प्राचीन ग्रीस की तरह क्या खिलाड़ी नग्न होकर आज भी ओलंपिक खेल सकते हैं ?

यह बात ओरिसिप्पस नाम के एक ओलंपिक एथलीट से जुड़ी है। 720 ईसा पूर्व में जब ओरिसिप्पस 185 मीटर की दौड़ में हिस्सा ले रहे थे जब उनके कपड़े नीचे खिसक गए। तब कपड़ो को उठा कर पहने के बदले वह खेल में भागते रहे । वह यह दौड़ जीत गए। उनकी यह दौड़ मिसाल बन गई क्योंकि वह न ही शर्माकर रुके...न ही कपड़ो के बारे में सोचा वे भागते रहे।

 

ऐसा कहा जाता है की इसके बाद से ग्रीक में न्यूड ओलंपिक स्पर्धा लोकप्रिय हो गई और तो और वहा के निवासी इसे  ग्रीक संस्कृति में आकाश के देवता ज़्यूस के सम्मान के रूप में देखा जाने लगा। इस स्पर्धा के प्रतिभागी अपने शरीर पर पवित्र जैतून का तेल लगाकर दौड़ते थे। लेकिन जब आधुनिक ओलंपिक का जन्म हुआ साल 1896 में तब आयोजकों ने ग्रीक परंपरा की न्यूड स्पर्धा को ओलंपिक में शामिल करने पर विचार तक नहीं किया। क्योंकि तब तक सांस्कृतिक ताना-बाना काफ़ी बदल चुका था।

 

1.) क्या कपड़े सिर्फ शरीर ही ढकते है ?

ओलंपिक में कपड़ो का अलग महत्व है। जैसे की धावक की दौड़ तेज करने के लिए ग्रिप वाले जूतों हो या आसानी से तैरने में मदद करने वाले स्विमिंग कॉस्ट्यूम हों या तेज़ हवा के असर को कम करने वाली चुस्त पोशाक हो। एथलेटिक्स की आधुनिक स्पर्धाओं में इसका महत्व अलग हो जाता है।

इस साल जो टोक्यो ओलंपिक हो रहे है वो कोरोनावायरस के कारण कुछ हद का अलग है। लेकिन अगर ऐसे समय में ग्रीक की पुरानी न्यूड स्पर्धा भी वापस लौट आए तो? ऐसा कहा जाए की कोई इस बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है तो ये बिलकुल गलत होंगा। न्यूड स्पर्धा का विचार खिलाड़ियों के प्रदर्शन, सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़े कई दिलचस्प सवाल पैदा करता है। 

वर्तमान समय में कई खेल ऐसे है जिसमे खिलाड़ी नाम मात्र के कपड़े ही पहनते हैं। यह केवल महिलाओं के स्तनों और पुरुषों के जननांगों को ढँकने और उन पर ग्रिप लगाए रखने तक सीमित होता है। नग्नता का वापस आना खिलाड़ियों के लिए कई समस्याएं पैदा कर सकता है।

 

2.) क्या खेल में कपड़े मदत करते है ?

कपड़े खिलाड़ियों को खेल में कितनी मदत करते हैं ये स्पष्ट तो नही है। परंतु यह उन्हे आराम पहुंचाने के लिए तो उपयोगी है ही।

अगर कपड़े लचीले और सपाट हो तो यह खिलाड़ियों के शरीर को पानी और हवा से मिलने वाली बाधा कम हो जाती हैं। उधारण के रूप में देखा जाए तो साइकिलिस्ट्स को पैरों के बाल शेव करने और चुस्त कपड़े पहनने से मदद मिलती है।

 

3.) जूते हैं बहुत ज़रूरी :

जूतों का असर कपड़े से कई ज्यादा और अलग है। जूते खिलाड़ियों के सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ साथ उनका प्रदर्शन भी बेहतर करते हैं। 

अच्छे जूते एड़ियों को सपोर्ट देते है। यह तलवों को भी कुशन (गद्दी) जैसा आराम देते हैं जिससे दौड़ने, कूदने और जल्दी से मुड़ने में आसानी होती है।

जूते खिलाड़ियों के पैरो के लिए लाभदायक होने के साथ साथ खिलाडि़यों के पैरों, हड्डियों, तंतुओं और मांसपेशियों पर पड़ने वाले असर को भी कम करते हैं।

क्योंकि पैर हमारे शरीर का पूरा भार उठाते है इसलिए शरीर को सपोर्ट देने के लिए पैरों को सपोर्ट देना बहुत ज़रूरी हो जाता है।

कई खेलों में तो सुरक्षा के लिए ज़्यादा ख़ास जूतों की ज़रूरत पड़ती है। जैसे ओलंपिक में नौकायन की स्पर्धा में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों के लिए फिसलने के ख़तरे से बचने के लिए ख़ास तरीके के जूतों की ज़रूरत पड़ते है ताकि स्पीड बढ़ाते समय हादसों की आशंका कम हो जाए और प्रदर्शन भी बेहतर हो।

