बैलगाड़ी की शुरुआत
प्रारम्भ में जो वाहन प्रकाश में आए, उनमें बैलगाड़ी का बहुत ही महत्व है। पहले लोग टायर पहिये वाली बैलगाड़ी से दूर दूर की यात्रा करते थे। मुख्य रूप से किसान अपनी फसलों को ढोने के काम में बैलगाड़ी का उपयोग करते थे। अब भी बैलगाड़ी किसानों द्वारा तरह तरह के कामों में लाये जाते हैं। मसलन, गोबर, मिट्टी ढोने के काम में, लकड़ियां ढोने के काम में, ईटे ढोने के काम में तथा अन्य सामग्री को ढोने में धीरे धीरे अच्छे पहिये भी तैयार होने लगे। यही नहीं, बैलगाड़ी के ढांचों, आकारो प्रकारो में अच्छा परिवर्तन हुआ। पहले के बैलगाड़ी काफी भद्वे किस्म के होते थे। सुरक्षा की दृष्टि से भी पहले के बैलगाड़ी संतोषजनक नहीं थे।
जब लोगों का ध्यान इस ओर गया तब उन्होंने इस पर काफी सोचा-विचारा। उन्होंने मजबूत पटरे से चारों ओर से बैलगाड़ी के उपरी को घेर दिया। उस पर बैठने वालों के लिए काफी आराम हो गया। उस पर रखे गये सामानों के गिरने का डर जो हमेशा बना रहता था, वह भी दूर हो गया।
गांव की स्त्रियां एक गांव से दूसरे गांव तक की यात्रा बैलगाड़ी पर ही बैठ कर करती थी। जब स्त्रियां बैठती थी। तब चारों ओर से पर्दा लगा दिया जाता था। इससे धूप , वर्षा, और तेज हवा के झोंको का बैलगाड़ी पर बैठने वालों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता था। इस तरह से बैलगाड़ी की एक अच्छी शुरुआत हुई।
साइकिल की शुरुआत
आज तो तरह तरह की साइकिल निकल चुकी हैं। आपको तो 'रेसिंग साइकिल' चलाने में बड़ा मज़ा आता होगा। थोड़ी देर के लिए सोचिए, जब साइकिल नहीं बनी थी तब बच्चे किस पर सवार होते थे?
एक समय था, जब लोग 'साइकिल' का नाम तक नहीं जानते थे। ब्रिटेन के लोग हाॅबी हाॅर्स पर चढ़ते थे। थे हाॅबी हाॅर्स का मतलब होता है शौक का घोड़ा उस समय में लकड़ी के डण्डे के दोनों और लकड़ी के दो पहिये होते थे। उन पहियों के आगे वाले भाग पर शेर, हिरन, घोड़े आदि के चेहरा लगे रहते थे। हाॅबी हाॅर्स को चलाने में परेशानी होती थी। उसके लिए पैर से जमीन टेककर धक्का दिया जाता था।
1818 ई॰ में जर्मनी के एक इंजीनियर बैटन टा्इस ने हाॅबी हाॅर्स में काफी सुधार किये । बैटल टाइस ने स्त्री पुरुष की सुविधाओं का अलग अलग ध्यान रखा। टाइस ने स्त्री पुरुष के लिए अलग-अलग साइकिल तैयार की। उन साइकिलों में पैडिल नहीं होते थे। हां, उनमें हैण्डिल की व्यवस्था थी। उस साइकिल का नाम डाइसिने रखा गया।
1840 ई॰ में स्काॅटलैण्ड के एक इंजीनियर मैकमिलन डाइसिने उस साइकिल से सन्तुष्ट नहीं था। काफी समय तक सोचने विचारने के बाद उसने एक साइकिल तैयार की। उस साइकिल में पैडिल लगे हुए थे। वह साइकिल बहुत अच्छी नहीं थी। देखने में काफी भद्वी थी। उस पर चढ़कर चलने वाला व्यक्ति सड़क पर तमाशा बनकर रह जाता था। बात यह थी कि उस साइकिल के पहिये से पैडिल लगे थे और वह भी पीछे वाले पहिये में साइकिल चलाने के लिए लगभग साइकिल की हैण्डिल पर लेट जाना पड़ता था।
