देशी पेड़ो की बीज से बन रही है राखियां

राखी का निर्माण रेशम से होता है और धागों से होता है। राखी कच्चे धागों का संबंध है, आदि आदि राखी के निर्माण से जुड़ी कई बातें आपने सुनी, पढ़ी और देखी होंगी। मगर राखी का निर्माण देशी पेड़ो के बीज से भी हो रहा है। वृक्ष बंधन परियोजना के तहत औरंगाबाद की 1100 जनजातीय महिलाएं रक्षा बंधन के लिए देशी पेड़ो की बाज से राखी बना रही हैं। माना जा रहा है कि यह वन क्षेत्र बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में अनोखा योगदान साबित होगा।

वृक्ष बंधन परियोजना के अंतर्गत औरंगाबाद की 1100 जनजातीय महिलाएं रक्षा बंधन के लिए देशी पेड़ों के बीज से राखी बना रही हैं। यह वन क्षेत्र बढ़ाने तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने में अनोखा योगदान है।

 महिला किसान मंच की 1100 सदस्यों ने देशी बीजों से राखी बनाने की बात सोची।

 गौ आधारित परंपरागत खेती संबंधी परियोजना का उद्देश्य जनजातीय समुदायों के परंपरागत पारिस्थितिकीय ज्ञान को संरक्षित और पुनर्जीवित करना तथा रासायनिक कृषि के नकारात्मक प्रभाव से रक्षा करना है। 

 एक बार के उपयोग के बाद बीज मिट्टी में बोए जा सकते हैं। इससे पर्यावरण को लाभ मिलता है और परियोजना से जुड़ी जनजातीय महिलाओं को रोजगार मिलता है।

 जनजातीय कार्य मंत्रालय ने एक अनूठी पहल करते हुए आर्ट ऑफ लीविंग की साझेदारी में  महाराष्ट्र के औरंगाबाद में वृक्ष बंधन परियोजना लॉन्च की। इसमें 1100 जनजातीय महिलाएं रक्षा बंधन के लिए देशी पेड़ों के बीज से राखी बना रही हैं। यह वन क्षेत्र बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में अनोखा योगदान है।

यह पहल अक्टूबर 2020 में जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा आर्ट ऑफ लीविंग को दी गई परियोजना स्वीकृति का हिस्सा है जिसमें औरंगाबाद के 10 गावों के 10,000 जनजातीय किसान गो आधारित कृषि तकनीक पर आधारित सतत प्राकृतिक कृषि के बारे में प्रशिक्षित किए जा रहे हैं। महिला किसान मंच की 1100 सदस्यों ने देशी बीजों से राखी बनाने की बात सोची। 

जनजातीय कार्य मंत्रालय ने परियोजना को आकर्षक बनाने के लिए वर्चुअल समारोह का आयोजन किया जिसमें आर्ट ऑफ लीविंग के श्री श्री रविशंकर भी उपस्थित थे। आदिवासी किसान महिला मंच की महिलाओं ने बीज से बनी राखी के कई नमूने दिखाए और राखी बनाने की प्रक्रिया की भी जानकारी दी। 

जनजातीय कार्य मंत्रालय की ओर से वर्चुअल समारोह में संयुक्त सचिव डॉ. नवल जीत कपूर तथा संयुक्त सचिव और वित्तीय सलाहकार सुश्री यतिंदर प्रसाद शामिल हुए। इस अवसर पर डॉ. कपूर ने कहा कि यह परियोजना प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत, जनजातीय किसानों में आत्मनिर्भरता की भावना जागृत करने के विजन से जुड़ी हुई है। गौ आधारित परंपरागत खेती संबंधी परियोजना का उद्देश्य जनजातीय समुदायों के परंपरागत पारिस्थितिकीय ज्ञान का संरक्षण करना और पुनर्जीवित करना तथा रासायनिक कृषि के नकारात्मक प्रभाव से उनकी रक्षा करना है। 

जैविक खेती में जनजातीय किसानों की भूमिका तथा राखी बनाने में जनजातीय महिलाओं की भूमिका को प्रमुखता से उजागर करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से निपटने के लिए जन शक्ति, राज्य शक्ति और देव शक्ति को साथ आने की आवश्यकता है जैसा कि इस परियोजना में देखा जा सकता है।  उन्होंने जैविक खेती के महत्व पर बल दिया और जनजातीय किसानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं  तथा परियोजना से जुड़े अधिकारियों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ऐसी पहल अन्य राज्यों में भी की जानी चाहिए।

राखियां प्राकृतिक रूप से रंगे, नरम स्वदेशी, गैर विषैले, बायोडिग्रेडेबल कपास पर चिपके देशी बीजों से बनती हैं। एक बार के उपयोग के बाद बीज मिट्टी में बोया जा सकता है, जिससे पर्यावरण को लाभ होता है। इस परियोजना के अंतर्गत हजारों पेड़ लगाए जाने की उम्मीद है और परियोजना से जुड़ी आदिवासी महिलाओं को रोजगार प्राप्त होगा। 

