जानिए तनाव क्यों होता है , तनाव के लक्षण , तनाव देने वाले विचारो को कैसे नष्ट करे ।

तनाव आधुनिक युग का अभिशाप है और यह जीवन पद्धति का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है। यह दीमक की तरह अंदर से शरीर और मन को खोखला करता रहता है। 

शोध के अनुसार व्यक्तिगत जीवन की अव्यवस्था तथा विसंगतियों के कारण 53% गंभीर तनाव उत्पन्न होता है। तलाक से 63% मित्र या संबंधित परिजन की मौत से 36% बेरोजगारी से 56% तनाव होता है । यह समस्या पश्चिम के विकसित देशों में अधिक गंभीर है। पश्चिम देशों में 55% से 80% लोग तानावजन्य रोगों से पीड़ित है और यह विषम स्थिति महामारी का रूप लेने जा रही है।

तनाव के अनेकों कारण एवं प्रकार हो सकते हैं, किन्तु इसका मुख्य कारण है  मनःस्थिति और परिस्थिति के बीच सामंजस्य न होना। इसका शरीर और मन पर इतना दबाव पड़ता है कि हार्मोन्स और जैव रसायनों का संतुलन गड़बड़ा जाता हैं परिणाम स्वरूप शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक सुख-संतुलन का क्रमशः क्षय होने लगता है और जीवन तरह-तरह के मनोकायिक रोगों एवं मनोरोगों से ग्रसित होने लगता हैं।

 

कर्टसीन ने सैरिब्रल कार्टेक्स में तीन तरह के मस्तिष्क खण्डों का वर्णन किया है- मेटल ब्रेन, सोमेटिक ब्रेन तथा विसरल ब्रेन। सोमैटिक ब्रेन मांसपेशियों को तथा विसरल ब्रेन 'आटोनोमिक नर्वस सिस्टम' को नियंत्रित करता है। मेटल बेन फ्रंटल लोब से परिचालित होकर समस्त विचार व चेतना तंत्र को नियमित व संचालित करता है। सामान्यतया इन तीनों मस्तिष्क खण्डों का आपस में अच्छा सम्बन्ध रहता है। तनाव इनके बीच असंतुलन पैदा कर देता है। और यहीं से मनोकायिक रोगों (Psychosomatic Disorders) की शुरूआत हो जाती है।

 

इस संदर्भ में तनाव को चार अवस्थाओं में विश्लेषित किया गया है साइकिक फेज, साइकोसोमेटिक फेज, सोमेटिक फेज तथा ऑर्गेनिक फेज। साइकिक फेज में व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है। तथा इस दौरान केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र अति क्रियाशील हो उठता है। रक्त में एसिटाइल कोलाइन की मात्रा बढ़ जाती है। यह रसायन हर स्तनधारी के मस्तिष्क में पाया जाता है। मस्तिष्कीय क्रियाकलापों के आधार पर इसमें उतार-चढ़ाव आता रहता है। तनाव सर्वप्रथम मस्तिष्क पर दबाव डालता है और एसिटाइल कोलाइन का स्त्राव बढ़ जाता है। इससे उद्विग्रता, अति उत्साह, चिंता व अनिद्रा जैसे विकार पैदा हो जाते हैं। यह अवस्था कुछ दिनों से कुछ महीनों तक चलती है। यदि यह स्थिति और लम्बी हुई तो यह साइकोसोमेटिक अवस्था में परिवर्तित हो जाती है। इस अवधि में हाइपरटेंशन, कंपकपी तथा हृदय की धड़कन बढ़ जाती है।

 

 सोमैटिक फेज में कैटाकोलामाइन्स अधिक स्त्रावित होता है । कैटाकोलामाइन्स में तीन हार्मोन्स आते हैं-नार एड्रेनेलीन, एड्रेनेलीन तथा डोपामाइन। तनाव से इन हार्मोन के स्तर में वृद्धि हो जाती है। नशे का प्रयोग भी इनकी मात्रा को बढ़ा देता है। सर्दी, गर्मी, दर्द आदि से उत्पन्न तनाव में नार एड्रेनेलीन का स्त्राव बढ़ जाता है। इससे पेशाब के समय जलन होती है। ऑर्गेनिक फेज , तनाव की अगली अवस्था है । इससे तनाव शरीर की प्रतिरोधी क्षमता पर बहुत बुरा असर डालता है । तनाव इस अवस्था में आकर मधुमेह , दमा, रोग का रूप धारण कर लेता है। इस दौरान डोपामाइन के बड़ने से व्यवहार में भी गड़बड़ी पायी गयी है।

