पेट्रोल और डीजल की कीमतों ने आम आदमियों के जेब का बोझ बढ़ा दिया है। देश के कई हिस्सों में तेल के कीमत 100 रूपये के पाड़ पहुँच गयी है। आम लोगों ने यहां तक भी कहना शुरू कर दिया है कि “अब मोटर गाड़ियों के वजह बैल गाड़ियों से चलना ज्यादा सुविधाजनक हैं”। सवाल उठता है कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत पर लगाम कैसे लगे, इसके विकल्प के तौर पर कई बार सुझाया जाता है कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने से इनके दाम घट सकते हैं ।
लेकिन क्या ऐसा करना मुमकिन है, आइए इसी मुद्दे को समझने की कोशिश करते हैं । हाल में ही जीएसटी काउंसिल की 45 में बैठक हुई जहां इस मुद्दे की चर्चा की गयी, लेकिन पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर कोई फैसला नहीं हो सकी।
इससे पहले दिल्ली के वित्त मंत्री ने कहा पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का यह सही वक्त नहीं है क्योकि इसका असर राजस्व पर पड़ सकता है जिस पर विचार करना जरूरी है, वहीं बैठक से पहले केरल और महाराष्ट्र सरकार ने कहा था वह पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का विरोध करेंगे।
भारत में जीएसटी व्यवस्था 01 जुलाई 2017 से लागू हुई थी उस वक्त पांच पेट्रोलियम उत्पादों को इससे बाहर रखा गया था जिसमें पेट्रोल-डीजल भी शामिल थे दलील दी गई थी, इन दोनों से होने वाली कमाई पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों बहुत ज्यादा निर्भर है।
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हाल के दिनों में बढ़ते पेट्रोल-डीजल की कीमत के मद्देनजर गैर बीजेपी शासित राज्य के सरकारों ने केंद्र सरकार से इस पर लगाने वाले एक्साइज ड्यूटी कम करने की गुहार लगाई थी। इस लिस्ट में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था 2014-15 के बाद से ऑइल और पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स वसूली के जरिए जमा होने वाली राशि में 370 फ़ीसदी का इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2020 से 21 में ही 3.71 लाख करोड़ की कमाई केंद्र सरकार को इससे हुई है। केंद्र सरकार इस बात को स्वीकार भी करती है। इसी कमाई को आधार बनाते हुए राज्यों की दलील है कि केंद्र सरकार अपने टैक्स को कम करें।
अब चर्चा है कि केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा होता है तो आम जनता को इससे बहुत फायदा होगा माना जा रहा है कि इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 25 से 30 परसेंट गिरावट आ सकती है, लेकिन नुकसान केंद्र और राज्य सरकार दोनों को होगा।
आइए पहले यह जान लेते हैं कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में केंद्र और राज्य सरकार को किसे कितना फायदा होता है। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकार की जेब में पेट्रोल और डीजल के दाम का कितना हिस्सा जाता है।
16 सितम्बर 2021 को पेट्रोल का दाम राजधानी दिल्ली में 101.19 रुपये प्रति लीटर था। अगर पेट्रोल का Price बिल्डप देखा जाए तो, डीलरों को पेट्रोल 41.10 रूपये प्रति लीटर की दर पर मुहैया कराया जा रहा हैं, इसपर 32.90 रूपये प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी और 23.35 रूपये प्रति लीटर का वैट जोड़ा गया साथ में 3.84 रूपये प्रति लीटर का डीलर कमीशन तो दाम 101.19 रूपये प्रति लीटर पहुँच जाता है।
