1. चौदह वर्षों के लिए ही क्यों गए राम जी वनवास?
उत्तर : जिस दिन राम जी वनवास गए थे। उस दिन से रावण की चौदह वर्ष ही उम्र बाकी थी।
2. क्यों भेजा कैकेयी ने राम को बनवास?
उत्तर : क्योंकि अयोध्या का राज्य तो बालि के पास था। एक बार दशरथ जी कैकेयी को रथ पर बिठाकर भ्रमण कराने ले गए रास्ते में बालि मिल गया, बोला दशरथ ये पत्नी मुझे दे दो। दशरथ जी बोले नहीं दूंगा। बालि बोला तो मुझसे युद्ध करो , दशरथ जी सोचने लगे की मैं बालि से युद्ध करुँगा, तो हार जाऊंगा क्योंकि बालि परम बलवान था। बालि बोला चाहे तो पत्नी दो या अपना राजमुकुट दे दो। तब राजा ने अपना राजमुकुट बालि के कदमो में रखकर अपनी हार स्वीकार कर ली। ये बात सिर्फ कैकेयी को पता थी। दशरथ जी ने वैसी ही दूसरी मुकुट बनवाकर धारण कर ली थी और आज राजा ने राम को राजा बनाने की घोषणा कर दी। कैकेयी ने सोचा क्या मेरा राम नकली मुकुट पहनेगा नहीं, इसलिए कैकेयी ने कहा जाओ बालि को मारकर अपना राज्य स्वतंत्र करो और राम को वनवास भेज दिया।
3. क्यों किया राम जी ने जटायू का अंतिम संस्कार?
उत्तर : एक बार दशरथ जी इंद्र से मिलकर लौट रहे थे तभी वो अचानक रथ से नीचे गिर गए, जटायू ने देखा गिरते हुए तो अपने पंखो में बिठाकर आराम से नीचे ले आये। दशरथ जी बोले जटायू जी आपने मेरी जान बचाई है। आज जो आपको मांगना हो आप मांग लीजिए।मैं आपको एक वचन देता हूँ जटायू जी पहुँच गए और बोले आपने जो वचन देने को कहा था आज मैं मांगता हूँ। राजा बोले मांगो: जटायू जी बोले मेरे कोई संतान नहीं है। अतः आप अपना बड़ा बेटा राम, जटायू को सोप दिये। जटायू लेकर चला रास्ते में सोचा कि मैं इसका पालन पोषण मैं कैसे करुंगा? अतः बालक लौटा दिया और बोला दशरथ जी बड़ा होगा तब मैं के जाऊंगा। इस बात का संकेत बाबा तुलसी ने राम चरित में दिया।
4. क्यों लगाते हैं भगवान मुकुट पर मोर पंख ?
उत्तर : क्योंकि मोर निर्विकार है, जब मोर नाचता है तो उसके आँखों से आँसू गिरते है। उन्ही आँसुओ को पीकर, मोरनी गर्भधारण करती है, ऐसे ही इनकी संतान उत्पन्न होती है। जिससे मोर का वंश बढ़ता है। भगवान कहते है की आप भी मोर की तरह निर्विकार हो जाओ। मैं आपको भी अपने मस्तक पर धारण कर लूंगा अथवा भगवान श्री कृष्ण को प्रथम बार मोर के द्वारा ही राधा-रानी का दर्शन हुआ था, तो भेट स्वरुप राधा-रानी ने भगवान को मोर पंख ही दिया था। भगवान ने उस भेट को सिर पर धारण कर लिया इसलिए भगवान मोर पंख धारण करते है।
5. व्रत किसे कहते है ?
उत्तर : व्रत मतलब होता है प्रतिज्ञा या संकल्प जीवन में अच्छे कार्यों को करना। माँ बाप की सेवा का संकल्प गौ सेवा का संकल्प क्रोध न करने का संकल्प सत्य बोलने का संकल्प आदि ये कार्य करना ही व्रत है। भीष्म पितामह जी ने अखंड ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया था, राम जी ने निशाचरों को मारने का व्रत ले लीजिए। क्रोध को, लोभ को, अहंकार को झूठ को मार दीजिये, यही है व्रत। रोटी एक दिन या दो दिन के लिए तो भूखा व्यक्ति भी मजबूरी में छोड़ देता है। भोजन न मिलने से बहुत लोग मर भी जाते है। मतलब भोजन त्यागना व्रत नहीं है। विषय विकार त्यागना व्रत है।
1. व्रत के दिन हम रोटी तो छोड़ देते है। क्या झूठ बोलना छोड़ते हैं, नहीं.