1842 ई॰ में एक बहुत साइकिल तैयार की गयी। उस साइकिल को तैयार किया था, फ्रांस के एक इंजीनियर ने। उसका नाम था- मिचैक्स। मिचैक्स ने काफी सुंदर साइकिल तैयार किया। उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका में दो इंजीनियर साइकिल सुधार में लगे हुए थे। उन इंजीनियरों के नाम थे- लालमेण्ड और कोरल। उन इंजीनियरों ने एक नयी किस्म की साइकिल तैयार किया।
उन्हीं दिनों लन्दन में 'साइकिल रेस' की प्रतियोगिता हुई थी। उस प्रतियोगिता में एक नयी किस्म की साइकिल लायी गयी। साइकिल रेस का आयोजन लन्दन के 'किस्टल महल' में हुआ। प्रतियोगिता में किस्म किस्म की साइकिलें शामिल थीं। रेस शुरू हुई। संयुक्त राज्य अमेरिका के इंजीनियर- लालमेण्ट और कोरल द्वारा निर्मित साइकिल सबसे आगे थी। फिर क्या था, उस समय उनकी किस्म की साइकिल की जीत हुई। प्रतियोगिता जीतने के बाद उस साइकिल का नाम 'बोनशेकर' रखा गया।
धीरे धीरे अनेक देशों के इंजीनियरों ने बेहतर साइकिल बनाने के प्रयास किये। इस कार्य में अधिकांश सफल भी रहे। इस प्रकार तरह तरह की साइकिलें संसार के बाजारों में आने लगी।
1890 ई॰ में भारत में पहली साइकिल बनी। भारत में 1938 ई॰ में साइकिल बनाने का कारखाना शुरू हो गया था। और तब तो साइकिलें ही साइकिल तरह तरह की साइकिलें आयी। जिस पर जैसा चढ़ जाओ। पैडिल लगाओ, मस्ती में घण्टी बजाते हुए वहां से निकल भागो।
मोटरसाइकिल की शुरुआत
आपने मोटरसाइकिल को काफी नजदीक से देखा होगा। आपमें से कई के घरों में मोटरसाइकिल भी होगी। यही नहीं, आपमें से अधिकांश ऐसे भी होगे, जो मोटरसाइकिल पर सवार होकर मस्ती लिये होंगे। फिर यह सवारी है ही ऐसी। स्टार्ट करते ही फट फट फटकर ने लगती है और फिर सरपट दौड़ पड़ती है सड़कों पर। मोटरसाइकिल इतनी मजबूत होती है कि वह हर तरह की सड़कों के सीने चीर फेंकती है। नहीं समझे क्या? मतलब यह समतल और उबड़-खाबड़ रास्तों को आसानी से पार कर जाती है।
यह तो रही मोटरसाइकिल की विशेषता। क्या आपने यह जानने की कोशिश की है कि यह मोटरसाइकिल हमारे आपके बीच कैसे आयी। आज मैं आपको मोटरसाइकिल के विषय में बताता हूं। मोटरसाइकिल को सबसे पहले बनाने वाला जर्मनी का एक इंजीनियर था उसका नाम था, गोटलीब डायमलर। वह पढ़ने लिखने में काफी तेज दिमाग का था। बचपन से ही उसकी इच्छा थी कि वह एक अच्छा इंजीनियर बने। उसने बहुत परिश्रम किया। आखिर उसका स्वप्न पूरा हुआ। एक दिन वह एक इंजीनियर बन ही गया।
