पाचन शक्ति हो गयी हो कमजोर तो घबराएँ नहीं, करें इन 15 नियमों का पालन!

अगर आप भी हैं अपनी पाचन शक्ति के कमजोर होने से परेशान तो घबराएँ करें आयुर्वेद में बताये गए इन 15 नियमों का पालन और रहें सदा स्वस्थ व तंदुरुस्त. अगर आप वाकई में बिना किसी दवा के स्वास्थ्य लाभ पाना चाहते हैं तो इन 15 नियमों का पालन आपके लिए अनिवार्य है. जरूरी नहीं कि आप इन सभी 15 नियमों का पालन करें, यदि करेंगे तो ज्यादा अच्छा है. अगर सभी नियमों का पालन नहीं कर पाते तो कम से कम कुछ नियमों का पालन भी कर सकते हैं. ऐसा करने पर भी आपके सेहत में काफी बदलाव हो जायेगा और आप का पाचन संस्थान पहले से कहीं ज्यादा मजबूत व उत्तम हो पायेगा.

तो चलिए बिना देरी किये आपको बताते हैं आयुर्वेद के वो 15 बेशकीमती नियम जिनका पालन सभी व्यक्तियों के लिए अनिवार्य है-

पहला नियम – सुबह सूर्योदय से पहले उठें

यदि आप भी सुबह देर से उठने के आदि हैं तो अब ये आदत बदल डालिए. क्योंकि “सुबह लेट से उठने पर कफ कुपित होकर अग्नि का नाश करता है”. अग्नि से तात्पर्य हमारी पाचन शक्ति से है. अगर हमारी जठराग्नि मजबूत नहीं होगी तो कुछ भी खाया-पिया अच्छे से पाचन नहीं हो पायेगा. जिस कारण हमें जरूरी पोषण प्राप्त न हो पाने से हमारी शारीरिक और मानसिक ग्रोथ पर इसका सीधा असर पड़ेगा.

सुबह जल्दी उठने से हमारी भूख दिनभर अच्छे से बनी रहती है. और भोजन का ज्यादा पाचन होने से हमारा शरीर बेहतर ढंग से कार्य करता है.

दूसरा नियम – सुबह उठते ही सबसे पहले 1 से 2 गिलास गुनगुना पानी पियें

आयुर्वेद में बताया गया है कि “सुबह जल (पानी), दोपहर में छाछ (मट्ठा) और रात्रि में दूध अमृत के समान हैं.” इसलिए सुबह पानी पीना अमृत पीने जैसा ही है. क्योंकि सुबह गुनगुना जल पीने से पेट अच्छे से साफ़ हो जाता है, पित्त शांत होती है और भूख खुलकर लगती है. ध्यान रखें सुबह या किसी भी समय 1 गिलास या उससे ज्यादा पानी पीने पर 1 घंटे तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए.

हाइपर एसिडिटी के मरीज को गुनगुना या गर्म पानी नहीं पीना चाहिए उनको केवल रूम टेम्परेचर या मटके का पानी पीना हितकर है.

तीसरा नियम – योग-प्राणायाम अथवा किसी भी प्रकार का शारीरिक व्यायाम नियमित रूप से करें

सुबह-सुबह नित्य कर्मों से निवृत होकर योग-आसन व प्राणायाम अथवा कोई भी शारीरिक व्यायाम अवश्य करना चाहिए. फिजिकल एक्टिविटी से हमारा पाचन संस्थान बेहतर बनता है.

भोजन के पश्चात वज्रासन करने से भोजन अच्छे से पच जाता है और भूख खुलती है. केवल यही एक एकलौता आसान है जिसे भोजन के तुरंत बाद भी किया जा सकता है. बाकी समस्त आसनों को भोजन के कम से कम 2 घंटे बाद ही करना चाहिए.

चौथा नियम – भोजन पश्चात 1 घूँट से ज्यादा पानी पीना विष पीने के सामान है

आयुर्वेद में बताया गया है कि “भोजनान्ते विषम वारी” यानि भोजन के अंत में पानी पीना जहर पीने के समान है. यहाँ तक की कूटनीति के महान विद्वान चाणक्य ने भी इस संबंध में कुछ बातें बतायी है जिसे आपको जानना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा था-

अजीर्णे   भैषजम वारि जीर्णे वारि बलप्रदम !

भोजने चामृतम वारि भोजनान्ते विषम प्रदम !!