2. व्रत के दिन हम नमक छोड़ देते है क्योंकि वो खारा हैं।
लेकिन व्रत के दिन हम निंदा करना छोड़ते है, नहीं.
लोभ तो छोड़ नहीं पाए , क्रोध तो छोड़ नहीं पाए , झूठ तो छोड़ नहीं पाए तो रोटी छोड़ देने से भगवान खुश ही जायेंगे क्या ? आप सत्य के मार्ग पर चलकर देखिये। रोटी भोजन छोड़ने की जरुरत नहीं, भगवान मिल जायेंगे।
6. कहाँ रहता है कलयुग?
उत्तर : चार स्थानों पर रहता है कलयुग:-
1. कौरवों ने जुआ ही खेला था जिसके कारन महाभरत जैसा युद्ध हुआ जुआ के कारण ही समाज में नारी का अपमान हुआ था। जुआ हमारी बुद्धि बिगाड़ देता है। जुआ खेलने से नाश नहीं सर्वनाश होता है। सबसे अधिक जुआ वृद्ध खेलते है। एक वृद्ध से हमने कहा की आप जुआ क्यों खेलते है। वो बोले हम तो टाइम पास कर रहे है। हम बोले दादा जी यह समय टाइम पास का नहीं है अपितू भजन करने का है। भजन करो नाम जपो अब आप टाइम पास नहीं टाइम आपको पास करने वाला है। आपने मन के मंदिर में जुआ नहीं राम को बिठाइये। कल्याण होगा। वृद्धो को जुआ खेलते देख बच्चों के संस्कार बिगड़ते है। समाज को अच्छे संस्कार नहीं दे सकते। तो कम से कम बच्चों का भविष्य तो बर्बाद तो नहीं करिये।
2. पानं मतलब शराब:- शराब कलयुग का दूसरा स्थान है। भगवान के पुत्र पौत्रादि अंत में शराब पीकर आपस में लड़कर मर गए थे। शराब हमे आपस में झगड़ाती है। शराब के द्वारा कलयुग हमारे अंदर प्रवेश कर जाता है जो की हमारी बुद्धि बिगाड़ देता है। मेरा निवेदन है की आपसे शराब पीकर अनमोल शरीर को बर्बाद न करें क्योंकि लोग अस्सी हजार की गाड़ी में (मिट्टी तेल, घासलेट , केरोसिन) नहीं डालते सिर्फ इस डर से की कही गाड़ी का इंजन न बैठ जाये। लेकिन शरीर रूपी गाडी़ में शराब रूपी तेल डालोगे तो शरीर का इंजन भी बैठ जाएगा जो की फिर कभी नहीं बन सकता। परमात्मा का अनमोल तोफा है। शरीर जो की उन्होंने हमे दिया है। हम अपने शरीर को समाज सेवा में लगाए अपनी बुद्धि को समाज संगठित करने में लगाए शराब पीकर जीवन खत्म न करें।
शराब वह गन्दी चीज है जो मनुष्य को जानवर बना देती है। एक राजा ने मंत्री से कहा शराब ले कर आओ। मंत्री गया शराब के साथ मांस, वैश्या, डॉक्टर और कफन लेकर आया। राज बोले:- मैंने सिर्फ शराब मांगा था। आप ये सब क्यों लाये है। मंत्री जी बोले:- सरकार क्षमा करना, शराब पीने के बाद मांस खाने की इच्छा होती है। इसलिए साथ में ही ले आया आप बाद में मांगते। मांस खाने के बाद स्त्री संग करने की इच्छा होती है। सो मैं साथ में ले आया और यह पाप करते हुए आपके स्वास्थ्य बिगड़ता तो मै डॉक्टर ले आया। चूँकि डॉक्टर आपको बचा नहीं सकता तो मै कफ़न भी ले आया। शराब पीने वालो आप एक बात याद रखे की आप शराब नहीं कफन खरीदते हैं। ईश्वर का दिया हुआ इतना सुंदर जीवन क्यों शराब पीकर बर्बाद कर रहे हो। कुछ अच्छा कार्य करके अपने आप को अमर क्यों नहीं बना लेते।
