पिछले कुछ वर्षों में अण्टार्कटिक महाद्वीप चर्चा का विषय बना हुआ है

आज हम ध्रुवीय प्रदेश अण्टार्कटिक महाद्वीप बारे में जानेंगे 

आप पहले ध्रुव को समझ लें । ताकि आप विषय को अच्छी तरह से समझ सकें। पृथ्वी के अक्ष के सिरे को 'ध्रुव' कहा जाता है। यह ध्रुव प्रदेश अत्यंत बर्फीला स्थान है। इस ध्रुव को दो भागों में बांटा गया है, जो इस प्रकार हैं। 

* उत्तरी ध्रुव

* दक्षिणी ध्रुव

इस प्रकार प्रत्येक ध्रुव का अक्षांश 90 अंश है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव इन दोनों ध्रुवों की खोज संयुक्त राज्य अमेरिका के एक व्यक्ति ने की थी। उस व्यक्ति का नाम था राबर्ट पियरे। 

अब आप उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव को समझे। आप सभी जानते हैं कि हमारी पृथ्वी घूमती है और यह भी जानते हैं कि पृथ्वी गोल है। आप किसी घूमते हुए पहिये को देखें। पहिया एक कील पर यानी केन्द्र पर घूमता है। इस कील अथवा केन्द्र को 'धुरी' कहते हैं। ठीक इसी तरह पृथ्वी भी घूमती है। पहिये और पृथ्वी के घूमने में फर्क इतना है कि पृथ्वी बिना किसी धुरी के घुमती है। पृथ्वी के बीचों बीच एक रेखा मान ली गयी है। इसी रेखा को पृथ्वी की धुरी यानी 'अश' कहते हैं। इसका ऊपरी सिरा 'उत्तरी ध्रुव और निचला सिरा 'दक्षिणी ध्रुव कहलाता है। 

पिछले कुछ वर्षों से दक्षिणी ध्रुव चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा का कारण इस ध्रुव पर स्थिति अण्टार्कटिक महाद्वीप है। अण्टार्कटिक महाद्वीप खनिज संपदा के कारण पूरे विश्व में चर्चित है। इसी दक्षिणी ध्रुव पर स्थित अण्टार्कटिक महाद्वीप की भौतिक दशा, प्राकृतिक संसाधनों और इस कारण इस क्षेत्र के राजनीतिक महत्व के बारे में जानना चाहेंगे कि इस महाद्वीप का नाम 'अण्टार्कटिक' क्यों रखा गया है। अइये जानते है आर्कटिक सागर की उल्टी दिशा में होने के कारण इसका नाम 'अण्टार्कटिक रखा गया। इसे आप अण्टार्कटिक सागर अथवा महासागर समझने की भूल न कर बैठिएगा यह बात आप अच्छी तरह से समझ लें कि जिस अण्टार्कटिक की यहां पर चर्चा की गई है, वह एक महाद्वीप है, जो पूरी तरह से स्वतंत्र है। 

यह महाद्वीप बहुत अद्भुत है। आज से लगभग 25 करोड़ वर्षों पहले यह महाद्वीप अफ्रीका, भारतीय प्रायद्वीप, आस्ट्रेलिया और दक्षिणी अमेरिका से जुड़ा हुआ था लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। आज से लगभग 5 करोड़ वर्षों पहले ये सभी महाद्वीप एक दूसरे से पूरी तरह से अलग हो गये थे। आज से लगभग 200 वर्षों पहले तक अण्टार्कटिक महाद्वीप की जानकारी किसी को नहीं थी, किन्तु आज की स्थिति कुछ और ही है। अनेक देशों ने यहां अपने अभियान दलों को भेजकर इस महाद्वीप के कई नये भू-भागों की खोज की है। दुनिया के 13 देशों ने यहां अपने स्थानी केन्द्र बना लिये है। इन देशों में रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, जापान, फ्रांस नार्वे, न्यूज़ीलैंड, इंग्लैंड आदि देश शामिल हैं। 

इन दिनों अण्टार्कटिक महाद्वीप में विश्व के कई अभियान दलों के सदस्य रहे हैं। इनसे भारत के भी सदस्य अण्टार्कटिक में रहकर वहां की सारी जानकारी एकत्र करने में लगे हैं। मज़े की बात है कि यहां से एक अख़बार भी प्रकाशित होता है, जिसका नाम है- मैक मुडों समटाइम्स। इन सारी बातों को समझने से लगता है कि जिस महाद्वीप पर अभी तक प्रदूषण की परछाई नहीं पड़ी है, वह शीघ्र ही प्रदूषण के ज़हर से भर जायेगा। 