यानि भोजन के पाचन न होने अर्थात अजीर्ण हो जाने पर पानी औषधि के समान कार्य करती है, जबकि भोजन के पूर्ण रूप से पच जाने पर अल्प मात्रा में पानी पीने से शक्ति प्राप्त होती है. भोजन करते समय थोडा-थोडा (छोटी घूँट) पानी पीना अमृत के समान लेकिन भोजन के अंत में जहर के समान फल प्रदान करता है.

भोजन के अंत में आहार नली में फंसे भोजन को अमाशय तक नीचे उतारने के लिए एक छोटी घूँट या गुनगुना जल पीने से कोई हानि नहीं है.

 

पांचवा नियम – दो मुख्य आहार के बीच का अंतर 5 से 6 घंटे का होना चाहिए

लगातार खाते रहने से हमारी जठराग्नि मंद पड़ जाती है और खाया-पिया अच्छे से नहीं पचता है. इस कारण जब पहले खाया हुआ भोजन अच्छे से पच जाए और दोबारा भूख लगे तभी कुछ खाना चाहिए. सामान्यतया 5 से 6 घंटों में भूख लगने लगती है. और इसी दौरान खाना खाया जाये तो ही हितकर होगा. इससे हमारी भूख बरकरार रहती है और पाचन संस्थान मजबूत होती है.

छठा नियम – भोजन अच्छी तरह चबा-चबाकर करना चाहिए

जब भी भोजन करें उसे अच्छे से चबाकर खाना चाहिए. जिससे हमारे मुंह के लार भोजन के साथ अच्छे से लिपट जाए. यह लार वास्तव में पाचक रस होते हैं जो भोजन के साथ मिलकर मुंह में ही भोजन का पाचन प्रारंभ कर देते हैं.

भोजन को अच्छे से चबाने पर उनके काफी बारीक टुकड़े हो जाते हैं जिससे हमारे आँतों और अमाशय पर उसे पचाने के लिए ज्यादा दबाव नहीं बनता. कहा भी गया है- “दांतों का काम आँतों पर नहीं छोड़ना चाहिए.”

सातवा नियम – भोजन के प्रारंभ में 3 अंजलि जल व बीच-बीच में 1-1 छोटी घूँट जल पीना चाहिए

भोजन के प्रारंभ में 3 अंजलि जल पीने से भूख अच्छे से खुल जाती है. इसलिए प्रारंभ में केवल 3 अंजलि जल और जब भोजन कर रहे हो तो बीच-बीच में छोटी-छोटी घूँट जल पीना हितकर और पाचन क्रिया को सुचारू बनाए रखने के लिए जरूरी होता है.

आठवा नियम – भोजन करने के 1 घंटा पहले और 1 घंटा बाद तक पानी न पियें

भोजन करने के बाद अंत में कभी भी पानी नहीं पीना चाहिए. अगर पीना हो छाछ, फलों का रस, सूप, इत्यादि पिया जा सकता है. पानी 1 घंटे बाद ही पियें. उसी प्रकार भोजन प्रारंभ करने के 1 घंटे पहले पानी का सेवन करना हितकर होता है.

नौवा नियम – भोजन करने के पश्चात ये 10 कार्यों को करने से बचें

नहाना या पैर धोना, घुड़सवारी करना, दौड़ना, बहुत बात करना, चिंता करना, संबंध स्थापित करना (मैथुन करना), सोना (नींद लेकर), एकाग्र होकर किये जाने वाले कार्य करना, पानी पीना अथवा पुनः भोजन करना, तेज धूप सेकना या लम्बे समय तक धूप सेकना, क्रोध करना, व्यायाम करना इत्यादि.

दसवां नियम – बूढ़े, बच्चे, बीमार, परिश्रम से थके हुए, रातभर जागे हुए एवं मैथुन किये हुए व्यक्ति को छोड़कर किसी को भी दिन में नहीं सोना चाहिए

दिन में सोना किसी भी प्रकार के उचित नहीं है अगर आपको उसकी आवश्यकता न हो. भगवान् ने रात को ही सोने के लिए बनाया है. जिस प्रकार रात को जागने से हमारे शरीर और पाचन संस्थान पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ठीक उसी प्रकार दिन के समय सोने से कई प्रकार के दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं.