कृषि मंत्रालय के अपर सचिव श्री आशीष भूटानी, नागपुर, महाराष्ट्र पुलिस के इंस्पेक्टर जनरल श्री चिरंजीव प्रसाद ने औरंगाबाद के जनजातीय किसानों की सराहना करते हुए कहा कि ये किसान न केवल जैविक खेती से प्रकृति को बचा रहै हैं बल्कि पर्यावरण की भी रक्षा कर रहे हैं।   

परियोजना निदेशक डॉ. प्रभाकर राव ने बताया कि किस तरह परियोजना ने क्षेत्र के जनजातीय किसानों के जीवन को बदल दिया है और जनजातीय महिलाएं उत्साह के साथ इस परियोजना से जुड़ी हैं। उन्होंने कहा कि आर्ट ऑफ लीविंग जैविक कृषि के प्रति संकल्पबद्ध है तथा देशी बीजों को बचाने और वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए जागरूकता पैदा कर रहा है।

जनजातीय कार्य मंत्रालय तथा आर्ट ऑफ लीविंग दूर-दराज के क्षेत्रों में जनजातीय बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं और झारखंड तथा छत्तीसगढ़ में पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं।

आपको याद होगा पिछले साल यानि 2020 में चीन से तनातनी के बीच कई महिलाओं ने चीनी राखी के बहिष्कार का फैसला किया था। ऋषिकेष स्थित मनसा देवी महिला जन कल्याण समिति ने पिछले साल ना केवल चीन निर्मित राखियों का बहिष्कार किया बल्कि स्वयं हस्त निर्मित राखियों का निर्माण कर आय भी अर्जित किया।  

हिमाचल में भी इस रक्षाबंधन पर भाई की कलाई पर बंधने वाला रक्षा का सूत्र पर्यावरण संरक्षण भी करे इसकी तैयारी की गई है। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व आने वाला है। इसके लिए ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में लगाई गई प्रदर्शनी में विशेष राखियों की काफी मांग है। राखी के डिजाइन के बीच छायादार पेड़ों के बीज डालकर पर्यावरण को बचाने का संदेश दिया जा रहा है। कंडाघाट की महिलाओं ने अनोखी मिसाल पेश की है। अलग-अलग डिजाइन की रंग-विरंगी राखियां ग्राहकों को खूब भा रही हैं।

 

मकसद है कि रक्षाबंधन पर राखियां भाइयों की कलाई पर सजें और कुछ दिन बाद खराब होने पर जब इसे फेंक दिया जाएगा तो इससे बीज के गिरने से जमीन पर पौधा उग जाएगा। राखियां बनाने में बान, गुलाल और सरसों के बीज इस्तेमाल किए जाते हैं। पर्यावरण को बचाने वाली यह मुहिम ग्राहकों को खासी पसंद आ रही है और राखियां हाथों हाथ बिक रही हैं। इन राखियों की कीमत 20 से 50 रुपये तक है। जंगल में चीड़ के पेड़ों से गिरी हुई पत्तियों को इकट्ठा किया जाता है और रंग-विरंगे धागे से राखियों सहित घर की सजावट का सामान बनाया जाता है। घर के काम के साथ ये वस्तुएं बनाना आसान हैं। दिनभर खेत में काम करने के अलावा सुबह व शाम खाली समय में सामान तैयार किया जाता है और प्रदर्शनी में सजाया जाता है। उन्होंने कहा कि इस काम से कई महिलाएं लाभान्वित हुई हैं।

आर्गेनिक राखी के पीछे सोच ये थी कि एक राखी के पैकेज की खाद को बर्तन में डालने के बाद जब उसमें पानी डालते हैं तो वह फूल जाता है, फिर उसी जूट के बैग में खाद रखते हैं व आधा भरने पर राखी डाल देते हैं जिसके अंदर बीज होता है। फिर ऊपर से और खाद डाल दी जाती है। करीब दस से पंद्रह दिन में पौधा नजर आने लगता है। जब यह जड़ जमाने लगे तो इसे बड़े गमले में जूट के बैग सहित रख दिया जाता है। इस तरह आर्गेनिक राखी सालों तक भाई-बहन के रिश्ते की याद दिलाता रहेगा।

 

बहरहाल जनजातीय मंत्रालय ने आर्ट आफ लिविंग के साथ मिलकर 1100 जनजातीय महिलाओं के माध्यम से महाराष्ट्र में जो मुहिम शुरू की है उसकी चर्चा जोरों पर है। 

 

 

 

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About Author

senior journalist. ex. ibn7(News18ondia), R. BHARAT. DAINIK JAGRAN