कृत्रिम बारिश क्या है और कैसे होती है ?

दुनिया में ऐसे कई इलाके हैं जहां पर बारिश ना के समान हुआ करती है और इन्हीं इलाकों में बारिश करवाने के लिए कृत्रिम बारिश तकनीक का इस्तेमाल किया जाता. कृत्रिम बारिश या क्लाउड-सीडिंग उस प्रक्रिया को कहा जाता है जिसमें कृत्रिम तरीके से बादलों को बारिश करने के लिए अनुकूल बनाया जाता है. इस प्रक्रिया को करने के लिए कई तरह के रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है. विन्सेन्ट जोसेफ शेएफ़र जो कि एक अमेरिकी रसायनज्ञ और मौसम विज्ञानी थे उन्होंने सबसे पहले क्लाउड-सीडिंग का आविष्कार किया था. उन्होंने 13 नवंबर, 1946 में इसका आविष्कार किया था. वहीं सन् 1947 और 1960 के बीच ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन ने सबसे क्लाउड-सीडिंग का परीक्षण किया था. कृत्रिम बारिश के बारे में और जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि बारिश कैसे होती है.

कृत्रिम बारिश क्या है (Artificial Rain, Cloud Seeding)

अक्सर देखा जाता है कि बारिश के मौसम में भी बारिश नहीं होती जिसकी वजह से पूरी की पूरी फसलें तबाह हो जाती हैं। ऐसे में सरकार को और साथ ही देश के किसानों को बहुत बड़ा नुकसान भुगतना पड़ता है। इन सभी कारणों की वजह से कृत्रिम वर्षा यानि आर्टिफीसियल वर्षा का उपाय ढूंढ निकाला है। अब सबसे बड़ा सवाल यह होता है कि कृत्रिम बारिश कहते कैसे हैं। फसल को अच्छा बनाने के लिए और किसानों को कर्ज से उबारने के लिए कृत्रिम बारिश की जाती है जो कि एक झूठ मुठ की बारिश होती है जो भगवान के बनाए हुए बादलों की मदद से नहीं होती है। यह पूरी तरह एक मानव निर्मित गतिविधि है जिसे कृत्रिम वर्षा या क्लाउड सीडिंग भी कह सकते हैं।

कृत्रिम बारिश कैसे काम करती है (Artificial Rain, Cloud Seeding Work)

समुद्र और नदियों का पानी सूरज की गर्मी से भाप या गर्म हवा बन कर ऊपर उठ जाता है और बादल बन जाता हैं. ये बादल जब ठंडे जलवायु से जाकर मिल जाते हैं तो इनके अंदर जमा पानी भारी हो जाने से नीचे गिरने लगता है. जिसको हम बारिश कहते हैं. यानि जब गर्म नम हवा, ठंडे और उच्च दबाव वाले जलवायु से मिलती है तब बारिश होती है.

इसे समझने का एक तरीका यह भी है कि आमतौर पर प्राकृतिक रूप से वर्षा तब होती है जब सूरज की गर्मी बहुत ज्यादा हो जाती है और हवा भी गर्म होने लगती है और धीरे-धीरे हल्की हो जाती है। हवा हल्की होने के बाद ऊपर उठती है और हवा का दबाव कम हो जाता है। जिसकी वजह से आसमान की एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह धीरे-धीरे ठंडी होने लगती है। ठंडी हवाओं के झोंकों से हवा में नमी बढ़ जाती है और उसमें मौजूद नमी बारिश की बूंदे बनकर हवा में लटकने लगते हैं जो बारिश के रूप में नीचे गिरना शुरू हो जाती हैं जिसे हम सामान्य वर्षा कहते हैं। कुछ इसी प्रक्रिया को मानव निर्मित परिस्थितियों के द्वारा अपनाया जाता है और कृत्रिम वर्षा की जाती है।

कृत्रिम बारिश में रसायन का प्रयोग

यह तीन चरण में होती है पहले दो चरणों के सफलतापूर्वक होने से बादल बारिश करने के लिए योग्य बन जाते हैं. जबकि आखिरी प्रक्रिया में बादलों पर सिल्वर आयोडाइड की मदद से बारिश की जाती है.  इसे निम्न तरीके से समझिये –