गोटलीब ने जर्मनी के कई कारखानों में मेहनत और ईमानदारी से काम किया और अनुभव बटोरा। उसकी मेहनत एक दिन रंग लाई। प्रारम्भ में, गोटलीब ने गैस इंजिन के निर्माण में अपना सहयोग दिया। उन दिनों गैस इंजिन के आविष्कारक आॅगस्ट निकोलस, गोटलीब के साथ काम करता था। गोटलीब डायमलर ने आॅगस्ट निकोलस को बताया कि इंजिन का उपयोग सड़क पर चलने वाली किसी भी वाहन में किया जा सकता है। आॅगस्ट निकोलस ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
गोटलीब ने मन ही मन यह निश्चय किया कि वह एक न एक दिन अपने प्रयास में सफल होगा। और एक दिन वह भी आया, जब गोटलीब मोटरसाइकिल का सबसे पहले निर्माण की बाजी मार गया। गोटलीब डायमलर ने
मोटरसाइकिल का निर्माण कर लिया। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। 1885 ई॰ में उसने संसार की पहली मोटरसाइकिल को अपने घर के आस-पास चलाकर देखा। मोटरसाइकिल देखने में अच्छी थी और चलने में लाजवाब। फिर देखते ही देखते संसार के कई इंजीनियर मोटरसाइकिल के निर्माण में लग गए। कुछ ही दिनों बाद संसार की सड़कों पर तरह तरह की मोटर साइकिलें फराटे मारने लगी।
कारों का शुरुआत
फ्रांस के एक इंजीनियर ने इस पर काफी सोचा-विचारा। अचानक, उसके दिमाग़ में एक बात आयी। वह खुशी से उछल पड़ा। 1763 ई॰ में उस इंजीनियर ने एक गाड़ी तैयार की। वह गाड़ी भाप की शक्ति से चलती थी। वह गाड़ी बहुत भारी थी। देखने में भी अच्छी नहीं थी। वह मोटर गाड़ी एक घण्टा में सिर्फ ढाई मील चल पाती थी। उस गाड़ी में एक दोष भी था। जब उसमें एक बार का भरा पानी भाप बनकर उड़ जाता था तब उसमें फिर पानी भरना पड़ता था। उस इंजीनियर का नाम आॅगस्ट निकोलस।
1770 ई॰ में एक और मोटर गाड़ी बनी । वह मोटर गाड़ी पहली वाली गाड़ी की तरह भाप से नहीं चलती थी वह तो पेट्रोल से चलती थी। आपने तांगे वाले को देखा है न तो समझ लीजिए दूसरी वाली मोटर गाड़ी तांगे की शक्ल में थी। उसमें 4 लोग ही बैठ पाते थे।
1830 ई॰ में मोटर गाड़ी में और सुधार किये गये। उसमें 10-12 लोग बैठ सकते थे। वह 1 घण्टा में 7 मील तक का चक्कर लगा लेती थी।
वह देखने में बहुत अच्छी नहीं थी। उसकी आवाज से लोग डर जाते थे। इतना ही नहीं, जब वह चलती थी तब उसे देख देख कुत्ते जोर जोर से भौंकने लगते थे। लोग कंकड़ पत्थर मारते थे। लोग उसे मोटरगाड़ी ही समझे, इसके लिए गाड़ी के आगे लाल रंग की झण्डी लगी रहती थी।
1885 ई॰ में जर्मनी के इंजीनियर डैमलर ने उस मोटरगाड़ी में काफी सुधार किये। सबसे पहले डैमलर ने उस मोटरगाड़ी की आवाज में सुधार किया। उसने गाड़ी की स्पीड में भी सुधार किया वह गाड़ी 1 घण्टा में 15 मील जाने लगी।
बाद में, फ्रांस के एक इंजीनियर पनार्ड ने परिश्रम करके एक बहुत अच्छी मोटर गाड़ी तैयार की। वह गाड़ी भी बहुत तेज नहीं दौड़ पाती थी। उसने इस पर काफी सोचा-विचारा गाड़ी तेजी से क्यों नहीं भाग रही है? सोचते विचारते पनार्ड की निगाहें मोटरगाड़ी के पहियों पर गयी। उन दिनों आज की तरह मोटरगाड़ियों के पहियों में रबर के टायर ट्यूब नहीं लगे रहते थे।