3. चरित्र हीनता:- जहाँ चरित्रवान लोग होगे वहाँ भगवान होंगे और जहाँ चरित्रहीन लोग होगें। वहाँ कलयुग होगा, आप चरित्रवान बने स्वामी विवेकानंद जी की तरह एक स्त्री ने स्वामी जी से कहा आप बहुत सुंदर हो मैं आप जैसा एक और विवेकानंद चाहती हूँ आपके द्वारा स्वामी जी आवाक रह गए फिर बड़े प्यार से उन्होंने कहा देवी क्या भरोसा की मेरा बेटा मेरा जैसा हो, आपको मेरे जैसे बेटे की चाह है तो आज से में ही आपका बेटा और आप मेरी माँ स्वामी जी ने उनके चरण पकड़ लिए वो नारी बड़ी शर्मिंदा हुई, शिक्षा यही है। कभी भी हमें अपने मार्ग से विचलित नहीं होना चाहिए। दुनिया तो हमें विचलित करना ही चाहती है।
दुनिया के हर पुरुष को विवेकानंद जी के इस वाक्य से शिक्षा लेना चाहिए। अब आप कहोगे की वो तो महान पुरुष थे हम तो आम पुरुष है। मै ऐसा नहीं मानता व्यक्ति अपने अच्छे कर्मों और अच्छी सोच से ही महान बनता है। अब आप ही बताइये , गाय दूध देती है या नहीं ? आप कहेंगे:- देती है, पर हम कहेंगे नहीं देती।
आइये अब हम आपको समझाए आप गाय के पास कटोरा लेकर जाओ और कहो गाय माता दूध दे दो तो क्या गाय दूध देगी? नहीं, गाय दूध देती नहीं है दूध दुहना पड़ता है, तो दुह लीजिए। वैसे ही ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, बद्धि ये सबके पास है। तो कोई दुह पाता है तो विवेकानंद, तुलसीदास, कबीरदास, मीरा बन जाता है। जो नहीं दुह पाता वो घर में बैठकर झगड़ा करता है शराब पिता है। बहन,बेटियों की आवरू लूटता है।
आप अपने अंदर के राम को जगाइए तब आप महान बनेंगे। आपने तो रावण को जगा रखा है। चरित्रवान बनना चाहिए राम की तरह। एक बार स्वामी विवेकानंद जी से इंग्लैंड के व्यक्ति ने कहा आपके देश की नारी मिट्टी है हमारे देश की नारी सोना है। स्वामी जी बोले-आप सही कह रहे है क्योंकि मिट्टी की बनी गिलास, कुल्हन, किसी के मुख तक पहुँच जाये तो उसके बाद वो मिट्टी की गिलास मिट्टी मिल जाएगी, लेकिन दूसरे के मुँह नहीं लगेगी। मतलब हमारे देश की नारी जिसे अपना पति स्वीकार कर ले जीवन भर साथ निभाती है मर जाएगी पर, पर पुरुष के बारे में नहीं सोचती। ये है भारत की नारी और आपके देश की नारी सेना है। सोने की बानी गिलास हजारों मुखों तक पहुंचती है। आपके देश की नारी चरित्रहीन है। हमारे देश की नारी संस्कारवान, चरित्रवान है।
4. सुना-सुना मतलब:- मांस आज कल लोग अंडे, मुर्गी, मछली और न जाने क्या क्या खाते है। आपने कभी सोचा है कि जीव हत्या कितना बड़ा पाप है। वैज्ञानिकों ने शोध किया है और पाया है की शाकाहार करने वाला व्यक्ति दयालु होता है, सहनशील होता है, चरित्रवान होता है। माँ बाप की सेवा करने वाला होता है और भगवान में ज्यादा भरोसा करता है, उसके हृदय में भक्ति होती है। वो किसी का दिल दुखाने के पहले हजार बार सोचता है। जबकि मांसाहार करने वाला व्यक्ति क्रूर स्वभाव का होता है। उससे दया की उम्मीद कर ही नहीं सकते, मतलब यही है की शाकाहार हमें सकारात्मक सोच देता है। वैसे भी जो हमारे भगवान को भोग नहीं लगता वो हमें स्वीकार नही करना चाहिए। यही सच्ची भक्ति है। मांसाहार करने वाले के घर में और दिल, दिमाग में कलयुग का प्रवेश हो जाता है जो की हमारे सच्चे विचारों को भ्रष्ट कर देती है। इसमें कलयुग का वास होता है।
7. क्यों भरती है माताएँ माॅॅग में सिंदूर?
