पैसा आने के बाद क्यों बदल जाते हैं लोग

लोग अक्सर एक-दूसरे को कहते हैं कि पैसे के पीछे मत भागो, अकेले रह जाओगे. फिर भी पूरी दुनिया में लोग पैसे के पीछे ही दीवानों की तरह भागते नज़र आते हैं.

अक्सर हम देखते हैं कि जिन लोगों के पास बहुत सारा पैसा होता है, वो अकेले हो जाते हैं. सिर्फ़ चापलूस और मतलबी लोग उनके क़रीब रह जाते हैं.

 

#आख़िर ऐसा क्यों है?

 

इस सवाल का जवाब कुछ मिसालों से तलाशने की कोशिश करते हैं.

अमरीका की सैंडी स्टेन को ही लें. बरसों तक तमाम तरह की नौकरियां करने के बाद आख़िर में उन्हें कामयाबी मिली. 53 साल की उम्र में उन्होंने महिलाओं के लिए काफ़ी मददगार एक चीज़ का आविष्कार किया. उन्होंने महिलाओं के पर्स के साथ लगने वाले 'फाइंडर्स की' को बनाया. जिससे महिलाओं को अपने पर्स में से चाभियां निकालने में वक़्त बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं रही.

 

इस आविष्कार से सैंडी, रातों-रात करोड़पति बन गईं. नया घर, नई गाड़ी ख़रीद डाली. लेकिन अभी सैंडी इस कामयाबी का जश्न भी ठीक से नहीं मना सकी थीं कि उनकी ज़िंदगी में सूनापन आ गया. पति से तलाक़ हो गया. क्योंकि पति को अपनी बीवी की कामयाबी से जलन हो गई थी. कई दोस्त भी सैंडी से दूर हो गए. सैंडी कहती है कि आपकी कामयाबी से लोग जल उठते हैं. ये आम बात है.

 

लेकिन कामयाबी के साथ अकेलापन आने के बावजूद लोग पैसे का मोह तो छोड़ नहीं सकते. हां, इससे तकलीफ़ ज़रूर होती है. भले ही कामयाब इंसान की ज़िंदगी आपको दिलकश लगे.

# क्या बदलाव आते हैं किरदार में

ब्रिटिश एक्सपर्ट स्टीफ़न गोलबर्ट कहते हैं कि शोहरत और कामयाबी का इंसान की ज़िंदगी पर गहरा असर पड़ता है. कई लोगों के लिए ये तकलीफ़देह तजुर्बा भी हो सकता है. कामयाबी के साथ आने वाला अकेलापन आपका किरदार बदल सकता है.बहुत से लोग अमीर होने, कामयाब होने के ख़्वाब देखते हैं. मगर उन्हें कामयाबी के साथ आने वाले अकेलेपन से निपटने का तरीक़ा नहीं मालूम होता.

 

आपके पास पैसे आने पर जब दोस्त दूरी बनाना शुरू करते हैं, या कुछ बनावटी दोस्त आपको घेर लेते हैं. घरवाले आपके पैसों को अपना समझकर मशविरे देने शुरू कर देते हैं. हक़ जताने लगते हैं. ऐसे हालात से कैसे निपटें, बहुत से लोगों को ये मालूम नहीं होता.

 

पैसे आने पर बहुत से लोगों का बर्ताव बदल जाता है. वे बेहिसाब पैसे ख़र्च करने शुरू कर देते हैं. जिन चीज़ों में उनकी पहले दिलचस्पी होती थी, वो उसके बजाय कुछ और काम अच्छा मानने लगते हैं. इससे लोगों के पुराने साथी किनारा कर लेते हैं. वहीं कुछ नए चापलूस और मतलबी लोग आपके क़रीब आने की, आपसे फ़ायदा लेने की कोशिश में जुट जाते हैं.

 

# क्या सच्चे साथी की तलाश करते हैं

जब आपके आस-पास लोगों का आपको लेकर बर्ताव बदलता है, तो ज़ाहिर है आप उनकी नीयत पर शक करते हैं. परिवार के लोगों के दुलार, दोस्तों के अचानक उमड़ पड़े प्यार के पीछे का मतलब तलाशने लगते हैं. ऐसे में बहुत से कामयाब लोग ख़ुद को एक खोल में जकड़ लेते हैं.

अक्सर, ऐसी सूरत में लोग अपनी तरह के साथी तलाशने लगते हैं. जो कामयाब हों, जिनके पास पैसे हों. फिर उन लोगों के बीच में सच्चे साथी की तलाश करते हैं जो नया-नया प्यार जताने लगते हैं. ऐसे सवालों से निपटना आसान नहीं होता असल में अमीरी के साथ आपकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. आपको उन लोगों से नज़दीकी बढ़ाने की ज़रूरत होती है, जो काम आगे बढ़ाने में आपकी मदद कर सकें. ऐसे में कई बार लोग पुराने साथियों को कम वक़्त दे पाते हैं.

 

# वक़्त बिताना कम होने से दूरियां आनी तय होती हैं.

पुराने दोस्तों को लगता है कि उनके पास पैसे आ गए हैं इसीलिए अब वो दोस्त, दोस्त नहीं रहा. अगर उनकी पार्टी में, दूसरे आयोजनों में वक़्त की कमी के चलते नहीं पहुंचे, तो, दोस्ती में पड़ी दरार, खाई में तब्दील हो जाती है. साथ वक़्त बिताना कम होने से दूरियां आनी तय होती हैं.

 

हालांकि ज़्यादा उम्र में अमीर होने वाले लोगों को इतना अकेलापन नहीं झेलना पड़ता. क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ ये माना जाने लगता है कि आप ज़्यादा पैसे कमाएंगे.