वे लकड़ी अथवा लोहे के बनाये जाते थे। उन पहियों की रगड़ से सड़के खराब हो जाती थी। गाडियां भी खड़ खड़ की आवाजें करती थी।
मोटरगाड़ी के पहियों में संयुक्त राज्य अमेरिका के एक इंजीनियर ने बहुत बड़ा सुधार किया। उस इंजीनियर का नाम था- डनलप, । यह वही डनलप है जिसके नाम डनलप के टायर बिकते हैं।
डनलप नामक इंजीनियर ने रबर के टायर और टय़ूब बनाये। टायर और टय़ूब के बन जाने से मोटरगाड़ियां तेजी से भागने लगी। फिर एक ऐसा समय भी आया, जब संसार की सड़कों पर तरह तरह की कारें, मोटरगाड़ियां, स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोपेड इत्यादि दौड़ने लगी। यह तो रही मोटरगाडी की जानकारी।
रेलगाड़ी का शुरुआत
यह तो आप जानते ही हैं। कि रेलगाड़ी की इंजिन जेम्स वाट ने बनायी। इसकी कहानी आप जानते ही होंगे।
जेम्स वाट ने एक दिन रसोईघर में बैठा हुआ था। आग पर रखी कोटली के ढक्कन को वह बार-बार ऊपर नीचे होने ध्यान से देख रहा था। फिर बाद में उस पर काफी सोचा-विचारा। जब उसने भाप की शक्ति पहचान ली तब इंजिन बनाने का निर्णय लिया।
वैसे तो सबसे पहले ग्रीस (यूनान) का वैज्ञानिक हैरो ने आज से सैकड़ों वर्षों पूर्व ही इंजिन का आविष्कार कर लिया था। उसके बनाये इंजिन को देखकर लोगों ने उसका बड़ा मजाक उड़ाया, क्योंकि उसके द्वारा बनायी गयी इंजिन काफी भद्दी थी। इस पर हैरो को गुस्सा आया और उसने उस इंजिन को नष्ट भ्रष्ट कर दिया।
लोगों ने जेम्स वाट द्वारा बनायी हुई इंजिन की खिल्ली उड़ायी, पर उसने धैर्य से काम लिया। उसने अपनी बुद्धिमानी से तरह तरह की इंजिने बनायीं।
1804 ई॰ में पहली रेलगाड़ी बनी। इसको रिचर्ड ने बनाया था। यह रेलगाड़ी कुछ ठीक नहीं थी। इस कारण उसने एक दूसरी रेलगाड़ी तैयार की। दूसरी रेलगाड़ी का उसने नाम - 'मुझे कोन पकड़ सकता है?
उन दिनों रिचर्ड रेलगाड़ी बनाने की तैयारी कर रहा था, उन्हीं दिनों वैज्ञानिक स्टीफेंसन भी रेलगाड़ी तैयार कर रहा था। यद्यपि स्टीफेंसन ने काफी देर बाद रेलगाड़ी तैयार की तथापि उसकी बनायी हुई रेलगाड़ी लोगों को बहुत पसंद आयी। इस प्रकार 'रेलगाड़ी आविष्कारक' की उपाधि स्टीफेंसन को दी गयी।
स्टीफेंसन की रेलगाड़ी में जो इंजिन लगी हुई थी, उसका नाम 'राकेट' रखा गया था। स्टीफेंसन ने 1825 ई॰ में एक रेलगाड़ी तैयार की।
आप सोचते होंगे कि आज की तरह उन दिनों में रेलगाड़ी में आरामदेह शीट, पंखे, प्रकाश, दरवाजे, खिड़कियां आदि होती नहीं थी, उन दिनों रेलगाड़ी में फर्श पर बैठना पड़ता था। रेलगाड़ी के डिब्बे मालगाड़ी के डिब्बे की तरह खुले रहते थे। खिड़की, प्रकाश आदि की सुविधाएं नहीं थीं। यहां तक कि ख़तरे की जंजीर भी नहीं होती थी। मज़े की बात है कि रेलगाड़ी का चालक सीटी की जगह घण्टा बजाता था।
