क्या भारतीय लोग इन खोखली बेबुनियाद प्रथाओं और विचारधाराओं से बाहर आ पाएँगे ?

भारत एक ऐसा देश हैं जहां अलग अलग प्रांत अलग अलग राज्यों अलग अलग जातीवर्ग के लोग एक साथ रहते हैं, सभी एक साथ रहते तो है लेकिन जब बात आती हैं सही और गलत की तो उस समय हम अपनी आंखे मोर लेते हैं, दूसरे देशों कि अपेक्षा भारत में बहुत सी समस्याऐ हैं जो मानव जिवन को कठिन बना देता है, भारत में सदियों से चली आ रही जातिवाद, लिंग के आधार पर भेदभाव, धर्मों के आधार पर भेदभाव, अमीर गरीब न जाने कितने हि समस्याऐं हैं जों सदियों से चला आ रहे हैं और आज तक खत्म नही हों पाया हैं, यह एक लाइलाज बिमारी की तरह देंश को पूरी तरह जकड़े हुए हैं, आखिर समाज कि ऐसी सोच क्यों हैं, मैं यह भी नही कहता कि दस में दस लोग एक जैसे हैं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समाज और देश के प्रति और यहाँ रहने वालों के लिए योगदान देते हैं क्योंकि वो सभी इंसानियत के सिद्धांतो का पालन करते हैं और एकजुट होकर रहते हैं, चलिए कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान देते हैं कि आखिर भारत में इस तरह के विचारो का अंत क्यों नहीं हो पा रहा हैं।

 

 

1. क्या साक्षरता का अभाव इसे बनायें हुए हैं?

 

 

कई जगहों पर हमें यह देखने को मिल जाता हैं, साक्षरता के अभाव में ऐसे विचार जड़ से नही उखड़ पा रहें होते हैं, आज भी हम गांव कस्बों में जाए तो हम जातिवाद को वहाँ पर महससू कर सकते हैं, लोग एक ही जगहों पर रह कर एक दूसरे के घर का पानी तक नहीं पीते, शादी ,समारोह, त्योहारों को साथ मिलकर नहीं मनाते हैं, आज भी वे सभी उच नीच के धारणाओं में बंधे हुए हैं ।

 

 

2. क्या सभी लोग सामज में बने इसे गलत प्रथाओं को अपनी शान मान चुके हैं?

 

 

हमने साक्षरता की बात की लेकिन उससे परे भारत की जनसंख्या इतनी हैं कि आपको न जाने कितने पढ़े लिखें लोग भी देखने को मिल जाएंगे जो अमीर गरीब, उच नीच, अर्तजातिय विवाह के खिलाफ हैं,अब आप खुद सोचइऐ ऐसे लोगों का क्या किया जा सकता हैं परिणाम यह होता हैं कि कितने ही प्रेमी जोड़ो घर से भाग कर शादी कर लेते हैं तो आप ही बताइए माता पिता के ऐसे विचारों का कैसा प्रभाव होता है.

 

 

3. क्या लोगों की लालच इसे बढ़ावा देती हैं?

 

 

भारत में भूर्ण हत्या के सबसे अधिक मामले देखने को मिलते हैं कितनी हि महिलाऐ प्रतारित होती हैं, आए दिन आत्महत्या के मामले सामने आ जाते हैं और इन सब का मुख्य कारण के दहेज प्रथा, वैसे तो भारत में यह पूरी तरह से गैर कानूनी हैं लेकिन उससे लोगों को कोई मतलब नही दहेज आज तक धरल्ले से दिया और लिया जाता हैं और आगे भी न जाने कितने समय तक यह चलेगा उसका शायद हि किसी के पास जबाव हों और यहीं नहीं भूर्ण हत्या को जन्म देने वाला भी देहज प्रथा ही हैं ।

 

 

4. क्या महिलाओं को कमजोर समझना सही हैं?

 

 

हम हमेशा से सुनते आ रहे हैं कि भारत एक पुरुष प्रधान देश हैं किस कारणवश यह नहीं पता, एक ही परिवार में पुरुष का अलग दर्जा और महिलाओं का अलग,एक परिवार हैं जहाँ पें  दो लड़की हैं एक लड़का हैं तो लड़कें की शिक्षा पर ज्यादा जोड़ दिया जाता हैं और ये भेदभाव बचपन से लेकर ज़वानी तक चलती हैं क्योंकि जवान होने पर एक लड़का दिन हो चाहे रात वह घर से बिना बताये भी चला जाए तो माता पिता को कोई आपत्ती नहीं वही लड़कियाँ बिना बताए दिन में भी नहीं जा सकती और यह असमानता शादी के बाद भी चलती ही रहती हैं, पर इन सब चीजों से पड़े आज के दौर में महिलाऐ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं और सभी क्षेत्रों में अपनी उपस्थिती दर्ज़ करा रही हैं।

 

 

 

5. क्या भविष्य में हमें इन सभी खोखली प्रथाओं से छुटकात मिल पाएगा?