जब तक बहुत आवश्यक न हो तब तक दिन को नहीं सोना चाहिए. गर्मी के मौसम को छोड़कर अन्य किसी भी मौसम में नहीं सोना चाहिए. गर्मी के दिनों में भी 1 घंटा सोना अच्छा माना जाता है. इससे शरीर की गर्मी शांत होती है. जिससे हमारी भूख नियमित होती है. ध्यान रहे भोजन के पश्चात तुरंत कभी भी नहीं सोना चाहिए. हमेशा भोजन करने के मिनिमम 1 घंटे और मैक्सिमम 3 घंटे से पहले नहीं सोना चाहिए.

ग्यारहवां नियम – बिना भूख-प्यास के अधिक मात्रा भोजन और पानी नहीं पीना चाहिए

जिस प्रकार भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए और बिना भूख के कुछ भी नहीं खाना चाहिए. ठीक उसी तरह बिना प्यास लगे पानी भी नहीं पीना चाहिए. बिना भूख के खाना और बिना प्यास के पानी पीने से हमारी पाचन संस्थान पर उसे पचाने का दबाव बन जाता है. और हमारे पेट की अग्नि (जठराग्नि) तीव्र नहीं होने की वजह से खाया-पिया ठीक से नहीं पचता जिस कारण अनेक प्रकार की दिक्कतें उत्पन्न हो सकती है.

हर आधे घंटे में थोड़ा-थोड़ा पानी (घूँट-घूँट पानी) पीना सेहत के लिए हितकर होता है. इससे खाया-पिया अच्छे से पच जाता है और भूख भी अच्छे से खुलती है. किन्तु ज्यादा मात्रा में पानी सर्वथा अहितकर होता है.

हमेशा भूख से थोड़ा कम भोजन करना चाहिये. आयुर्वेद में बताया गया है कि पेट का आधा हिस्सा भोजन के लिए और बचे हुए आधे-आधे हिस्से को पानी और हवा के लिए छोड़ना चाहिए. एक रिसर्च के अनुसार दुनिया में जितने लोग भूखे रहने से नहीं मरते उससे अधिक लोग अधिक खाना खाने की अपनी गलत आदतों की वजह से किसी न किसी रोग के कारण मारे जाते हैं.

बारहवां नियम – गरम मसाले, लाल मिर्च, शराब, चाय-कॉफी, कोल्ड ड्रिंक, जंक फ़ूड, बासी भोजन का सेवन न करें

इस प्रकार के चीजों का सेवन हमारे पाचन को तहस-नहस करने के लिए पर्याप्त होता है. ये सभी पदार्थ विभिन्न कारणों से हमारे पाचन संस्थान के लिए ठीक नहीं माने जाते हैं. अब तो डॉक्टर्स भी इन चीजों को छोड़ने या कम सेवन करने की सलाह देते हैं. आप जितना हर्बल और प्राकृतिक पदार्थों का सेवन करेंगे उतना ही आपका पाचन संस्थान बेहतर रहेगा.

तेरहवां नियम – ठंडे खाद्य व पेय पदार्थों का सेवन कदापि न करें

आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, चिल्ड वाटर, फ्रीज में रखे किसी भी खाद्य पदार्थ को तुरंत निकाल कर सेवन करना ठीक नहीं होता. ठंडी चीजों को पचाने में काफी समय लगता है और पाचन शक्ति इससे प्रभावित होती है. इसलिए बेहतर यही है कि इनसे बचा जाए.

चौदहव नियम – ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन करें

गरिष्ठ (लेट से पचने वाले) व बासी भोजन के बजाय ताजे और तरल पदार्थों का ज्यादा सेवन हितकर होता है. इस प्रकार के खाद्य पदार्थों के सेवन से हमारे शरीर को पानी की पूर्ती भी हो जाती है. और ऐसे पदार्थ पचने में भी हलके होते हैं.

पंद्रहवां नियम – भोजन में लाइव फ़ूड का सेवन बढायें

अंकुरित या भीगे हुए अन्न जैसे- मूंग, चना, मूंगफली, बादाम, इत्यादि का सेवन सुबह नास्ते में करें. इसके अलावा सलाद का सेवन भी उचित मात्रा में करें जैसे- खीरा, चुकंदर, गाजर, टमाटर इत्यादि. हरी सब्जियों का सूप या सब्जी का सेवन करें. फलों के जूस पीने से अच्छा है आप सीधे फलों का सेवन करें.

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