उत्तर : अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पत्नी माँग भरती है। जितनी लम्बी माँग उतनी लम्बी उम्र पति की।
8. क्यों चढ़ता है हनुमान जी को सिंदूर?
उत्तर : क्योंकि एक बार सीता मैया अपनी माँग में सिंदूर भर रही थी। हनुमान जी बोले माँ ये क्या कर रहे हो आप। माँ बोली बेटा आपके प्रभु राम की लम्बी उम्र के लिए अपने माँग में सिंदूर भर रहे है। हनुमान जी बोले माँ इतने से सिंदूर से क्या राम जी की उम्र बढ़ेगी। माँ बोली हाँ, तब हनुमान जी बोले तो मैं अब अपने पूरे शरीर पर सिन्दूर लगाऊंगा, ताकि राम की उम्र बढें। तब से हनुमान जी के सिंदूर चढ़ने लगा। जो भी भक्त हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाता है। हनुमान जी उनकी मनोकामना पूर्ण करते है।
9. बालि को छिपकर क्यों मारा राम जी ने?
उत्तर : क्योंकि सुग्रीव से रामजी कह चुके थे की में बालि को एक ही बाण से मारुंगा लिखा है। दूसरी बात यह है की यदि बालि को राम जी सामने खड़े होकर मारते और यदि बाली राम जी की शरण में आ जाता तो राम जी से उसे क्षमा कर देते, फिर उनके वचन का क्या होता इसलिए रामजी ने छिपकर मारा अथवा राम जी ने छिपकर इसलिए मारा क्यों की बाली अभिमानी था और अभिमानी को मारना हो तो अपने आप को छिपाना पड़ता है। जैसे राम जी ने अपने आपको वृक्ष की छाव छिपा लिया ऐसे ही हम अपने आपको भगवान की छत्र-छाया में छिपा ले तो हम भी बाली जैसे अभिमानी को मार सकते है। माय दानव से लड़ने जब बाली गया था साथ में सुग्रीव भी थे बाली बोला-मैं राक्षस को मारने इस गुफा में जा रहा हूँ। तुम पंद्रह दिन तक मेरा इन्तजार करना मैं नहीं आऊँ तो समझ लेना मैं मर गया। अब पंद्रह दिन बीत चुके थे। बीस दिन हो गए तीस दिन मतलब एक महीने तक सुग्रीव खड़ा रहा तब किसकिंधा के मंत्रियों ने जबरदस्ती सुग्रीव को लाकर राजा बना दिया था। इसमें सुग्रीव को भगाकर उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया। राम जी कहते है कि दूसरे की पत्नी को जबरदस्ती अपना बनाना, बहन, बेटी पर बुरी नजर रखने वाले को मार ही देना चाहिए। इसलिए राम ने बाली को मारा।
10. भगवान को छप्पन भोग ही क्यों लगते है?
उत्तर : क्योंकि भगवान श्री कृष्ण को माँ यशोदा रोज आठ बार भोजन कराती थी। जब भगवान गोवर्धन उठाये तो सात दिन तक भगवान कुछ खाये नहीं माँ यशोदा को बड़ा प्यार उमड़ा और उन्होंने सात दिन तक जब भगवान गोवर्धन की उचित स्थान रखकर भक्तों के पास आये तो भक्तों ने पूजा की और माँ यशोदा ने जो रोज आठ बार कन्हैया को भोजन कराती थी। सात दिन तक भोजन करा नहीं पाई इसलिए माँ ने सात दिन तक का इकट्ठा भोजन लेकर पहुंची आठ गुणा सात बराबर छप्पन भोग लेकर कन्हैया को खिलाया तब से छप्पन भोग की परम्परा चालू हो गई अथवा छप्पन का अर्थ समझिये पांच और छः टोटल ग्यारह हुए मतलब पांच ज्ञानइन्द्रिय पांच कामेन्द्रिय एक मन टोटल ग्यारह हुए मतलब यही है। ज्ञान, कर्म, मन सब मुझे समर्पित कर दो। ऐसा भगवान गीता में कहते है, यही है छप्पन भोग।
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