कैमरे का जन्म कब कहां कैसे हुआ और किसने किया?

कैमरे का आविष्कार एक अंगरेज वैज्ञानिक विलियम हेनरी फाक्स टैल्बोट ने किया। ग्यारहवीं से सोलहवीं शताब्दी के बीच में यूरोप में 'आब्स्क्यूरा' नामक कैमरे का उपयोग किया गया था। उस समय आब्स्क्यूरा की मदद से वास्तविक चित्र उस कैमरे में कैद कर लिया जाता था। बाद में चित्रकार उसे ट्रेस करता था। उसी ट्रेस पद्धति से चित्रों में रंग भी भरा जाता था। 

1802 ई॰ में वेजवुड और हम्पी ने कुछ चित्र की आकृति काग़ज़ पर बनाने शुरू किये। उस समय उन्होंने उस चित्र पर सिल्वर नाइट्रेट और सिल्वर क्लोराइड का लेप लगाया, जो काण्टेक्ट पिण्ट था । आगे चल कर यह फोटोग्राफी समाप्त हो गयी। ऐसा इसलिए कि यह फोटोग्राफी अधिक टिकाऊ साबित नहीं हुई। 

1816 ई॰ में जोसेफ नाइप्स ने पहला फोटो कैमरा तैयार किया। उस कैमरे में सिर्फ निगेटिव निकलती थी। 1827 ई॰ में फ्रांस में चित्र को काग़ज़ पर स्थाई रूप से अंकित कर लेने में सफलता मिली थी। उसके बाद 1835 ई॰ में विलियम टल्बोट ने निगेटिव से पाज़िटिव तैयार करने वाले एक यंत्र का आविष्कार किया।

विलियम हेनरी फाक्स टैल्बोट ने 1844 ई॰ में एक पुस्तक लिखी थी। उस पुस्तक में उन्होंने यह बताया कि फोटो लम्बे समय तक कैसे टिक सकती है। साथ ही फोटो कैसे तैयार की जाती है। उनका बड़ा आकार कैसे होता है। 

उसके बाद फोटोग्राफी के क्षेत्र में लगातार विकास होता गया। एक लम्बे समय तक लोगों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय रहने वाला 'कोडक बाक्स कैमरा' 1888 ई॰ में पहली बार बाजार में आया।

अब आपको यह बता दूं कि ब्लैक एंड व्हाइट फोटोग्राफी के आविष्कारक फ्रांस के लुई जैक मैन डागर को‌ माना गया है। रंगीन फोटोग्राफी का भी जन्म फ्रांस में ही हुआ था। रंगीन फोटोग्राफी कला का आविष्कार गैब्रिएल लिपमैन ने किया था। 

सिनेमा का इतिहास लगभग 100 वर्ष से भी अधिक पुराना है। फिल्म निर्माण और प्रदर्शन का आरम्भ 

28 दिसम्बर, 1895 ई॰ को हुआ था। स्थान था, फ्रांस की राजधानी पेरिस।

पेरिस के ग्रैण्ड कैफे में विश्व की प्रथम फ़िल्म का व्यावसायिक प्रदर्शन किया गया था। इस प्रथम फ़िल्म का क्षेय जाता है 'लुमियर बन्धुओं' को अन्य से पूर्व कई व्यक्तियों द्वारा इस क्षेत्र में किये गये योगदान को आगे बढ़ाते हुए लुमियर बन्धुओं ने अपने स्वप्न को पूरा किया था। दोनों भाइयों में छोटे भाई लुई ने इस कला को 'सिनेमेटोग्राफ' का नाम दिया था। 

लुमियर बन्धुओं का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता एक फोटोग्राफर थे। फोटोग्राफी के पेशे से पहले, उनके पिता साइन बोर्ड तैयार करते थे। आगे चल कर पिता ने फोटोग्राफी की एक दुकान खोल ली।

पिता के साथ साथ लुमियर बन्धुओं में भी फोटोग्राफी के प्रति रुचि बढ़ने लगी। दोनों भाइयों ने, पिता के न रहने पर, फोटोग्राफी के क्षेत्र में तरह तरह के प्रयोग कर डाले। वे दोनों तरह तरह की फोटो जोड़ कर उन्हें घुमा घुमा कर देखते थे और इस प्रकार उनके मस्तिष्क में तरह तरह के नये विचार आते थे।