पृथ्वी की सतह पर अण्टार्कटिक का फैलाव 1.42 करोड़ वर्ग। किलोमीटर है। यह पृथ्वी के 7 महाद्वीपों में सर्वाधिक ठण्डा, सूखा और दुर्गम महाद्वीप है। इसका क्षेत्रफल पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का 1/10 भाग है। क्षेत्रफल की दृष्टि से अण्टार्कटिक संयुक्त रूप से आस्ट्रेलिया, यूरोप और भूमध्य-रेखा के दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप के क्षेत्रफल से बड़ा है। यही नहीं, अण्टार्कटिक का क्षेत्रफल संयुक्त रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको से अथवा भारत और चीन के मिले हुए क्षेत्रफल से भी बड़ा है। 

अण्टार्कटिक का 1/10 भाग सबसे कम 1.6 किलोमीटर और सबसे अधिक 4.5 किलोमीटर मोटी बर्फ की परत से हमेशा ढ़ंका रहता है। इस बर्फ़ का कुल आयतन 3 करोड़ घन टन है। यदि यह कुल बर्फ़ गल जाए तो पृथ्वी के सभी समुद्रों का जल स्तर 50 से 60 मीटर ऊंचा हो जायेगा। इस क्षेत्र के मध्य में एक विशाल झील नज़र आयेगी । यह झील समुद्र के जलस्तर के 2,500 मीटर नीचे होगी। वहीं पश्चिमी अण्टार्कटिक अलग अलग द्वीपों का एक समूह नज़र आयेगा‌।

अण्टार्कटिक की औसत ऊंचाई 1,830 मीटर है। सवार्धिक 'विसन मैसिफ' नामक पहाड़ की है। यह पहाड़ 5,180 मीटर ऊंचा है। अण्टार्कटिक में जहां बर्फ़ नहीं है, उस भाग का क्षेत्रफल 2 लाख वर्ग किलोमीटर है। फिर अण्टार्कटिक का अधिकांश भाग सूखा रहता है। केवल कुछ भागों में यहां वर्ष भर में 15 सेन्टीमीटर वर्षा होती है। अण्टार्कटिक में वर्ष 6 महीनों तक दिन और 6 महीनों तक रात होती है। जब अपने देश भारत में ग्रीष्म ऋतु चल रही होती है, जब अण्टार्कटिक में शीत ऋतु होती है। ग्रीष्म ऋतु के दौरान यहां का आकाश साफ़ रहता है। लम्बे दिनों होने के कारण अण्टार्कटिक प्रदेश में सूर्य की ऊष्मा अधिक पहुंचती है। फिर भी बर्फ़ की सतह से 80-90 प्रतिशत सौर विकिरण परावर्तित होती रहती है। शीत ऋतु की लम्बी रात के दौरान सौर ऊष्मा का प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता। शीत ऋतु के समय अण्टार्कटिक का तापमान 88 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। और पृथ्वी का न्यूनतम तापमान अण्टार्कटिक के 'वोस्तक' नामक स्थान पर अंकित किया गया है। 

यहां तूफानी बर्फ़ली हवाएं निरन्तर 45 किलोमीटर से 300 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलती हैं। वर्ष भर में अण्टार्कटिक के भीतरी भाग में 23 किलोमीटर तथा बाहरी भागों में 5 सेन्टीमीटर बर्फ़ गिरती है। आज से 25 करोड़ वर्षों पहले आस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, अफ्रीका, भारतीय प्रायद्वीप, मेडागास्कर तथा अण्टार्कटिक एक संयुक्त भू-खंड थे। इसे भू-विज्ञानिको ने 'गोडवानालैण्ड' नाम दिया है। यह नाम प्राचीन भारत में नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित 'गोड' राज्य से लिया गया। लगभग 14 करोड़ वर्षों पूर्व अफ्रीका अण्टार्कटिक से अलग-थलग हो गया था। लगभग 5 करोड़ वर्षों पूर्व भारत और आस्ट्रेलिया भी अण्टार्कटिक से अलग हो गए थे। यद्यपि अण्टार्कटिक और आर्कटिक दोनों धुवीय महाद्वीप है तथापि दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं। अण्टार्कटिक में बर्फ़ की परत अधिकांश ठोस चट्टान पर टिकी हुई है। यह बर्फ़ स्वयं निरन्तर चट्टान का निर्माण करती आयी है, जबकि आर्कटिक एक महाखण्ड न होकर एक हिम-सागर है। यही कारण है कि आर्कटिक हिम सागर के निचे से परमाणु ऊर्जा द्वारा संचालित पनडुब्बियां तक आसानी से आ-जा सकती हैं। इस प्रदेश में पेड़ पौधे तथा स्तनपाई पशुओं का प्रायः अभाव है। कहीं कहीं पर शैवाल जैसी वनस्पतियों तथा मक्खी की जाति के सूक्ष्म जीव पाये जाते हैं। यहां पर पाते जाने वाले बड़े जीव प्राणियों में 'पेग्विन' और 'सील मछली', 'कील' नाम के जीव प्रमुख हैं।

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