हवाई जहाज की शुरुआत
आकाश में उड़ते हुए हवाई जहाज को आप प्रायः देखते रहते हैं। हवाई जहाज हमारे आपके बीच कैसे आया और किसने लाया? सहज ही प्रश्न उठ सकता है।
इटली के वैज्ञानिक लिओनार्ड द विंसी ने सबसे पहले हवाई जहाज के बारे में सोचा। उसने उड़ने की एक मशीन तैयार करने के लिए एक योजना तैयार की। फिर वह मशीन तैयार करने में लग गया। वह मशीन पूरी तरह तैयार भी न हो पायी थी कि लिओनार्ड द विंसी की मृत्यु हो गयी।
1670 ई॰ में एक वैज्ञानिक ने इस दिशा में कई प्रयास किये, लेकिन उसे सफलता न मिल सकी। उस वैज्ञानिक का नाम फ्रांसिस्को था।
फ्रांस में दो वैज्ञानिक रहते थे। उनका नाम था, जोसेफ और ऐटने मैडगाल्फिया। ये दोनों प्रायः उड़ते हुए पक्षियों को देखा करते थे और उनकी तरह उड़ने की कल्पना करते थे। 21 नवम्बर, 1783 ई॰ को उन दिनों दोनों वैज्ञानिक ने एक गुब्बारा तैयार कर उसे आकाश में छोड़ा, लेकिन कोई विशेष सफलता न मिल सकी।
कई वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कई प्रयोग किए। इन ख़तरनाक प्रयोगों के दौरान कई की मृत्यु भी हो गयी।
आपने राइट बंधुओं का नाम सुना होगा। सबसे पहले पूरी सफलता के साथ उन्होंने 1903 ई॰ में हवाई जहाज का आविष्कार किया। उन वैज्ञानिकों का नाम था- विलवर और ओलिवर वे एक पादरी के लड़के थे। दोनों बड़े परिश्रमी थे।
राइट बंधु साइकिल की एक दुकान में काम करते थे। दुकान से जब वे छुट्टी पाते थे। तब तरह तरह की बातें सोचते। बातों ही बातों में राइट बंधुओं ने हवाई जहाज तैयार करने का निश्चय किया। काफी परिश्रम के बाद उन्होंने एक हवाई जहाज तैयार भी कर ली। उस हवाई जहाज में उड़ान भरने की देरी थी। ओलिवर ने पायलट काम किया। हवाई जहाज को चलाने वाले पायलट कहा जाता है।
विलवर ने हवाई जहाज को ठीक से देखा परखा। उसके बाद उसने अपने भाई ओलिवर को जहाज उड़ाने का संकेत दिया।
ओलिवर ने बटन दबाया। बटन दबाते ही इंजिन में गड़ गड़ाहट होने लगी। ओलिवर की आंखें चमक उठीं। कुछ ही पल में सर्र.... से हवाई जहाज ऊपर उठने लगा और आकाश की दूरियों नापने लगा। हवाई जहाज 120 फीट की ऊंचाइयों तक उड़ा और उसके बाद नीचे उतरने लगा।
बाद में इस सफलता के बाद राइट बंधुओं ने और परिश्रम कर हवाई जहाज में सुधार किये। उन दोनों ने अन्तिम प्रयोग 18 दिसम्बर 1908 ई॰ मे को किये थे। इस बार विलवर ने हवाई जहाज को उड़ाया। विलवर 2 घण्टे 20 मिनट और 22 सेकण्ड तक आकाश में उड़ता रहा।
फिर कुछ ही दिनों बाद से तरह तरह के आकार प्रकार में हवाई जहाज बनने लगे।
हेलीकॉप्टर का नाम तो आपने सुना ही होगा। हेलीकॉप्टर को 1909 ई॰ में कीव नगर में रूस के वैज्ञानिक इगोर सिकोरस्की ने तैयार किया था। उस हेलीकॉप्टर का नाम एक्स आर-4 था।
पानी जहाज की शुरुआत
शुरू शुरू में जब पानी जहाज नहीं बना था तब नदी के इस पार से उस पार कैसे जाते थे।