इनमे 32.90 रुपये प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी केंद्र सरकार के जेब में जाती हैं और 23.35 रुपये प्रति लीटर का वैट दिल्ली सरकार के जेब में जाता है। यानी जितना बेस Price है उससे दोगुनी कीमत पर दिल्ली में पेट्रोल मिल रहा हैं और वो पैसा केंद्र और राज्य सरकार दोनों के खजाने में जा रहा हैं।
अब ये जान लेते है की जीएसटी के दायरे में आने से सरकार को कितना नुकसान होगा। पूर्व पेट्रोलियम सचिव सौरव चंद्रा बताते है की “एक अनुमान के मुताबिक़ भारत में सालाना 10-11 हज़ार करोड़ लीटर डीज़ल बिकता है और 3-4 हज़ार करोड़ लीटर का पेट्रोल बिकता है। दोनों उत्पादों को मिला कर तक़रीबन 14 हज़ार करोड़ लीटर का डीज़ल-पेट्रोल बिकता हैं। मान लीजिए इस पर एक रूपये ही राज्यों ने वैट लगाया, तो आसानी से आप होने वाले नुकसान का अंदाज़ा लगा सकते हैं। नुकसान का आकड़ा इन उत्पादों की बिक्री और टैक्स के आधार पर हर राज्य के लिए अलग होगा। जैसे केरल को अनुमान है की उन्हें सालाना 8 हज़ार करोड़ का नुकसान होगा।
आखिर इस नुकसान की भरपाई कैसे हो, दरसअल जीएसटी रेट एक बड़ी समस्या है फिलहाल सरकारें पेट्रोल के बेस Price के ऊपर 100 फ़ीसदी (एक अनुमान) टैक्स वसूलती हैं। जीएसटी में 28 फ़ीसदी का टैक्स स्लैब सब से ऊचां है, मान लीजिये अगर पेट्रोल-डीज़ल को उसी स्लैब में रख दें, तो बाकी के 70-72 फ़ीसदी टैक्स से होने वाले कमाई की भरपाई कैसे होगी ?
भरपाई के तरीकों के बारे में बात करते हुए पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग कहते है “इस कमाई की भरपाई करने के लिए 28 फ़ीसदी जीएसटी के अलावा सरचार्ज लगा दिया जाए, जैसे लग्ज़री कारों पर केंद्र सरकार ने किया है।” दूसरा तरीका ये हो सकता है कि केंद्र सरकार जीएसटी के बाद भी एक्साइज ड्यूटी लगाए और उससे होने वाली आमदनी को केंद्र और राज्य सरकार बाँट लें। इसके लिए दोनों सरकारों को इस फॉर्मूले पर राज़ी होना होगा।
केंद्र और राज्य सरकारें चालु वित्त वर्ष में जीएसटी राजस्व में होने वाले करीब 2.35 लाख करोड़ रूपये की नुकसान की भरपाई को लेकर भी एक दूसरे से लड़ती रहीं हैं। ऐसे में एक नुकसान और जुड़ जाएगा तो दिक्कत बढ़ जायेगी। दरसअल राज्यों के पास आय के साधन सिमित हैं, शराब और पेट्रोलियम उत्पाद पर टैक्स तो सबसे बड़े जरिये हैं। ऐसे में पेट्रोल-डीज़ल पर सरकार जो भी फैसला लें, उसमे राज्यों और केंद्र दोनों के हितों का ख़याल रखना जरूरी होगा। साथ ही ये भी तय करना होगा की आम जनता की जेब जायदा ढीली न हो।
अंदर की खबर है की केंद्र सरकार चाह रही है 2024 का इलेक्शन पेट्रोल और डीज़ल के मुद्दे पर लड़ा जाए। केंद्र सरकार सोच रही है इलेक्शन से पूर्व किसी तरह पेट्रोल और डीज़ल को GST के दायरे में लाया जाए, जिससे इनकी कीमतों में भारी गिराबट दर्ज की जाए, व जनता को लाभ मिले और इसका फायदा उठा कर जायदा से जायदा वोट हासिल किया जा सके।
अगर ऐसा होता है तो आम जनता को इस से काफी लाभ होगा। केंद्र व राज्य सरकार को पेट्रोल और डीज़ल के GST के दायरे में आने से हानि तो होगी परन्तु और कोई उपाय भी नहीं है, पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते कीमतों के बोझ ने आम जनता के कमर तोड़ दिए है।
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