 

 तनाव के कारण

जीवन के बड़े परिवर्तन जैसे शादी, तलाक, स्कूल की शुरूआत या अन्त, घर को छोड़ बाहर निकलते बच्चे और रिटायरमैंट आदि। अप्रत्याशित जीवन घटनाएँ- जैसे अप्रत्याशित वियोग, नौकरी का अचानक छूट जाना, बड़ी दुर्घटना, घातक रोग का पता चलना आदि। क्रमिक रूप से घटित होती समस्या- जैसे दैनिक भागदौड़, नौकरी और घर के तनाव, स्कूल तनाव और प्रतियोगिता , असफलता का भय , अभिभावक दवाब , आत्मविश्वास का अभाव , असुरक्षा , आत्म सम्मान , किसी अपने द्वारा दिया गया धोखा आदि।

 

तनाव के लक्षण

तनाव में हार्मोन का स्त्राव अनावश्यक एवं अत्यधिक मात्रा में होता है, जो शरीर के विभिन्न अंग-अवयवों पर दुष्प्रभाव डालता है। मांसपेशियों में खिचाव, पेट दर्द, कंधे व पैर में दर्द, दस्त, साँस लेने में तकलीफ, पेशाब व हृदयगति की अनियमतता, थकान, सिरदर्द आदि शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं। अधिक गम्भीर होने पर इसके दुष्परिणाम आंत के फोड़े (पेप्टिक अल्सर), हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, गठिया, अनिद्रा, कोलाइटिस, कब्ज, एलर्जी, स्नायुदुर्बलता, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी जैसे रोगों के रूप में प्रकट होती है। अत्यधिक तनाव तो शरीर व मन को तोड़-मरोड़ कर रख देता है और असामयिक मृत्यु की ओर ले जाता है। आज मधुमेह, कैंसर, एड्स जैसे रोगा के का कारण भी तनाव बताया जाता है।

 

 

तनाव देने वाले विचारो को कैसे नष्ट करे

1. तनाव का सदुपयोग करना सीखें

    तनाव प्रेरित भी करता है। अगर साथ अपने लक्ष्य हम इच्छानुसार तनावयुक्त और नकी सलाह लेंगे, तनावमुक्त होने के तरीके सीख लें, तो हम उस तनाव का सदुपयोग कर सकेंगे जो हमारे लक्ष्यों की पूर्ति में हुए कंस्ट्रक्टिव सहयोग देता है और उस तनाव को नष्ट कर सकेंगे जो अनावश्यक दबाव डालता है।

 

2. मेहनत के बाद क्यों नहीं मिलती सफलता

कई लोग लगन और मेहनत के बावजूद सफल नहीं होते क्योंकि वे प्रयोग नहीं करते, नई शैली नहीं अपनाते। अपने लक्ष्य को बनाए रखें, लेकिन परिणाम ना मिले तो दूसरे तरीके का इस्तेमाल करें। मेहनत और लगन के साथ प्रयोगशीलता भी जरूरी है।

 

3. अपने शब्दो और कार्य पर विश्वास रखे

जब आपके मन में पूरा विश्वास होता है कि आप जो कर रहे हैं वो सही है तो यकीनन आप उत्साहित होंगे। अगर ये जानते हैं कि आप जो कर रहे हैं वो गलत है, तो उत्साहित नहीं होंगे। अपने शब्दों और कार्यों में विश्वास होना चाहिए। विश्वास करेंगे तो उत्साहित होंगे।

 

4. खुद को सर्वश्रेष्ठ लोगो के अनुरूप ढाले

हर काम में उत्कृष्टता का प्रयास करें, हर काम सर्वश्रेष्ठ तरीके से करें। इससे संतुष्टि मिलती है। सर्वश्रेष्ठ के साथ प्रतियोगिता करें। बड़ी चुनौती का सामना करके ही यह जान पाएंगे कि आप कितने काबिल हैं। खुद को सर्वश्रेष्ठ लोगों के व्यवहार के अनुरूप ढालें।

अन्य सुझाव

शिथिलीकरण एवं प्राणायाम जैसी सरल यौगिक क्रियाओं का भी अनुसरण किया जा सकता है। इन्हीं उपयों से मन को शान्त कर तनाव से मुक्त हो पाना सम्भव है। अतः ईश्वर के प्रति समर्पित भाव से जिया गया आस्था एवं श्रद्धापूर्ण जीवन और सामंजस्यपूर्ण व्यवहार ही तनाव रूपी विकार के उपचार का एकमात्र प्रभावी उपाय है।

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