पहला चरण

पहले चरण को पूरा करने के लिए कई रसायनों की मदद ली जाती है. इस चरण में जिस इलाके में बारिश करवानी होती है, उस इलाके के ऊपर चलने वाली हवा को ऊपर की ओर भेजा जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बादल बारिश करने के योग्य बन सकें. इन रसायनों के द्वारा हवा से जलवाष्प को सोख लेने के बाद संघनन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इस प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों के नाम इस प्रकार हैं.

 

संख्या रसायनों के नाम
1 कैल्शियम क्लोराइड
2 नमक
3 कैल्शियम कार्बाइड
4 यूरिया
5 कैल्शियम ऑक्साइड और
6 अमोनियम नाइट्रेट

 

दूसरा चरण

दूसरे चरण को बिल्डिंग स्टेज भी कहा जाता है, इस चरण में बादलों का घनत्व बढ़ाया जाता है. जिसके लिए नमक और सूखी बर्फ के अलावा निम्मलिखित रसायनों का प्रयोग किया जाता है-

 

संख्या रसायनों के नाम
1 यूरिया
2 अमोनियम नाइट्रेट और
3 कैल्शियम क्लोराइड

 

तीसरा चरण

 

सुपर-कूल वाले रसायनों यानी की सिल्वर आयोडाइड और शुष्क बर्फ का छिड़काव विमान, गुब्बारों और मिसाइलों की मदद से बादलों पर किया जाती हैं. जिसके कारण बादलों का घनत्व और बढ़ जाता है और वो बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाते हैं. जिसके बाद बादल में छुपे पानी के कण बिखरने लगते हैं और गुरुत्व बल के कारण धरती पर गिरते हैं. जिन्हें हम बारिश कहते हैं.

मिनटों में कैसे होती है बारिश

 

आधुनिक ड्रोन की मदद से क्लाउड सीडिंग करके कुछ ही पलों में बादल बनने शुरू हो जाते हैं जिसके बाद उन बादलों से बारिश की बूंदे टपकने शुरू हो जाती हैं। यह पूरी प्रक्रिया बारिश के कणों का छिड़काव वायुमंडल की सतह पर निर्भर करता है। इस पूरी प्रक्रिया को संपूर्ण करने में मात्र 30 मिनट का न्यूनतम समय लगता है।

विमानों की मदद से वर्षा

अगर किसी क्षेत्र पर बारिश करवानी हो और वहां पर पहले से ही बारिश वाले बादल मौजूद हों, तो ऐसी स्थिति में पहले के दो चरणों को नहीं किया जाता है और सीधे तीसरे चरण की शुरूआत कर दी जाती है. वर्षा वाले बादलों का पता डॉप्लर राडार की सहायता से लगाया जाता है, फिर विमान को क्लाउड-सीडिंग के लिए इन बादलों के पास भेजा जाता है. विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो जनरेटर लगे होते हैं. जनरेटरों में सिल्वर आयोडाइड का घोल हाई प्रेशर में भरा जाता है. बारिश करवाने वाले इलाके में विमान को हवा की उल्टी दिशा में उड़ाया जाता है. और जिस बादल पर ये क्लाउड-सीडिंग करनी होती है उसके सामने आते ही जनरेटर चला दिए जाते हैं. वहीं आजकल विमान के अलावा मिसाइल के जरिए भी ये प्रक्रिया की जा रही है, क्योंकि मिसाइल विमान से कम महंगी पड़ती है और विमान के मुकाबले मिसाइल से 80 फीसदी ज्यादा कार्य में सफलता मिलती है.