 

 

हम यह जानते हैं कि हम समाज में चल रही चीजों को जो कि सदियों से चलती आ रही हैं उसको एकाएक हम बदल नहीं सकते लेकिन हम अपने आप को तो बदल ही सकते हैं शायद देखा देखी से और भी लोग उसके पिछे चलने लगे अगर हम बदलाव के लिए तैयार हैं तो हम एक अच्छे समाज कि कल्पना कर सकते हैं जहाँ पर न जातिवाद और न धर्म के आधार पर भेदभाव हो न लिंग के आधार पर न दहेज़ प्रथा हो उच नीच अमीर गरीब किसी प्रकार कि कोई भी चीज न हों |

 

 

6. क्या राजनितिक मसले इनको बढ़ावा देते हैं?

 

 

भारत में राजनिती के बारे आमतौर पर सब बात करते हैं, गलियों ,मोहल्लो, चाय की टपरी, पान की दुकानों आदि पें आपके लोग वाद विवाद करते हुए मिल जाएंगे लोग इस विषय पर चर्चा तो बहुत ज्यादा करते हैं लेकिन अगर उन्हीं में से किसी से पूछ लिया जाए कि अगर अपको समस्या हैं या आप बदलाव चाहते हैं तो आप राजनिती में आकर इस बदलाव को करने में अपनी भागीदारी प्रस्तुत करना चाहेंगे और जहाँ तक लगता हैं शायद ही उनका जबाव न हि होगा, आज की युवा वर्ग डाक्टर, इंजिनियर, पायलट, अभिनेता,खिलाड़ी इत्यादि तो बनना चाहता हैं लेकिन उसका राजनिती में आने जैसा कोई सपना या कोई दिलचस्पी नहीं होती हैं, और इसी कारणवश राजनितिक समस्याऐ उत्पन्न होती हैं क्योंकि हमारी राजनिती को पढ़े लिखे युवाओं की जरूरत हैं न कि उम्रदराज अशिक्षित और भष्ट नेताओं की जो जाती और धर्मों  के आधार पर राजनिती करते हैं, आज के दौर में हमें युवाओं कि सख्त जरूरत हैं जों नई सोच के साथ नए और भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण करें|

 

 

7. क्या भारत के कर्तव्यनिष्ठ नागरिक के तौरपर हमारी कोई जिमेदारी नही हैं?

 

 

भारत के नागरिक होने का मतलब हैं कि कुछ जिम्मेदारी और सहयोग हमारा भी उतना ही बनता है जितना सरकार का होता हैं , हम समाजिक कार्यों और सामाजिक बदलावों में अपना सहयोग देश को दे सकते निस्वार्थ भाव से, हम सभी एक हि समाज का हिस्सा हैं, अगर हम सब परस्पर मिलके अपना अपना थोड़ा भी योगदान दे तो हम यह उम्मीद अवश्य कर सकते हैं कि एक समय ऐसा आएगा जब हम जाती, धर्मों, अमीर गरीब, उच नीच से परे भारतीय बनकर एक ही समाज में पूरे सम्मान के साथ खुशहाल जिवन व्यतित करेंगे, हमारा यह दायित्व बनता हैं कि हम ऐसे समाज का गठन करे जो पूरी तरह इंसानियत के सिद्धांतों पर चले, अगर हर नागरिक थोड़ा थोड़ा भी सहयोग दे तो भारत को जनसंख्या इतनी ज्यादा हैं कि वह कितना ज्यादा हो जाएगा, हम अपने आस पास रहने वालों के प्रति, अपने पर्यावरण के प्रति, जीव जंतुओं के प्रति स्नेह और सम्मान रखें तो यह मानव जीवन कितना आसान और खुशहाल हों जाएगा समाज की सारी बेबुनियादी प्रथाऐ खत्म हों जायेंगी और जिस समाज कि हम कल्पना कर रहे हैं उसे हम साकार कर पायेंगें ।

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