 

सैंडी स्टीन ने अकेलेपन से निपटने के लिए नए दोस्त बना लिए हैं. सैंडी ने अपनी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों के साथ वक़्त बिताना शुरू किया. इससे काम भी बेहतर हुआ और उन्हें नए साथी भी मिल गए.

अभी हाल ही में वे अपने ख़र्च पर सबको उत्तरी ध्रुव की सैर पर ले गईं. सैंडी ने अपने संघर्ष के दिनों के साथियों से भी फिर से दोस्ती गांठ ली है.

 

# अकेलेपन से निपटने का सबसे अच्छा तरीक़ा है.

 

पैसा सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ जरूर है.’ ऐसा कहने के पीछे लोगों की मंशा साफ़ समझ आती है कि वे पैसे को महत्वपूर्ण तो बताना चाहते हैं लेकिन खुद को पैसा परस्त बताने से भी बचना चाहते हैं. हम सब इस बात को बखूबी समझते हैं कि बहुत हद तक पैसा सब कुछ है और उस हद के आगे निकल जाने पर कुछ भी नहीं. वैसे अक्सर यह भी कहा जाता है कि पैसा अगर नहीं है तो सबसे बड़ा है और अगर है तो फिर वह उतना बड़ा नहीं रह जाता. हालांकि यह बात पैसे के साथ-साथ और भी कई चीजों, यहां तक कि इंसानों पर भी पूरी तरह से लागू होती है. यानी जो उपलब्ध है उसका महत्व तब तक पता नहीं चलता जब तक उसके बिना काम चलाने का मौका न आ जाए.

 

सीधी बात ये है कि पैसे की कद्र करने के पीछे हमारी जरूरतें होती हैं. पैसे का बड़प्पन इस बात से बढ़ता है कि हमारी जरूरत कितनी बड़ी है. अगर हमारे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है तो उस वक्त पैसा हमारे लिए सबसे बड़ी चीज हो सकता है. इसके बाद अगर हमारे पास पहनने के लिए कुछ नहीं है तो पैसा थोड़ा घटे कद के साथ हमारे सामने आकर खड़ा होता है. हमारी जरूरतों की प्राथमिकता जिस हिसाब से बदलती जाती है, पैसे का कद भी उस हिसाब से घटता जाता है.

 

# भारती में हमेशा पैसे को मिट्टी या हाथ का मैल बताने की परंपरा रही है

इसके पीछे लोगों को मेहनतकश और आत्मनिर्भर बनाने का उद्देश्य रहा है. अगर कुछ दशक पहले के समय में जाकर देखें तो पता चलता है कि भारत में लोग खाने-पीने का इंतजाम खुद ही करने पर जोर देते थे. गांवों में खेती, सब्जी उगाना और गाय भैंस पालना लोगों का प्रमुख काम हुआ करता था. और तो और शहरों में भी किचन गार्डन नजर आ जाते थे. यह आत्मनिर्भरता की फितरत लोगों को पैसे के सम्मोहन से बचाने के लिए होती थी.

 

.पैसे के बारे में एक आम राय है कि हर चीज पैसे से नहीं खरीदी जा सकती. जो चीजें पैसे से नहीं खरीदी जा सकतीं उन्हें भी पैसा कहीं न कहीं प्रभावित करता ही है

 

# पैसे पर लोगों की आत्मनिर्भरता क्यों बड़ी

वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी सभ्यताओं ने एक ही व्यक्ति द्वारा सारे काम कर लेने के बजाय हर व्यक्ति को एक विशेष काम सौंपने और उसमें विशेषज्ञता हासिल करने पर जोर दिया है. यह प्रवृत्ति पैसों पर लोगों की निर्भरता बढ़ा देती है. इस तंत्र का सिद्धांत यह होता है कि किसी एक काम को जानने वाला व्यक्ति उसके जरिये पैसे कमाएगा और उससे अपनी बाकी जरूरतें पूरी करेगा. यह सिद्धांत बहुत हद तक सही और सुविधाजनक दोनों है. विशेषज्ञता के बजाय आत्मनिर्भर होने के क्रम में व्यक्ति के पास एक साथ कई संसाधनों का मौजूद होना जरूरी है. जैसे अगर किसी के पास जमीन है तो ही वह खेती कर पाएगा और अपने भोजन का इंतजाम खुद कर पाएगा. बाकी जरूरतों के लिए भी उसके पास कम से कम प्रारंभिक संसाधन होने जरूरी हैं. ऐसा न होने की स्थिति में उसके सामने जीवन का संकट पैदा हो सकता है.

 

# पैसे से अब इंसान की कीमत भी तय होती है.

पैसा न सिर्फ वस्तुओं की कीमत आंकने का जरिया है बल्कि पैसे से अब इंसान की कीमत भी तय होती है. यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है लेकिन कुछ अलग मायनों में सच है. इंसान की कीमत उसके काम से तय होती है. काम करने के लिए उसे पैसे मिलते हैं. कोई व्यक्ति जितना कमा रहा है और वक्त के साथ उसके कमाए पैसों में जितनी बढ़ोत्तरी हो रही है, यही उस आदमी की बढ़ती कीमत और बढ़ते महत्व का इकलौता मानक होती है.

 

अगर पैसा बड़ा नहीं होता तो मिट्टी ढोने वाले मजदूर को सॉफ्टवेयर बनाने वाले इंजीनियर से ज्यादा महत्व मिलता क्योंकि वह ज्यादा शारीरिक श्रम कर रहा है. काम की प्रकृति और उस काम से कितने लोगों की जिंदगी में फर्क पड़ रहा है, यह बातें किसी व्यक्ति का महत्व निर्धारित करती हैं. काम की कीमत, पैसा और व्यक्ति की कीमत आपस में संबंधित हैं और एक दूसरे से प्रभावित हैं.

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