भारत में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain or Cloud Seeding in India)

 

भारत की आधिकतर आबादी खेती से जुड़ी हुई है और बारिश किसानों के लिए बेहद जरूरी है. मगर कई सालों से समय पर बारिश ना होने के कारण किसानों की फसल का अच्छा खासा नुकसान हो रहा रही है. ऐसे में ये तकनीक भारत के लिए किसी वरदान से कम साबित नहीं हुई है. भारत में सूखे की समस्या से निपटने के लिए भारत के कई राज्य कृत्रिम बारिश का प्रयोग कर रहे हैं. साल 1983 में तमिलनाडु सरकार ने इस तकनीक की मदद से सूखाग्रस्त इलाकों में बारिश करवाई थी. वहीं कर्नाटक सरकार ने भी इस तकनीक का इस्तेमाल अपने राज्य के सूखाग्रस्त इलाकों में किया था. वहीं कृत्रिम बारिश का प्रयोग करने में आंध्र प्रदेश पहले नंबर पर हैं. यहां पर 2008 में 12 जिलों में इसका प्रयोग कर बारिश करवाई गई थी. ये इस्तेमाल किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ था.

कृत्रिम बारिश क्यों होती है

कृत्रिम बारिश क्यों होती है यह बहुत बड़ा सवाल है जिसके बहुत ही संगीन जवाब है। बहुत सी मुसीबतें ऐसी हैं जो प्राकृतिक आपदा बनकर मनुष्यों को परेशान करती है जिसका एक सीधा सरल उपाय कृत्रिम बारिश है। जैसे कि

  • गर्मी का बहुत ज्यादा अधिक बढ़ जाना और गर्मी के लेवल को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश की जाती है।
  • जिन क्षेत्रों में फसल उगाई जाती है उन क्षेत्रों में बारिश की कमी की वजह से फसल खराब होनी शुरू हो जाती है और उस फसल को बचाने के लिए तथा देश को आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए भी कृत्रिम बारिश कराई जाती है।
  • प्रकृति में वायु प्रदूषण बहुत जल्दी बढ़ने लगता है ऐसे में जब वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा अधिक बढ़ जाता है और इसका प्रभाव जन जीवन पर पड़ने लगता है तो उस प्रदूषण से राहत दिलाने के लिए भी कृत्रिम बारिश बहुत सहायक सिद्ध होती है।
  • जिस क्षेत्र में सूखा पड़ने की आशंका बहुत ज्यादा हो उन क्षेत्रों में कृत्रिम बारिश बहुत सहायक होती है।

 

कृत्रिम बारिश का भविष्य (Artificial Rain Future)

आने वाले समय को देखते हुए या उसके बारे में कल्पना करते हुए यह साफ नजर आ रहा है कि कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल धीरे-धीरे बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है। जैसा कि सभी जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग बहुत ज्यादा बढ़ रही है इसीलिए वैज्ञानिकों का दावा यही है कि आने वाले भविष्य में बाढ़ या सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश एक बेहतर हथियार के रूप में काम कर सकता है। हालांकि कृत्रिम बारिश के दुष्प्रभाव भी बहुत ज्यादा है जिन को देखते हुए इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा आपदा पड़ने पर ही किया जा सकता है।

कृत्रिम बारिश को लेकर आशंकाएं

कृत्रिम बारिश एक तरह से निराशा में भी उम्मीद की एक किरण लेकर आती है तो इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए भी विभिन्न प्रकार की आशंकाएं शोधकर्ताओं द्वारा जताई जा रही हैं।

 

  • क्लाउड सीडिंग करके सीधे तौर पर पर्यावरण से छेड़छाड़ की जाती है ताकि कृत्रिम बारिश की जा सके। कृत्रिम बारिश की वजह से आमतौर पर पर्यावरण में पारिस्थितिकीय विषमता ए उत्पन्न होने का भय रहता है जिससे महासागरों काजल कई अधिकतर पर अम्लीय होने की संभावना भी बनी रहती है।
  • कृत्रिम बारिश की वजह से पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है जिसका सीधा असर ओजोन स्तर पर पड़ता है।
  • भले ही फसलों को बचाने के लिए कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल किया जाता है परंतु कृत्रिम बारिश में इस्तेमाल की जाने वाली सिल्वर एक जहरीली धातु है जो वनस्पति और जीवो को धीरे धीरे गहरा नुकसान पहुंचाती है।

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