एक दिन की बात है। छोटे भाई लुई ने इस प्रकार बनाती हुई 40 फुट लंबी एक रील सिनेमेटोस्कोप पर देखी। यह यन्त्र सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एडिसन ने तैयार किया था। इस प्रयोग में दोनों भाइयों को बहुत मज़ा आया। उनके मस्तिष्क में तरह तरह के नये विचार आते। 

उन्होंने सोचा- क्यों न इन तस्वीरों के फ़ोकस किसी पर्दे पर देखे जाएं। फिर क्या था, दोनों भाइयों इस कार्य में जुट गए। यह वर्ष 1884 की बात है। 

अपने विचारों को कार्य रूप देने के लिए दोनों भाई हर समय लगे रहते थे। बड़े भाई आॅगस्ट लुमियर ने जोड़ तोड़ बैठा कर, एक प्रोजेक्टर का आविष्कार किया। 

प्रोजेक्टर का यह आविष्कार सिनेमेटोस्कोप का ही सुधरा रूप है। सिनेमेटोस्कोप में फिल्म तेजी के साथ घूमती है। इसी सिद्धांत पर कार्य करते हुए, लुई लुमियर ने विचार किया यदि फिल्म की तेजी को किसी प्रकार कम कर दिया जाए तो दर्शकों के लिए एक एक चित्र देखना सम्भव हो जायेगा। 

प्रयोग करते रहे। अन्ततः लुई का श्रम रंग लाया। 13 फरवरी,1895 ई॰ को उन्होंने मनचाहे प्रोजेक्टर तैयार करने में सफलता प्राप्त कर ली। उन्होंने तुरंत अपने इस आविष्कार का पेटेंट करा लिया।

दोनों भाइयों ने मिलकर एक फिल्म भी तैयार कर ली। पूरी तैयारी हो जाने के पश्चात् 22 मार्च 1895 ई॰ को दोनों भाइयों ने अपनी इस प्रथम फ़िल्म प्रदर्शन सोसायटी फार इनकरेजमेण्ट आव नेशनल इण्डस्ट्री के सदस्यों के सम्मुख किया। सदस्यों को यह प्रदर्शन बहुत अच्छा लगा। 

20 फरवरी 1896 ई॰ को लुमियर बन्धुओं ने अपनी इस अनूठी कला का प्रदर्शन लन्दन में किया। वहां इसे देखने के लिए टिकट लगाये गये। बेबीज प्लेइंग तथा रेसकोर्स सीन आदि विषयों पर लगभग दो  दर्जन फिल्में प्रदर्शित की गयीं। प्रत्येक फिल्म लगभग 30 मिनट की होती थी। टिकट का मूल्य रखा गया था, प्रति फिल्म एक शिलिंग। उस समय की सारी फिल्में मूक थी। यानी उनमें आवाज नहीं होती थीं। 

प्रचार की दृष्टि से, विज्ञापन का सहारा लिया जाता था। विज्ञापन बोर्डो पर लिखा जाता था- आश्चर्यजनक ज़िन्दा तस्वीरों का अजूबा प्रदर्शन। 

इस प्रकार लुमियर बन्धुओं के प्रदर्शन बेहद सफल रहे। भीड़ की भीड़ टूट पड़ती थी। दोनों को बड़ी प्रसिद्धि मिली; साथ ही व्यावसायिक लाभ भी मिला।

डिजिटल कैमरा द्वारा कैप्चर की जाने वाली छवियां इलेक्ट्रॉनिक रूप में होती हैं, इसलिए यह कंप्यूटर द्वारा मान्यता प्राप्त भाषा है। इस भाषा को पिक्सल कहा जाता है, छोटे रंग के डॉट्स जो एक और शून्य द्वारा दर्शाए जाते हैं जो आपके द्वारा अभी-अभी ली गई तस्वीर को बनाते हैं।

किसी भी पारंपरिक कैमरे की तरह, एक डिजिटल कैमरा लेंस की एक श्रृंखला से सुसज्जित होता है जो प्रकाश को केंद्रित करता है और वह छवि बनाता है जिसे आप कैप्चर करना चाहते हैं।

यहाँ अंतर तब है; एक पारंपरिक कैमरा एक फिल्म पर अपने प्रकाश को केंद्रित करता है जबकि एक डिजिटल कैमरा प्रकाश को एक अर्धचालक उपकरण में केंद्रित करता है जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रकाश को रिकॉर्ड करता है। बिल्ट इन कंप्यूटर याद रखें, यह यहां आता है और इस जानकारी को डिजिटल डेटा में तोड़ देता है जिसके परिणामस्वरूप डिजिटल कैमरा की सभी विशेषताएं होती हैं।

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