होता है। आइए देखते हैं कि वे कौन-कौन सी क्रियाएँ हैं जो संतुलन को बनाए रखती हैं।

ऑक्सीजन-चक्र

ऑक्सीजन पृथ्वी पर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व है। इसकी मात्रा मूल रूप में वायुमंडल में लगभग 21 प्रतिशत है। यह बड़े पैमाने पर पृथ्वी के पटल के जल व अन्य यौगिकों के रूप में तथा वायु में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में भी पाई जाती है। पृथ्वी के पटल में यह धातुओं तथा सिलिकन के ऑक्साइडों के रूप में पाई जाती है। यह कार्बोनेट, सल्फेट, नाइट्रेट तथा खनिजों के रूप में भी पाई. जाती है। यह जैविक अणुओं जैसे कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल और वसा (अथवा लिपिड) का भी एक आवश्यक घटक है।

लेकिन जब हम ऑक्सीजन-चक्र के बारे में बात करते है तब हम मुख्यतः उस चक्र को निर्देशित करते हैं जो ऑक्सीजन की मात्रा को वायुमंडल में संतुलित बनाए रखता है। वायुमंडल से ऑक्सीजन का उपयोग तीन प्रक्रियाओं में होता है, जिनके नाम हैं: श्वसन, दहन तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड के निर्माण में। वायुमंडल में ऑक्सीजन केवल एक ही मुख्य प्रक्रिया, जिसे प्रकाशसंश्लेषण कहते हैं, के द्वारा लौटती है। इस प्रकार से प्रकृति में ऑक्सीजन-चक्र की रूपरेखा बनती है।

यद्यपि हम जीवन में श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन को महत्वपूर्ण मानते हैं, परन्तु कुछ जीव मुख्यतः बैक्टीरिया, तत्वीय ऑक्सीजन द्वारा जहरीले हो जाते हैं। वास्तव में, बैक्टीरिया के द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में नहीं होती।

कार्बन -चक्र

कार्बन पृथ्वी पर बहुत सारी अवस्थाओं में पाया है। यह अपने मूल रूप में हीरा और ग्रेफाइट में पाया जाता है। यौगिक के रूप में वह वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में, विभिन्न प्रकार के खनिजों में कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है। जबकि सभी जीवरूप कार्बन आधारित अणुओं; जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स वसा, न्यूक्लिक अम्ल और विटामिन पर आधारित होते हैं। बहुत सारे जंतुओं के बाहरी और भीतरी कंकाल भी कार्बोनेट लवणों से बने होते है। प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया, जो सूर्य की उपस्थिति में उन सभी ई पौधों में होती है जिनमें कि क्लोरोफिल होता है, द्वारा कार्बन जीवन के विभिन्न प्रकारों में समाविष्ट होता है। यह प्रक्रिया वायुमंडल या जल में घुले कार्बन डाइऑक्साइड को ग्लूकोस अणुओं में बदल देती है। ये ग्लूकोस अणु या तो दूसरे पदार्थों र में बदल दिए जाते हैं या ये दूसरे जैविक रूप से महत्वपूर्ण अणुओं के के लिए ऊर्जा प्रदान करते है ।

जीवित प्राणियों को ऊर्जा प्रदान करने की प्रक्रिया में ग्लूकोस का उपयोग होता है। श्वसन की क्रिया द्वारा ग्लूकोस को कार्बन डाइऑक्साइड में बदलने के लिए ऑक्सीजन का प्रयोग हो भी सकता है और नहीं भी यह कार्बन डाइऑक्साइड पुनः वायुमंडल में चली जाती है। दहन की क्रिया जहाँ ईंधन का उपयोग खाना पकाने: गर्म करने, यातायात और उद्योगों में होता है. के द्वारा वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड का प्रवेश होता है। वास्तव में, जब से औद्योगिक क्रांति हुई है और मानव ने बहुत बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन को जलाना शुरू किया है तब से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो गई है। जल की तरह कार्बन का भी विभिन्न भौतिक एवं जैविक क्रियाओं के द्वारा पुनर्चक्रण होता है।