अगर फिर से न्यूड ओलिंपिक करना है तो जूते तो अवश्य इस्तमाल होंगे ही। 

 

4.) जब स्विमसूटो पर लगा प्रतिबंध :

अगर बात करे कपड़ो से ज्यादा मदत किसे मिलती है तो हमे तैराकों का नाम लेना होगा।

यह बात 2008 के बीजिंग ओलंपिक की हैं। जब यह मुद्दा उठा था। मुद्दा उठने की वजह थी तैराकों के द्वारा 25 वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिए जाना। इनमें से 23 वर्ल्ड रिकॉर्ड तब टूटे थे जब तैराकों ने ख़ास तरीके से डिज़ाइन किया गया एलज़ेडआर रेसर नाम का फ़ुल बॉडी पॉलिथीन सूट पहना था।

यह सूट नासा के वैज्ञानिकों के द्वारा बनाया गया था। नासा के जिन वैज्ञानिकों ने यह एलज़ेडआर रेसर बनाया था उन्होंने इस सूट के बारे में कहा था कि इससे त्वचा का घर्षण 24 फ़ीसदी तक कम हो गया था। इतना ही नहीं, इसने पानी को भी कंप्रेस किया था जिससे तैराकों को आगे बढ़ने के लिए ख़ुद को अपेक्षाकृत कम खींचना पड़ा था।

एलज़ेडआर रेसर और उसके जैसे अन्य सूट पहनने से तैराकों को कुछ ज़्यादा ही और 'अनुचित' सुविधा मिलती है। जब इंटरनेशनल स्विमिंग फ़ेडरेशन ने 2010 में इस बात पर गौर की तो तैराकों के लिए ऐसे सूट पहने पर प्रतिबंध लगा दिया। क्योंकि इन से जिनसे उनकी गति, लचीलेपन या प्रदर्शन को बेहतर करने में मदद मिलती थी।

 

5.) न्यूड ओलंपिक हुए तो क्या-क्या हो सकता है?

अगर न्यूड ओलंपिक हुए तो इसका असर खिलाड़ियों के भागीदारी पर भी पड़ सकता है। खिलाड़ी असहज होकर हो सकता है की खेलने न आए जो की विरोध का एक कभी प्रमुख कारण भी बन सकता है।

न्यूड ओलंपिक शुरू हुए तो 18 से कम उम्र वाले खिलाड़ियों को लेकर गंभीर नैतिक और क़ानूनी मुद्दे भी सामने आ सकते हैं। प्राचीन ग्रीक में न्यूड ओलंपिक में 12 साल तक की उम्र के लड़के भी इसमें हिस्सा लेते थे। ऐसा केवल इस के धार्मिक महत्व को मद्देनज़र रखते हुए ही किया जाता था।

आज न्यूड ओलंपिक न होने का सबसे बड़ा कारण यह भी हो सकता है की खिलाड़ियों को सेक्शुअल और पोर्नोग्रैफ़िक नज़र से देखा जाए। पहले जब ग्रीक में न्यूड ओलंपिक होते थे तो किसी भी तरह की सेक्शुअल गतिविधि पर रोक थी और खिलाड़ियों को सेक्शुअल नज़र से देखे जाने को गंभीरता से लिया जाता था। परंतु आज यह संभव नहीं। अगर आज न्यूड ओलंपिक हुए तो ऐसा नहीं होगा। उस ज़माने में ओलंपिक में नग्नता का एक अलग मतलब होता था। आज नग्नता को सेक्शुअल और पोर्नोग्रैफ़िक नज़र से देखा जाता है। इतना ही नहीं, नग्नता काफ़ी हद तक शोषण से भी जुड़ गई है।

तो इस हिसाब से देखा जाए तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे है की वर्तमान समय में न्यूड ओलंपिक होना लगभग असम्भव है। लोगो के बुरे विचार, गलत सोच और गंदी नजर के कारण आज के दौर में ये असंभव है। वैसे भी ओलिंपिक में पूरी दुनिया के खिलाड़ी शामिल होते हैं जो इस प्रतियोगिता को विश्व स्तर की प्रतियोगिता बनाता है। जहां लोग विश्व स्तर पर पदक के लिए स्पर्धा करते है और जिस प्रतियोगिता पर पूरे विश्व की नजर होती है वहा न्यूड हो कर खेलना आज के तकनीकी दौर के लिए गलत है। पहला तो इतनी तकनीक नही थी तो ग्रीक में ओलिंपिक होना वो भी न्यूड संभव लगता था परंतु आज नही लगता।

Enjoyed this article? Stay informed by joining our newsletter!

Comments

You must be logged in to post a comment.

About Author