जब लोग बर्बर थे। सभ्यता के नाम की कोई चीज उनमें नहीं थी, तब लोग जंगली लतरों का ढेर के सहारे नदी पार कर जाते थे।
धीरे धीरे सभ्यता का विकास होने लगा । लोग कुछ सोचने समझने लगे। नदी पार करते समय अपने को सुरक्षित नहीं समझते थे। उन्होंने काफ़ी सोचा विचारा। फिर जंगली लतरों, छालों और रेशों की सहायता से उन्होंने एक नाव तैयार की। इस तरह से नाव की खोज की गयी। कई कई देशों में तो चमड़े के नाव चलती हैं। दक्षिण अमेरिका में चमड़े की नावें चलती हैं। ऐसे नावों को 'कायाक' कहते हैं।
चीन में बड़ी बड़ी नदियों पर कई नगर बसे हैं। 'हाउस बोट' का नाम आपने सुना ही होगा। वहीं हाउस बोट चीन में है। इसी तरह से कश्मीर की झीलों में हाउस बोट है। हाउस बोट यानी नाव का घर। नाव पर ही होटल, स्कूल, डाकघर, बाजार आदि की व्यवस्था रहती है।
जैसे जैसे सभ्यता का विकास हुआ वैसे वैसे आवश्यकताएं बढ़ने लगीं। लोग एक देश से दूसरे देश में व्यापार के लिए जाने लगे। वे समुद्र में बड़ी बड़ी नावें और जहाजें चलाने लगे। 65,006 वर्षों पहले मिस्त्र का समुद्री व्यापार के लिए जहाजों का बेड़ा चलता था। इसकी आज्ञा रानी हैट्स हेप्टस ने दी थी।
आधुनिक जहाज का पहला रूप न्यूयॉर्क के वैज्ञानिक राबर्ट फुल्टन ने तैयार किया था। 'क्लेरमाण्ट' नामक इस जहाज को उसने 1807 ई॰ में तैयार किया था। इस जहाज को न्यूयॉर्क की 'हड्सन' नदी के किनारे 17 अगस्त 1807 ई॰ को चलाया गया था। यह जहाज 2-3 घण्टों में 150 मील तक चला था।
जानते हैं, संसार के सबसे बड़े पानी के जहाज का क्या नाम है? नहीं जानते हैं तो मैं बताता हूं।
संसार के सबसे बड़े पानी के जहाज का नाम 'क्वीन एलिजाबेथ' है। यह 1940 ई॰ में बना था इस जहाज की लम्बाई 1,038 फीट तथा चौड़ाई 117 फीट है। इस जहाज में 2,700 यात्री बैठ सकते हैं।
आधुनिक समय में लड़ाकू जहाज का सबसे अधिक महत्व होता है। लड़ाकू जहाजों में आपने पनडुब्बी का नाम तो सुना ही होगा। पनडुब्बी को अंग्रेजी में 'सबमेरीन' कहते हैं।
अब आपको पनडुब्बी के बारे में कुछ खास खास बातें बताता हूं। युद्ध में बड़े पैमाने पर पनडुब्बियां सर्वप्रथम वर्ष 1914-18 के विश्व युद्ध में प्रयोग की गयी थी। वे पनडुब्बियां शत्रु देश के समुद्री व्यापार को तहस-नहस करने में अत्यंत सफल सिद्ध हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने बहुत प्रभावशाली कार्य किये थे।
पनडुब्बी का मुख्य अस्त्र 'टारपीडो' कहलाता है। आज संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस इन दोनों के पास परमाणु सञ्चालित पनडुब्बियां हैं। पहले की ईंधन प्रयोग करने वाले पनडुब्बियों की अपेक्षा ये बहुत अधिक समय तक पानी के भीतर रह सकती हैं।
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