 नाइट्रोजन चक्र

हमारे वायुमंडल का लगभग 78 प्रतिशत भाग नाइट्रोजन गैस है। यह गैस जो जीवन के लिए आवश्यक बहुत सारे अणुओं का भाग है; जैसे प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल, डी.एन.ए. और आर एन ए तथा कुछ विटामिन नाइट्रोजन दूसरे जैविक यौगिकों में भी पाया जाता है, जैसे-ऐल्केलॉइड तथा यूरिया। इसलिए नाइट्रोजन सभी प्रकार के जीवों के लिए एक आवश्यक पोषक है। सभी जीवरूपों द्वारा वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन, गैस के प्रत्यक्ष उपयोग से जीवन सरल हो जाएगा। लेकिन प्रकृति में ऐसा नहीं होता है। यद्यपि कुछ प्रकार के बैक्टीरिया को छोड़कर दूसरे जीवरूप निष्क्रिय नाइट्रोजन परमाणुओं को नाइट्रेट्स तथा नाइट्राइट्स जैसे दूसरे आवश्यक अणुओं में बदलने में सक्षम नहीं है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले ये बैक्टीरिया या तो स्वतंत्र रूप से रहते हैं या द्विबीजपत्री पौधों की कुछ जातियों के साथ पाए जाते हैं। साधारणत से नाइट्रोजन को स्थिर करने वाले बैक्टीरिया फलीदार पौधों की जड़ों में एक विशेष प्रकार की संरचना (मूल ग्रंथिका) में पाए जाते हैं। इन बैक्टीरिया के अलावा नाइट्रोजन परमाणु नाइट्रेट्स और नाइट्राइट्स में भौतिक क्रियाओं के द्वारा बदलते हैं। बिजली चमकने के समय वायुमण्डल में पैदा हुआ उच्च ताप तथा दाब नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के ऑक्साइड में बदल देता है। ये ऑक्साइड जल में घुलकर नाइट्रिक तथा नाइट्रस अम्ल बनाते हैं और वर्षा के साथ भूमि की सतह पर गिरते है। तब इसका उपयोग विभिन्न जीवरूपों द्वारा किया जाता है। 

नाइट्रोजन-संयोजी अणु बनाने में प्रयुक्त होने वाले सप के निर्माण के पश्चात् नाइट्रोजन का क्या होता है? सामान्यत पौधे नाइट्रेट्स और नाइट्राइट्स को ग्रहण करते हैं तथा उन्हें अमीनो अम्लों में बदल देते हैं जिनका उपयोग प्रोटीन बनाने में होता है। कुछ दूसरे जैव रासायनिक विकल्प है इनका प्रयोग नाइट्रोजन वाले दूसरे जटिल यौगिकों को बनाने में होता है। इन प्रोटीनों और दूसरे जटिल यौगिकों का प्रयोग जंतुओं द्वारा किया जाता है। जब जंतु या पौधे की मृत्यु हो जाती है। तो मिट्टी में मौजूद अन्य बैक्टीरिया विभिन्न यौगिकों में स्थित नाइट्रोजन को नाइट्रेट्स और नाइट्राइट्स में बदल देते हैं तथा अन्य तरह के बैक्टीरिया इन नाइट्रेट्स एवं नाइट्राइट्स को को नाइट्रोजन तत्व में बदल देते हैं। इसी प्रकार प्रकृति में एक नाइट्रोजन चक्र होता है जिसमें नाइट्रोजन वायुमंडल में अपने ब्ले मूल रूप से गुजरता हुआ मृदा और जल में साधारण परमाणु के रूप में बदलता है तथा जीवित प्राणियों में और अधिक जटिल यौगिक के रूप में बदल जाता है। फिर ये साधारण परमाणु के रूप में वायुमंडल में वापस आ जाता है ।

तो इस तरह भू-जैव रासानिक चक्रण (Geobiochemical Cycle) हमारे वातावरण के जैविक और अजैविक घटकों के बीच संतुलन बनता है । यह भू-जैव रासानिक चक्रण (Geobiochemical Cycle) ऑक्सीजन-चक्र , कार्बन -चक्र और नाइट्रोजन - चक्र के रूप मे मिलती है । जिनको आप लोग बेहतर ढंग से समझ ही चूके है । इन तीनो ही चक्रो कि सहायता से हमारी वातावरण और हमारे जीवमंडल के विभिन्न घटकों के बीच पदार्थ और ऊर्जा का स्थानांतरण होता है। 

 

 

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